अप्रैल के पहले हफ्ते में नीतीश कुमार दिल्ली आकर एमसीडी चुनावों के लिए प्रचार करेंगे. 2 बड़ी रैलियां प्लान की गई हैं. जनता दल यूनाइटेड MCD की सभी 272 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. दिसंबर में ही पार्टी की दिल्ली यूनिट ने काम करना शुरू कर दिया है. राष्ट्रीय महासचिव संजय झा को दिल्ली की बागडोर सौंपी गई है.
पिछले 15 सालों में दिल्ली के वोटरों की परिभाषा बदली है. अब पंजाबी, जाट, खत्री के अलावा पूर्वांचल और बिहार के वोटरों का भी यहां की राजनीति पर अच्छा खासा दबदबा बन चुका है. पूर्वी उत्तर-प्रदेश और बिहार से लोग देश की राजधानी में रोजगार के लिए आते रहे हैं. समय के साथ उनकी तादाद इतनी बढ़ गई है कि अब दिल्ली की राजनीति इनको लुभाए बिना मुमकिन नहीं.
नीतीश कुमार का दांव सटीक बैठेगा क्या?
ये समझने के लिए दिल्ली में बिहार और पूर्वांचल के वोटबैंक की ताकत को समझना जरूरी है.
2015 विधानसभा चुनाव बिहार-यूपी के वोटरों की ताकत को कांग्रेस और बीजेपी ने कम आंका लेकिन केजरीवाल मौका नहीं चूके, 11 पूर्वांचली उम्मीदवार खड़े किए और बदले में इस वोटर तबके का साथ भी मिला.
अब नीतीश केजरीवाल से अपनी दोस्ती भुला कर इस नए वोट बैंक की तलाश में दिल्ली का रुख करेंगे. इन्हें लुभाने के लिए नीतीश के पास मुद्दे भी हैं और आप की आपसी कलह का फायदा भी.
क्या हैं नीतीश के मुद्दे?
- अनाधिकृत कॉलोनियां
- रोजगार
- बिजली
- पानी
- सीवर की समस्या
आप से आर-पार?
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने एमसीडी चुनावों के लिए पहली लिस्ट जारी कर दी है. 109 उम्मीदवार घोषित किए गए हैं जिसमें से 49 महिला उम्मीदवार हैं. टिकट डिस्ट्रीब्यूशन में भेदभाव का आरोप लगाते हुए कुछ नेताओं ने जदयू का दामन थाम लिया है. आम आदमी पार्टी के पूर्वांचल शक्ति यूनिट के प्रदेश सचिव विनोद झा और जिला सचिव प्रवीण कुमार अपने समर्थकों के साथ जदयू में शामिल हो गए हैं.
आप को अब बिहार और यूपी के वोटरों का समर्थन नहीं मिलेगा. उन्होंने टिकट न देकर हमारे लोगों के साथ धोखा किया है. आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि हर विधानसभा क्षेत्र में पूर्वांचल से एक उम्मीदवार को टिकट देंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं है.विनोद झा, नेता, जदयू
प्रकाश पर्व के भव्य आयोजन से मिलेगा फायदा?
बिहार में पहली बार बड़े पैमाने पर राज्य सरकार ने प्रकाश पर्व का आयोजन किया. राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो इसके पीछे पंजाबी वोटरों को रिझाने का मकसद था. अगर प्रकाश पर्व से नीतीश पंजाबी वोटरों के बीच पॉपुलर हुए हैं तो शायद इसका फायदा उन्हें दिल्ली MCD चुनावों में भी मिले.
बीजेपी पीछे क्यों रहे?
2015 विधानसभा चुनाव की गलती बीजेपी को नतीजे आने के बाद ही समझ आ गई थी, तभी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय की रवानगी हुई और पूर्वांचल के स्टार मनोज तिवारी को कमान सौंपी गई. यूपी- बिहार के वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी ने दांव तो पहले चल दिया लेकिन जदयू की एंट्री से वोट शेयर पर फर्क पड़ना तय है.
लेकिन शायद बीजेपी का मौजूदा पार्षदों को टिकट न देने और नए चेहरे लाने के फैसले से पार्टी को फायदा मिल सकता है.
एक नजर 2012 MCD चुनाव नतीजों पर
कांग्रेस ने भी कमर कसी
पंजाब में जीत को दिल्ली MCD चुनावों में भुनानाे की कोशिश में कांग्रेस भी जुट गई है. पार्टी डोर-टू-डोर कैंपेनिंग करेगी और टिकट बंटवारे में हर तबके का ख्याल रखा जाएगा. मेरी दिल्ली-मेरे सपने कैंपेन लॉन्च हो चुका है और तकरीबन 2 लाख कार्यकर्ता स्थानीय चुनाव के लिए काम कर रहे हैं,.
राहुल गांधी जी के निर्देश पर 15 कार्यकर्ताओं की टीम हर बूथ के लिए तैनात की गई है. हर कार्यकर्ता को 50-60 वोटरों का जिम्मा दिया गया है.छतर सिंह, नेता, दिल्ली कांग्रेस
कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी के विकास का एजेंडा रहेगा, तो वहीं जदयू आम आदमी पार्टी से यूपी- बिहार वोटर्स छीनने की कवायद में लगी होगी. कुल मिलाकर मुकाबला दिलचस्प होगा. 22 अप्रैल को वोटिंग है, 25 अप्रैल को वोटों की गिनती होगी और नतीजों का ऐलान होगा.
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