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प्रस्‍ताव पर शिवसेना ने BJP को चेताया, BJD ने विपक्ष को किया मायूस

हर किसी को इन 5 बातों पर पैनी नजर रखनी चाहिए, जिनसे कई बड़े संकेत निकलेंगे.

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मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में लाए गए अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर पर चर्चा और वोटिंग से सरकार अपनी मजबूती साबित करने को आतुर है, जबकि विपक्ष में बैठी पार्टियां सरकार की कमियां गिनाकर पब्‍ल‍िक को अपनी ओर करने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं. लेकिन इस पूरी खींचतान के बीच हर किसी को इन 5 बातों पर पैनी नजर रखनी चाहिए, जिनसे कई बड़े संकेत निकल रहे हैं.

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कौन किसके साथ खड़ा है

अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा और वोटिंग से ये पूरी तरह तय हो जाएगा कि कौन-सी पार्टी किसके साथ खड़ी है. बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिवसेना का रुख बेहद दिलचस्‍प है, जो केंद्र के साथ-साथ महाराष्‍ट्र में भी बीजेपी के साथ सत्ता में साझीदार है.

अपना रुख साफ करने के लिए ज्‍यादा वक्‍त लेकर शिवसेना ने पहले ही ये जता दिया था कि वह भले ही विचाराधार के नाम पर बीजेपी का साथ खड़ी नजर आती हो, लेकिन वह अपनी सहयोगी पार्टी को चैन की सांस लेने का मौका देने के पक्ष में नहीं है.

सदन की कार्यवाही से बाहर रहकर और वोटिंग की प्रक्रिया में हिस्‍सा न लेकर शिवसेना ने साफ कर दिया है कि वह अगले चुनावों में बीजेपी के सामने न केवल और ज्‍यादा सीटों की मांग करेगी, बल्‍कि आने वाले दिनों में उसके सामने शर्तों की और भी फेहरिश्‍त लेकर आएगी.

मतलब, शिवसेना ने पंचतंत्र के उस श्‍लोक को पूरी तरह चरितार्थ कर दिया है, जिसका अर्थ कुछ इस तरह है: न कोई किसी का मित्र है, न ही कोई किसी का शत्रु. अवसर पर व्‍यवहार से ही मित्र और शत्रु परखे जाते हैं.

नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी और के. चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस पर भी देश की आगे की राजनीति की दिशा-दशा तय होगी. कथित 'तीसरे मोर्चे' के गठन को लेकर इन दोनों पार्टियों के नेता काफी मुखर रहे हैं.

बीजेडी ने ये जाहिर कर दिया है कि वह वोटिंग के दौरान वॉकआउट करने जा रही है. विपक्ष की एकजुटता के लिए ये बड़ा झटका है. मोदी सरकार को एक बार फिर यह कहने का मौका मिल जाएगा कि विपक्ष की एकजुटता अभी भी दूर की कौड़ी है.

AIADMK अगर मोदी सरकार के पक्ष में वोट देती है, तो इससे सरकार खुद को और मजबूत साबित कर सकेगी.

कितना एकजुट है विपक्ष

लोकसभा में विपक्षी पार्टियों के नेता किस तरह मोदी सरकार का घेराव करते हैं और आलोचना करने के लिए किन शब्‍दों को चुनते हैं, ये भी देखने वाली बात होगी. इनके भाषण के दौरान शोर-शराबे, मेजों की थपथपाहट और तालियों से भी ये दिखेगा कि 2019 चुनाव से पहले विपक्ष कितना एकजुट हो पाया है.

सदन में क्‍या बोलेंगे मोदी और राहुल

हाल के दिनों में कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ट्वटिर के जरिए मोदी सरकार की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. किसी भी बड़े मुद्दे पर वे तत्‍काल अपनी राय दे देते हैं. ऐसे में सदन में राहुल गांधी का भाषण भी सुनने लायक है, जहां उन्‍होंने कई मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश करेंगे.

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साथ ही विपक्ष के चुभते सवालों का प्रधानमंत्री किस तरह जवाब देते हैं, ये भी देखा जाना है. गौर करने वाली बात ये है कि पीएम मोदी आम तौर पर किसी भी विवादास्‍पद मुद्दे पर तुरंत जवाब देने से बचते नजर आते हैं.

कब होंगे लोकसभा चुनाव?

लंबे वक्‍त से ऐसे कयास लगते रहे हैं कि मोदी सरकार अगले लोकसभा चुनाव के लिए शायद मई, 2019 का इंतजार न करे. इसके पीछे सीधा-सा तर्क ये है कि सरकार लोकसभा चुनाव के लिए अपने मन-मुताबिक वक्‍त जरूर चुनना चाहेगी. यानी जब सरकार को ऐसा लगे कि उसके पक्ष में माहौल बना हुआ है और विपक्ष के पास एकजुट होने या तैयार होने का मौका नहीं है.

ऐसे में अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा के बाद बीजेपी, खासकर प्रधानमंत्री के जवाब से ठोस संकेत मिल सकते हैं.

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अविश्‍वास प्रस्‍ताव का दांव कौन जीता?

अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाए जाने से पहले विपक्ष की पार्टियों ने कांग्रेस की अगुवाई खूब विचार-मंथन किया था. हालांकि प्रस्‍ताव का नोटिस मंजूर होने के बाद इस तरह की खबरें भी आईं कि कुछ पार्टियां इस प्रस्‍ताव को लेकर असमंजय में हैं.

इनमें से कुछ का ऐसा मानना था कि प्रस्‍ताव लाकर विपक्ष ने सरकार को हर मुद्दे पर सदन में अपना जवाब देने और बचाव करने का मौका दे दिया है. साथ ही जब आंकड़े सरकार के पक्ष में खड़े हैं, तो प्रस्‍ताव का गिरना विपक्ष की हार ही मानी जाएगी.

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