दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली में पीएम मोदी का NRC पर दिया बयान उनके अपने गृहमंत्री अमित शाह की बात को काटता है. एक तरफ गृहमंत्री हर जगह एनआरसी लाने की बात कहते हैं, वहीं पीएम कहते हैं कि इस पर तो कोई चर्चा ही नहीं है. तो अगर मोदी और शाह एक ही मुद्दे पर अलग-अलग बात कह रहे हैं तो आप किसपर भरोसा करेंगे? देशभर में NRC लागू किया जाएगा या नहीं, इस पर सरकार से आ रहे विरोधाभासी बयानों को लेकर अब गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.
संसद के शीतकालीन सत्र में अमित शाह ने 20 नवंबर 2019 को कहा था कि एनआरसी पूरे देशभर में आएगा. उन्होंने कहा था, एनआरसी की प्रक्रिया देशभर में होगी, उस वक्त असम में इसे दोबारा किया जाएगा. शाह के इसी बयान के बाद एनआरसी पर चर्चा काफी तेज हो गई थी.
कई बार हुई है एनआरसी पर चर्चा
अगर मोदी जी कहते हैं कि पार्टी की रैलियों में अमित शाह और दूसरे बीजेपी नेता सरकार के नुमाइंदों के तौर पर नहीं बोल रहे थे तो ये गौर कीजिएगा कि अमित शाह ने ये बात संसद में भी कही है. क्योंकि संसद में एक केंद्रीय मंत्री की कही गई बात, सरकार का आधिकारिक स्टैंड होता है. इसीलिए जाहिर है कि पीएम मोदी का ये कहना सही नहीं है कि उनकी सरकार ने 2014 के बाद कभी NRC की चर्चा तक नहीं की.
दिसंबर 2019 में ही झारखंड की एक रैली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भीा कहा था - हम पूरे देश में NRC लागू करेंगे. राजनाथ सिंह ने ये बात मोदी की रामलीला मैदान रैली से महज तीन हफ्ते पहले कही थी. वहीं अमित शाह ने कोलकाता और रायगंज की अपनी रैलियों में भी इसका जिक्र किया था.
बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में भी एनआरसी को लागू करने की बात कही थी. बीजेपी के घोषणापत्र में लिखा था -
‘’हम NRC को प्राथमिकता वाले इलाकों में पहले लागू करेंगे. भविष्य में इसे हम धीरे-धीरे पूरे देश में लागू करेंगे.’’
अलग बयानों से उठे सवाल
अब इन बयानों से कई सवाल उठने शुरू हो चुके हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या पीएम का बयान इस ओर इशारा कर रहा है कि क्या सरकार का NRC पर मन बदल गया है? या फिर सरकार कन्फ्यूजन फैलाकर CAA-NRC के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को कन्फ्यूज करना चाहती है? या फिर क्या बीजेपी प्रदर्शनों की व्यापकता को देखकर घबरा गई है? या इसलिए कदम पीछे खींचना चाहती है क्योंकि 9 गैर बीजेपी शासित राज्यों ने NRC को लागू करने से इंकार कर दिया है.
एनआरसी का विरोध करने वाले राज्यों में सिर्फ गैर बीजेपी शासित राज्य पश्चिम बंगाल और राजस्थान नहीं हैं, इसका विरोध करने वालों में ओडिशा है भी है और वो बिहार भी है, जहां बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेडीयू सत्ता में है.
NRC पर विरोधाभासी बयानों का मकसद चाहे जो हो, लेकिन सवाल ये है कि क्या सरकार की तरफ से कन्फ्यूजन दूर नहीं करना चाहिए, खासकर उस NRC पर जिससे लाखों लोग बेघर, बेवतन हो जाएंगे?
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