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चिदंबरम ने संसद में दागे 12 सवाल, सरकार से इकनॉमी का हिसाब मांगा

चिदंबरम ने सरकार पर दागे 12 सवाल, इकोनॉमी को लेकर सरकार के दावों को हवा-हवाई बताया

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बजट सत्र के दौरान बृहस्पतिवार को राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम अर्थव्यवस्था पर सरकार के रवैये के खिलाफ जम कर बरसे और बजट और इकनॉमी के मौजूदा हालात के बारे में 12 सवाल किए. उन्होंने कहा कि इतिहास में मोदी सरकार को सबसे बड़बोली और बढ़ा-चढ़ा कर आंकड़े पेश करने वाली सरकार के तौर पर पर याद किया जाएगा.

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चिदंबरम ने कहा कि 2018-19 के बजट ने राजकोषीय घाटे की स्थिति बदतर कर दी है. क्या हम लोगों से यह कहें कि एनडीए सरकार बड़े कॉरपोरेट घरानों के बजाय मेहनतकश मिडिल क्लास पर टैक्स लगाने में विश्वास करती है. उन्होंने एक के बाद एक ट्वीट कर संसद में पूछे गए इन सवालों की जानकारी दी.

चिदंबरम ने जीडीपी ग्रोथ के दावों पर सवाल करते हुए कहा कि इस ग्रोथ की बात बढ़ा-चढ़ा कर की जा रही है. 2014 से तो जीडीपी आंकड़े में कोई बदलाव ही नहीं आया. सरकार के कदमों से 2018-19 का बजट में राजकोषीय घाटा सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाएगा

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चिदंबरम ने कहा कि भारत ऐसा देश है, जहां सरकार जीडीपी बढ़ने का दावा कर रही है, लेकिन नौकरियां और रोजगार घट रहे हैं. सरकार रोजगार बढ़ाने के सवाल पर हवा-हवाई दावे कर रही है. दरअसल, रोजगार सिर्फ कागजों में बढ़ रहा है.

बजट के बाद क्विंट के एडोटिरयल डायरेक्टर संजय पुगलिया से एक खास बातचीत में उन्होंने बजट में लाए गए हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम को बिना फंड का सबसे बड़ा जुमला करार दिया था. इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि पीएम पकौड़े बेचने को रोजगार मान रहे हैं. पकौड़ा बेचना सम्मान का काम है लेकिन यह रोजगार नहीं है.

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अच्छा डॉक्टर, बिगड़ैल मरीज

इससे पहले चिदंबरम ने सरकार के आर्थिक सर्वे के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम को अच्छा डॉक्टर लेकिन मोदी सरकार को बिगड़ैल मरीज करार दिया था. उन्होंने कहा था कि सरकार लगातार हालात से मुकर रही है. वह देश में बेरोजगारी को नजरअंदाज कर रही है. किसानों और खेती-बाड़ी के हालात को नजर अंदाज कर रही है. अभी यह इकोनॉमी के डाक्टर की डायग्नोसिस और नुस्खे के इस्तेमाल से भी इनकार कर रही है.

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आर्थिक सर्वे के मुताबिक कुछ सालों से बचत और निजी निवेश में लगातार कमी आई है. इन्हीं दो इंजनों के सहारे अर्थव्यवस्था ने 2000 के दशक के मध्य में उड़ान भरी थी, पर अब ये तब के मुकाबले धीमी गति से चल रहे हैं. लिहाजा सरकार को निजी निवेश को पटरी पर लाने की योजना घोषित करनी चाहिए. लेकिन सरकार किसी की सुने तब तो.

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