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नेताओं की वो यात्राएं, जिसने बदल दी उनकी राजनीतिक कुंडली

कई नेताओं ने ऐसी यात्राएं की हैं, जिनका उन्हें राजनीतिक फायदा मिला है

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अभी हाल ही में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी 'नर्मदा यात्रा' पूरी की है. सक्रिय राजनीति से दूर रहकर सिंह ने 6 महीने तक पदयात्रा की. उन्होंने अपनी इस लंबी यात्रा को राजनीति से दूर धार्मिक और अध्यात्मिक बताया. लेकिन जब इस साल के अंत में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव है तो इस यात्रा के राजनीतिक मायनों पर बात लाजिमी है.

हालांकि ये किसी नेता की पहली यात्रा नहीं है, जिसके राजनीति मायने दिख रहे हो. इससे पहले कई नेताओं ने ऐसी यात्राएं की हैं, जिनका उन्हें राजनीतिक फायदा मिला है.

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दिग्विजय की यात्रा से खत्म होगा कांग्रेस का वनवास?

लगातार 10 सालों तक सत्ता पर काबिज रहने के बाद दिग्विजय सिंह और कांग्रेस को 2003 के चुनाव में मध्य प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा. तब से कांग्रेस मध्य प्रदेश की सत्ता पर फिर से काबिज होने की कोशिश में लगी हुई है.

दिग्विजय ने अपनी 3300 किलोमीटर लंबी पदयात्रा के दौरान मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 110 सीटों का दौरा किया. इस दौरान वह जनता से भी मिले और उनकी समस्याएं भी सुनीं.

ऐसे में राजनीतिक गलियारे में ये चर्चा तेज है कि क्या इस यात्रा से कांग्रेस का मध्यप्रदेश का वनवास खत्म हो जाएगा? दिग्विजय की इस यात्रा को राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर अपना कद बड़ा करने का मास्टर स्ट्रोक भी माना जा रहा है. खैर इसका असर तो चुनाव बाद ही पता चलेगा.

आइए आपको बताते हैं ऐसे खास पदयात्राओं के बारे में जिसने नेताओं की किस्मत बदल दी

आडवाणी की रथयात्रा ने बदली बीजेपी की किस्मत

90 के दशक में आडवाणी की यात्रा काफी सुर्खियों में रही. राम मंदिर आंदोलन के दौरान साल 1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी से रथयात्रा निकाली. उनकी यह रथयात्रा सोमनाथ से अयोध्या तक जानेवाली थी. हालांकि अयोध्या पहुंचने के रास्ते में यात्रा को बिहार में रोक लिया गया और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया.

लेकिन इस रथयात्रा ने बीजेपी और आडवाणी दोनों की किस्मत चमका दी. चंद इलाकों तक सीमित इस पार्टी की पहुंच देश के कोने-कोने तक पहुंच गई. इस यात्रा के बाद से बीजेपी लगातार ऊंचाईयों की तरह ही बढ़ती गई.

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साइकिल यात्रा ने अखिलेश को पहुंचाया UP के सिंहासन तक

पदयात्रा और रथयात्रा के साथ-साथ साइकिल यात्रा ने भी राजनीति में लोगों का किस्मत चमकाने का काम किया है. उत्तर प्रदेश में 2012 विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के युवा नेता अखिलेश यादव ने राज्य में साइकिल यात्रा की.

अपने समर्थकों के साथ साइकिल से जनता के बीच जाने का अखिलेश का फायदा मिला और चुनाव में जनता ने साइकिल पर जबरदस्त तरीके से मुहर लगायी.

अखिलेश की इस साइकिल यात्रा से ऐसा हुआ, जो मुलायम सिंह यादव अपने सियासी जीवन में नहीं कर पाए थे. एसपी पहली बार 224 के आंकड़ा को पार कर बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुई और अखिलेश देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.

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सिर्फ उत्तर और मध्य भारत ही नहीं दक्षिण भारत में भी यात्राओं का शानदार इतिहास रहा है. आंध्र की राजनीति में तो पदयात्रा का कुछ ऐसा इतिहास रहा है कि वहां की राजनीति में सत्ता तक पहुंचाने का सबसे सटीक तरीका पदयात्रा को माना जाता है. 
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YSR को पदयात्रा ने दिलाई आंध्र की सत्ता

2004 के विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले 2003 में कांग्रेस नेता वाईएसआर रेड्डी ने कड़ी गर्मी में किसानों के सपोर्ट में 1600 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की. इस यात्रा से वे किसान और आम लोगों के बीच हीरो बन गए.

विधानसभा चुनाव में रेड्डी की इस यात्रा ने कांग्रेस को शानदार जीत दिलाई और सत्ता पर काबिज हुए. वहीं 2004 लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस को 27 सीटें दिलाने में कामयाबी हासिल की.

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पदयात्रा से सत्ता गंवाने से सत्ता तक पहुंचे चंद्रबाबू

वाईएसआर रेड्डी की पदयात्रा की वजह से 2004 में चंद्रबाबू नायडू ने अपनी सत्ता गंवाई थी. लेकिन 2014 में इसी पदयात्रा का सहारा लेकर नायडू दोबारा आंध्र की सत्ता पर काबिज भी हो गए. 2014 में नायडू ने करीब 2400 किलोमीटर की पदयात्रा की. चुनाव परिणाम में इसका फायदा उन्हें मिला और सत्ता में उन्होंने वापसी कर ली.

इन सबसे पहले 1989 में चन्ना रेड्डी भी आंध्र प्रदेश में पदयात्रा कर चुके हैं और इस पदयात्रा ने उन्हें भी सत्ता तक पहुंचाने का काम किया.

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जगनमोहन रेड्डी की पदयात्रा का 2019 में दिखेगा कमाल!

इन दिनों वाईएसआर रेड्डी के बेटे और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी पदयात्रा पर हैं. 2019 चुनाव की तैयारी के लिए और आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिलाने की मांग को लेकर नवंबर 2017 में उन्होंने पदयात्रा की शुरुआत की.

उनकी इस यात्रा का सियासी फायदा तो 2019 चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा. लेकिन फिलहाल इस पदयात्रा से डरकर आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए से अलग होने का फैसला कर लिया. और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक लाने के लिए जी-जान से जुट गए.

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चंद्रशेखर की भारत यात्रा

इन हालिया यात्राओं के अलावा 80 के दशक में देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी लंबी पदयात्रा कर चुके हैं. 'भारत यात्रा' नाम से उनकी इस यात्रा को भी काफी तवज्जो भी मिली. 1983 में उन्होंने कन्याकुमारी से दिल्ली के राजघाट तक 4000 किलोमीटर से ज्यादा की पदयात्रा की.

ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं, सामाजिक असमानताओं और जातिवाद की जड़ को खत्म करने के मकसद से उन्होंने ये यात्रा की थी. इस यात्रा का उन्हें तुरंत राजनीतिक फायदा तो नहीं मिला लेकिन आगे चलकर उन्हें इसका फायदा मिला और 1990 में देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की.

ये भी पढे़ं- आखिर रेड्डी की पदयात्रा से क्यों डरते हैं चंद्रबाबू नायडू

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