ADVERTISEMENTREMOVE AD

इफ्तार दावत के सियासी खेल में इस बार दिखेगा 360 डिग्री का चेंज

ऐसी दावतों से यह तय होता है कि कौन-सी पार्टी चुनावी बिसात पर धर्म और जाति का कौन-सा कार्ड चलने वाली है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

इफ्तार की दावत के बहाने वोटबैंक बनाने और सियासी समीकरण तैयार करने का खेल भारत की राजनीति के लिए नया नहीं है. इस बार भी इफ्तार पार्टी के बहाने सियासी दल चुनावी हिसाब-किताब दुरुस्‍त करने की ताक में हैं.

खास बात यह है कि इस बार इफ्तार पार्टी का खेल 360 डिग्री टर्न लेता दिख रहा है. एक ओर कांग्रेस ऐसी दावतों से दूरी बना रही है, तो दूसरी ओर आरएसएस ‘इंटरनेशनल इवेंट’ के जरिए ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का नारा बुलंद करने की कोशिश कर रहा है.

दरअसल, ऊपर-ऊपर चाहे कोई कुछ भी तर्क दे, पर दावत देने और न देने के पीछे का गणित एकदम अलग है. हम एक-एक करके बड़ी पार्टियों और संगठनों के बदले हुए मंसूबे टटोलने की कोशिश करते है.

कांग्रेस ने इफ्तार से बनाई दूरी, ये रही वजह...

कांग्रेस इस बार इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं करने जा रही है. कांग्रेस का कहना है कि देश में किसानों की बदहाली और महंगाई से जूझ रहे तबके का साथ देने के लिए वह ऐसी दावत नहीं देगी. इस मौके पर वह गरीबों को खाने-पीने की चीजें दान करने की बात कह रही है.

ऐसी दावतों  से यह तय होता है कि कौन-सी पार्टी चुनावी बिसात पर धर्म और जाति का कौन-सा कार्ड चलने वाली है.
इफ्तार पार्टी में उमर अब्‍दुल्‍ला के साथ राहुल गांधी (फाइल फोटो: PTI)

परंतु इसके पीछे असली कारण कुछ और ही है. दरअसल, इफ्तार पार्टियों में कौन शिरकत करता है, कौन नहीं, इसी के आधार पर मीडिया में कई तरह की गैरजरूरी अटकलबाजियों का दौर चलता है.

कांग्रेस यह बात अच्‍छी तरह समझ चुकी है कि मुसलमानों के हित में कोई ठोस कदम उठाए बिना केवल तड़क-भड़क वाली दावत देने से यह समुदाय अब चिढ़ने लगा है. 

कांग्रेस इन सबसे बचना चाहती है. कारण और भी हैं.

कांग्रेस को बहुसंख्‍यक वोटों की भी चिंता

कांग्रेस के इरादे कुछ और भी हैं. वैसे तो कांग्रेस लंबे समय से बड़े धूमधाम से इफ्तार पार्टी का आयोजन करके मुस्‍ल‍िम वोटों पर हक जताने और जमाने की कोशिश करती आई है. पर इस बार यूपी और कुछ अन्‍य राज्‍यों में विधानसभा चुनाव की वजह से भी अलग रणनीति अपना रही है. इफ्तार से दूरी बनाकर वह यूपी में बहुसंख्‍यक वोटों में सेंध लगाने की फिराक में है. कांग्रेस की इमेज अब तक मुस्‍ल‍िम तुष्‍ट‍िकरण की नीति पर चलने वाली पार्टी की रही है, सो अब वह बीच-बीच का रास्‍ता चुनकर इसकी भरपाई करने की कोशिश में है.

बीजेपी के मुस्‍ल‍िम चेहरों पर दारोमदार

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के दौर के बाद बीजेपी औपचारिक तौर पर इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं करती है. हालांकि मुख्‍तार अब्‍बास नकवी और शाहनवाज हुसैन जैसे नेता दावत देकर इसकी भरपाई करते हैं. बीजेपी के सामने दुविधा की स्थिति है. एक ओर उसे यूपी में अपने परंपरागत बहुसंख्‍यक वोटों को हासिल करने की चाह है, दूसरी ओर अपनी कट्टर हिंदूवादी सोच वाली छवि से उबरने की भी फिक्र है.

ऐसी दावतों  से यह तय होता है कि कौन-सी पार्टी चुनावी बिसात पर धर्म और जाति का कौन-सा कार्ड चलने वाली है.
तब सुशील मोदी बिहार के उपमुख्‍यमंत्री थे (फाइल फोटो: PTI)
चुनाव से पहले बिसाहड़ा कांड से बीजेपी की इमेज को नुकसान पहुंचा है.

लिहाजा इफ्तार पर पार्टी के मुस्‍ल‍िम चेहरों पर ही इस बार संतुलन बनाने की बड़ी जिम्‍मेदारी है.

बीजेपी का बचा हुआ काम करेगा आरएसएस

जो काम बहुसंख्‍यक वोट खोने की आशंका में बीजेपी नहीं करती, वह इस बार आरएसएस करने जा रहा है. संघ 2 जुलाई को इंटरनेशनल लेवल पर मुस्‍ल‍िम समुदाय को इफ्तार दावत देने जा रहा है, जिसमें पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देशों के राजदूतों को न्‍योता भेजा गया है.

आरएसएस की कोशिश ये है कि वह अल्‍पसंख्‍यक समुदाय को लजीज व्‍यंजनों की थाली परोसकर अपनी पुरानी छवि को सुधारे और इसी बहाने चुनाव के पहले बीजेपी की खातिर ‘बल्‍ले के दोनों ओर से बैटिंग’ करे.

हालांकि औपचारिक तौर पर इफ्तार का आयोजन आरएएस का सहयोगी संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच कर रहा है. संगठन का कहना है कि उसका लक्ष्य इफ्तार के जरिए दुनिया को भारतीयता का संदेश देना है. साथ ही सभी समुदाय के लोगों के बीच भाईचारे बढ़ाने में मदद करना है.

जेडीयू के ‘पीएम मेटेरियल’ का रुख

पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली ताकतवर बीजेपी को जिसने बिहार में पानी मांगने तक का मौका नहीं दिया, उस पार्टी की रणनीति इस बार साफ है. जेडीयू अध्‍यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश कुमार इस बार इफ्तार दावत में बीजेपी विरोधी दलों को न्‍योता देंगे और राष्‍ट्रीय राजनीति के दमदार चेहरों की मौजूदगी में खुद को फिर से ‘पीएम मेटेरियल’ से आगे बढ़कर ‘पीएम दावेदार’ साबित करने की कोशिश करेंगे.

वे खुद मानें या न मानें, लेकिन यह बात जाहिर है कि वे ‘मिशन 2019’ में अभी से जुट चुके हैं.

ऐसी दावतों  से यह तय होता है कि कौन-सी पार्टी चुनावी बिसात पर धर्म और जाति का कौन-सा कार्ड चलने वाली है.
इफ्तार की दावत में बिहार के सियासी दिग्‍गज लालू प्रसाद और नीतीश कुमार (फाइल फोटो: PTI)

आरजेडी को कुछ छुपाने की जरूरत नहीं

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद की रणनीति एकदम साफ है. वे हर साल की तरह इस बार भी खुद दावत का आयोजन करेंगे और इफ्तार दावतों में टीवी चैनलों के कैमरे के आगे खूब चमकेंगे. मुस्‍ल‍िम वोटरों को लुभाने की उनकी ये अदा बहुत-बहुत पुरानी है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×