कांग्रेस ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री सिलेक्ट करने का जो तरीका अपनाया, वो है न्यू राहुल फॉर्मूला. इसमें एक्शन और सस्पेंस के साथ थोड़ा फैमिली इमोशन भी है. ज्यादा नहीं, सिर्फ 5 प्वाइंट में बताता हूं कि अशोक गहलोत और कमलनाथ को मुख्यमंत्री चुनने का क्या मतलब है और आगे की स्क्रिप्ट कैसी होगी.
लेकिन पहले दो तस्वीरों को ध्यान से देखिए, जिसमें पुरानी और नई पीढ़ी के ब्रिज हैं राहुल गांधी. ज्योतिरादित्य-कमलनाथ और अशोक गहलोत-सचिन पायलट.
1.राजस्थान में गहलोत और मध्य प्रदेश में कमलनाथ को मुख्यमंत्री क्यों बनाया?
मीडिया में बहस चल रही है, सवाल भी खूब उठाए जा रहे हैं, लेकिन साफ तौर पर कोई समझा नहीं पा रहा है. कांग्रेस के इस फैसले के पीछे राजनीतिक हकीकत क्या है, जान लीजिए.
राजस्थान और मध्य प्रदेश दो बड़े राज्य हैं. दोनों राज्यों में लोकसभा की 54 सीटें आती हैं. इसलिए राजनीतिक और प्रशासन में अनुभव जरूरी था. विधानसभा चुनाव के वक्त किए गए वादों पर अमल भी जरूरी होगा, जिससे 2019 में फायदा हो.
अशोक गहलोत इसके पहले दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और राजस्थान को उंगलियों में समझते हैं.
कमलनाथ 9 बार से लोकसभा के सांसद हैं, 1980 के बाद करीब-करीब हर कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हैं.
2. युवा नेताओं को CM की गद्दी क्यों नहीं दी?
ज्योतिरादित्य और सचिन पायलट, दोनों अपने-अपने राज्यों के बड़े नेता हैं, लेकिन अनुभव में नए हैं. बीजेपी से मुकाबला करने के लिए इस वक्त कांग्रेस को अनुभव की जरूरत है, जिससे वो विधानसभा की इस सफलता को आगे भी बनाए रखें.
लोकसभा चुनाव के दौरान ज्योतिरादित्य और पायलट प्रचार में ज्यादा काम आएंगे और उनके पास इसके लिए वक्त होगा.
3. सिंधिया और सचिन ने इन हालात को कैसे हैंडल किया?
इस मामले में ज्योतिरादित्य आगे निकल गए. डिप्टी सीएम का पद न लेकर ज्योतिरादित्य बड़े नेता हो गए, लेकिन मुख्यमंत्री पद की जिद करके सचिन पायलट ने अपना कद कम कर लिया. आखिरकार वो डिप्टी सीएम पर माने, लेकिन वो अपने लिए बड़ी पिक्चर नहीं देख पाए, जो ज्योतिरादित्य ने देख ली.
सिंधिया ने उपमुख्यमंत्री बनने से इनकार कर दिया, लेकिन सचिन रूठे बच्चों की तरह अड़ गए. वो ये भांप ही नहीं पाए कि इस चक्कर में उन्होंने अपने प्रोफाइल को कैसे कम कर दिया. ये उनको भी मालूम होगा कि डिप्टी CM खास परिस्थितियों, जैसे गठबंधन टाइप के हालात में बनाया जाता है. लेकिन ये अलग से संवैधानिक पद नहीं है. डिप्टी सीएम सिर्फ एक पदनाम है. कैबिनेट मंत्रियों से अलग उसके कोई अधिकार नहीं होते. सबसे बड़ी ताकत CM के पास ही होता है.
4. सचिन को सीएम बनाने से जातीय कैलकुलेशन गड़बड़ होता
राजस्थान में अलग-अलग जातियां हैं, जो एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी भी हैं. सचिन पायलट गुर्जरों के बड़े नेता माने जाते हैं. लेकिन राजस्थान के प्रभावशाली मीणा समुदाय की गुर्जरों से नहीं पटती. इसी तरह जाट भी गुर्जरों को प्रतिद्वंद्वी की तरह देखते हैं. ऐसे में पायलट को मुख्यमंत्री बनाने से कांग्रेस को मीणा और जाटों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता था. दूसरी ओर गहलोत, माली समुदाय से आते हैं, जो किसी का प्रतिद्वंद्वी नहीं माना जाता. इसलिए आगे चुनाव को देखते हुए भी कांग्रेस के लिए गहलोत को ही सीएम बनाने में समझदारी दिखी.
5. क्या कांग्रेस में पुरानी और नई पीढ़ी में टकराव है?
इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है, ये बड़ा स्वाभाविक है. लेकिन ये भी सच है कि राहुल बैलेन्स बनाने में लगे हैं. पहले सीनियर को असुरक्षा थी कि राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कहीं उन्हें अलग-थलग न कर दिया जाए. लेकिन राहुल धीरे-धीरे सीनियर और नए, दोनों लोगों के साथ तालमेल बनाने में जुटे हैं.
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य और कमलनाथ और राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद उन्होंने जिस तरह हल किया, उससे सीनियर का भरोसा उन पर जरूर बढ़ा होगा.
राहुल अब समझ गए हैं कि पार्टी को चुनाव जिताऊ मशीन बनाने के लिए पुरानी पीढ़ी की भी उतनी ही जरूरत है. दोनों पीढ़ी के साथ चलने के लिए वो उनके अनुभव और ऊर्जा, दोनों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
इसके अलावा राजस्थान में इतने हाई वोल्टेज ड्रामा में पर्यवेक्षक केसी वेणुगोपाल का रोल भी बड़ा मेच्योर था. वो अपेक्षाकृत युवा नेता हैं, लेकिन उन्होंने परदे के पीछे मामले को अच्छे से हैंडल किया. कर्नाटक में भी वो अपनी प्रतिभा दिखा चुके थे.
तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत और उसके बाद मुख्यमंत्रियों के सिलेक्शन के तरीके से साफ है कि नई और पुरानी पीढ़ी के बीच कुछ रस्साकशी के बावजूद राहुल ने मेल-मिलाप का तरीका निकाल लिया है. कांग्रेस अध्यक्ष का ये एक्सपेरिमेंट संगठन और सरकार, दोनों में बहुत काम आएगा.
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