राजस्थान विधानसभा चुनाव... 21 फरवरी 1985 को भरतपुर (Maan Singh Murder) में चली पुलिस की गोलियों की आवाज दिल्ली में बैठे सत्ता के हुक्कमरानों की कानों में गूंजी थी. यहां पुलिस ने भरतपुर (Bharatpur Encounter) रियासत के एक राजकुमार को चारों तरफ से घेरकर उसपर गोलियां बरसाईं थीं. उस वक्त वो राजकुमार भरतपुर की डीग विधानसभा से तत्कालीन विधायक था.
आजाद भारत के इतिहास की ये पहली घटना थी, जब किसी सीटिंग विधायक का सरकारी मुलाजिमों ने दिनदहाड़े फर्जी एनकाउंटर किया था और वो भी उसके इलाके में. इस घटना के बाद, राजस्थान समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में तनाव पैदा हो गया था. भरतपुर में भारी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए. प्रशासन को पूरे इलाके में कर्फ्यू लगाना पड़ा था. भरतपुर हिंसा और आगजनी के कारण जल रहा था. पुलिस की उग्र भीड़ को कंट्रोल करने के लिए गोलियां चलानी पड़ी. जिसमें कई लोग मारे भी गए थे.
सियासत में आज बात 'गैंग्स ऑफ भरतपुर' की, जब एक सियासी रंजिश की वजह से राजा मान सिंह का दिनदहाड़े फर्जी एनकाउंटर किया गया. राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान सियासी रंजिश में की गई इस हत्या को शासन-प्रशासन की तरफ से पुलिस मुठभेड़ बताने की खूब कोशिश हुई पर यह कोशिश आखिरकार नाकाम रही. आखिर पूरा मामला क्या था और राजा मानसिंह की लोकप्रियता और सियासी हैसियत क्या थी, जिनकी हत्या के बाद कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ी थी.
1947 में जब भारत आजाद हुआ तो उस वक्त राजा मान सिंह भरतपुर रियासत के मंत्री थे और उनके बड़े भाई बृजेंद्र सिंह राजा थे. मान सिंह ने आजद भारत में अपनी रियासत का विलय तो कर दिया, लेकिन अपने किले से रियासत का झंडा उतारने से साफ मना कर दिया. बाद में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद तिरंगा और रियासत का यानी दोनों झंडे लगाने पर सहमति बनी. देश में राजनीति का ये वो दौर था, जब राजसी वैभव अपने महलों से निकलकर लोकतंत्र की चौखट पर दस्तक दे रहा था.
आजादी के कई दशक गुजर जाने के बाद अब लोकतंत्र अपनी जड़ें मजबूत कर चुका था. देश के कई राजपरिवार के सदस्य अलग-अलग जगहों से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. क्योंकि, उस वक्त कांग्रेस ही एक मात्र ऐसा दल था, जिसकी ज्यादातर राज्यों में सरकारें थीं. लेकिन, राजा मानसिंह को किसी दल में जाना मंजूर नहीं था. इसलिए कांग्रेस से उनका समझौता था कि वह उनके खिलाफ उम्मीदवार भले उतारे, लेकिन कोई बड़ा नेता प्रचार करने नहीं आएगा.
राजा मान सिंह 1952 से 1984 तक डीग विधानसभा क्षेत्र से लगातार निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे. 1977 की जनता लहर और 1980 की इंदिरा लहर में भी वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. लेकिन, कांग्रेस के अंदर ही कुछ लोगों को यह बात खटकती रही कि पार्टी मान सिंह को वॉक ओवर क्यों देती है और भरतपुर रियासत में दो झंडे क्यों लगाए जाते हैं?
1947 से 1985 तक आते-आते देश भले ही कई राजनीतिक बदलावों से गुजर चुका था, लेकिन भरतपुर रियासत का झंडा अभी भी भरतपुर और डीग के किले पर लहराता नजर आता था. जब इस परिवार के लोग चुनाव लड़ते थे तो चुनाव चिह्न के अलावा रियासत का झंडा ही इनकी पहचान थी. कहा जाता है कि रियासत के झंडे के प्रति न सिर्फ राज परिवार बल्कि भरतपुर से लगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भी बड़ा सम्मान था. 1985 में हुए राजा मानसिंह हत्याकांड की असली कहानी भरतपुर रियासत के झंडे के अपमान के इर्द गिर्द ही घूमती नजर आती है.
दरअसल, 1984 में इंदिरा गांधी हत्या के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस को 1985 के चुनाव में बहुत उम्मीदें थीं. राजस्थान में भी विधानसभा के चुनाव होने थे. उस वक्त राजस्थान में कांग्रेस के शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री थे. बताया जाता है कि उन्होंने डीग की सीट को नाक का सवाल बना लिया था और हर हाल में इस सीट को जीतना चाहते थे, क्योंकि, 1985 तक कांग्रेस इस विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल नहीं कर पाई थी.
ऐसे में कांग्रेस ने मानसिंह के सामने किसी दूसरे राजा को उतारना बेहतर समझा. कांग्रेस की तलाश एक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी बृजेंद्र सिंह के रूप में हुई क्योंकि उनकी भी पृष्ठभूमि एक शाही परिवार की थी. उन्हें राजा मानसिंह के विरोध में खड़ा कर दिया गया. इसके साथ ही ये भी ऐलान कर दिया गया कि खुद मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर कांग्रेस उम्मीदवार के लिए वोट मांगने डीग विधानसभा क्षेत्र का दौरा करेंगे.
20 फरवरी 1985...तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर डीग में कांग्रेस उम्मीदवार के लिए सभा करने वाले थे. सभा स्थल से कुछ ही दूरी पर एक स्कूली मैदान में हेलीपैड बनाया गया था, जहां वो उतरने वाले थे. ये पहली बार था, जब कोई बड़ा नेता कांग्रेस उम्मीदवार के लिए चुनाव सभा करने आ रहा था. इस खबर से उत्साहित कांग्रेस समर्थकों ने भरतपुर किले में लाखा तोप के पास लगे राजा मान सिंह के रियासत-कालीन झंडे को हटाकर वहां कांग्रेस का झंडा लगा दिया, कई जगहों पर राजा मानसिंह के पोस्टर को फाड़ दिया गया. ये बात राजा मान सिंह को नागवार गुजरी और झंडे के अपमान के बाद उन्होंने जो किया, वह इतिहास बन गया.
झंडे उतारे जाने से नाराज राजा मान सिंह अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस सभा स्थल पर पहुंच गए और कांग्रेस के मंच को तहस नहस कर दिया. तब तक पता चला कि मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर का हेलिकॉप्टर स्कूल के मैदान में उतर चुका है. गुस्साए राजा मान सिंह ने अपनी जीप की स्टेयरिंग मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर की तरफ घूमा दी. जब तक राजा मान सिंह हेलीपैड तक पहुंचे, तब तक सीएम शिवचरण माथुर सभा स्थल के लिए निकल चुके थे. गुस्से से तमतमाए राजा मानसिंह ने अपनी जोंगा जीप से हेलिकॉप्टर को ही कई बार टक्कर मार दी, जिसकी वजह से हेलीकाप्टर क्षतिग्रस्त हो गया, लिहाजा, मुख्यमंत्री को हेलीकॉप्टर छोड़ सड़क मार्ग से जयपुर जाना पड़ा था.
कहा जाता है कि जयपुर पहुंचने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने भरतपुर पुलिस के आला अधिकारियों को जमकर झाड़ लगाई थी और राजा मानसिंह के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के आदेश दिए थे. इस घटना के बाद प्रशासन की ओर से आशंका जताई गई कि कांग्रेस और राजा के समर्थक आपस में भिड़ सकते हैं. इसलिए डीग में कर्फ्यू लगा दिया गया और राजा के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया.
एक दिन बाद, 21 फरवरी 1985 को राजा मान सिंह क्षेत्र में प्रचार के लिए अपने समर्थकों के साथ जीप में बैठकर निकले थे. हालांकि, उनके समर्थकों ने उन्हें मना किया था कि कांग्रेस की सरकार है और आपने सीधे मुख्यमंत्री को चुनौती दी है, कर्फ्यू भी लगा हुआ लेकिन राजा मानसिंह का कहना था उनकी रियासत में उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा.
राजा मान सिंह की जीप जैसे ही अनाज मंडी पहुंची, पुलिस ने उन्हें हाथ से रुकने का इशारा किया. लेकिन मानसिंह ने इशारे से कहा कि वहां नहीं थोड़ा आगे रुकेंगे. इस पर पुलिस के ड्राइवर महेंद्र सिंह ने पुलिस जीप को राजा की जीप के आगे खड़ा कर दिया. जब राजा अपनी गाड़ी को पीछे करने लगे, तभी पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी. इसमें मानसिंह, सुमेरसिंह और हरिसिंह को गोली लगी. सभी को भरतपुर के अस्पताल लाया गया, जहां मानसिंह को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. इसी जीप में राजा के दामाद विजय सिंह सिरोही भी सवार थे, जो किसी तरह बच गए.
राजा मानसिंह की हत्या के बाद राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में तनाव पैदा हो गया. भरतपुर में भारी संख्या में लोग सड़कों पर आ गए. वहां कर्फ्यू लगाना पड़ा. खूब आगजनी और हिंसा हुई. पुलिस को गोली भी चलानी पड़ी. इसमें कई लोग मारे भी गए. सरकार के लिए हालात काबू में करना मुश्किल हो गया. मानसिंह की शव यात्रा में शोकाकुल लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. इसमें फिर भीड़ और पुलिस में भिड़ंत हो गई. इस भिड़ंत में भी तीन लोगों की जान चली गई.
इस घटना के बाद कांग्रेस आलाकमान ने तुरंत तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को इस्तीफा देने का निर्देश दिया, जिसके बाद उन्होंने 22 फरवरी की आधी रात को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. एक इंटरव्यू में शिवचरण माथुर ने बताया था कि...
"22 फरवरी, 1985 की रात उन्हें राजीव गांधी के निजी सहायक माखनलाल फोतेदार का फोन आया कि इस घटना से भरतपुर और मथुरा के जाट बाहुल्य क्षेत्रों में गलत संदेश जाएगा, इसलिए पद से त्यागपत्र दे दें. इसके बाद मैंने उसी रात इस्तीफा दे दिया."शिवचरण माथुर, पूर्व सीएम, राजस्थान
इस घटना के 35 साल बाद आखिरकार कोर्ट ने दोषी 11 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई और राज परिवार को लोकतंत्र की चौखट से न्याय मिला. मौजूदा वक्त में राजा मानसिंह के भतीजे विश्वेंद्र सिंह उसी डीग विधानसभा से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं.
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