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बिहार की राजनीति में कांग्रेस का कल, आज और कल

बिहार चुनाव में कांग्रेस ने 27 सीटें जीत कर बिहार की राजनीति में शानदार वापसी की है. पढ़ें नीना चौधरी के विचार.

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बिहार के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ऐतिहासिक जीत पर राजद और जदयू कार्यकर्ताओं का खुशी से झूमना स्वाभाविक है. लेकिन, कांग्रेस के लिए ये जीत राजद और जदयू से भी ज्यादा खास है.

ऐसा क्यों है ये जानने के लिए आपको बिहार की राजनीति में कांग्रेस के अब तक के सफर पर नजर डालनी होगी.

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भारत की आजादी के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अविभाजित बिहार की 324 विधानसभा सीटों में से 239 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2010 में बिहार के विभाजित होने के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन दिया और 243 विधानसभा सीटों में से मात्र 4 सीटें हासिल कीं. साल 2014 के उपचुनावों में कांग्रेस ने एक और सीट जीती.

ऐसे में इन चुनावों में 5 से 27 सीटों तक का सफर तय करके कांग्रेस ने शानदार कमबैक किया है.

लालू यादव ने किया सत्ता से बाहर

लालू यादव ने 1990 में जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर किया था. अक्टूबर-नवंबर 1989 के दंगों से त्रस्त होने के बाद बिहार की जनता ने कभी कांग्रेस को सत्ता नहीं सौंपी. इन दंगों में लगभग 1,000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

साल 1991 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ सिर्फ 71 सीटें लगीं जो पिछले चुनाव से 125 सीटें कम थीं.

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स्नैपशॉट

एक नजरः बिहार की राजनीति में कांग्रेस का सफर

अविभाजित बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन

1951: 239

1957: 250

1962: 185

1967: 128

1969: 118

1972: 167

1977: 57

1980: 169

1985: 196

1990: 71

1995: 29

2000: 23

विभाजन के बाद बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन

2005:

2010: 5 (4+1 सीट उपचुनाव में जीती)

2015: 27

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लालू के साथ हुई वापसी

 बिहार चुनाव में कांग्रेस ने 27 सीटें जीत कर बिहार की राजनीति में शानदार वापसी की है. पढ़ें नीना चौधरी के विचार.
लालू यादव और नीतीश कुमार (फोटोः PTI)

मंडल दौर के बाद लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक कद में दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हुई. साल 1995 के चुनावों में कांग्रेस मात्र 29 सीटों पर सिमट गई. बीजेपी इन चुनावों में 41 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनने में सफल हुई.

इसके बाद साल 2000 में लालू यादव ने कांग्रेस के 23 विधायकों को राबड़ी देवी कैबिनेट में शामिल किया. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सदानंद सिंह को असेंबली स्पीकर भी बनाया गया.

इसके बाद कांग्रेस ने दोबारा कभी बिहार में अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने की मजबूत कोशिश नहीं की. प्रदेश स्तर पर किसी ओबीसी या महादलित नेता को भी तैयार नहीं किया गया.

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कांग्रेस को बिहार की राजनीति में की हुईं गलतियों से सबक नहीं लेने का परिणाम 2005 के चुनावों में मिल गया. इन चुनावों में कांग्रेस के हाथ मात्र 5 सीटें आईं. अगले चुनावों (2010) में कांग्रेस सिर्फ चार सीटें हासिल कर सकी.

इसके पांच साल बाद 2015 में कांग्रेस ने एक बार फिर विधानसभा चुनावों की नैया पार करने के लिए लालू का हाथ थामा. कहा जाता है कि इन चुनावों में लालू और नीतीश ने कांग्रेस के उम्मीदवारों को चुना. यही नहीं चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ने 6 और राहुल गांधी ने 10 रैलियां कीं. इस चुनाव की पूरी जिम्मेदारी लालू और नीतीश ने अपने कंधों पर संभाली और कांग्रेस को 41 में से 27 सीटों पर जीत दिलाई.

हालांकि, कांग्रेस ने बिहार की राजनीति में वापसी की है लेकिन इसे बरकरार रखने के लिए कांग्रेस को बिहार में नेताओं की नई फौज तैयार करनी पड़ेगी.

(लेखिका बिहार की राजनीति पर लिखने वाली पत्रकार हैं)

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