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उपचुनाव में BJP की हार,साथी भी रूठे, क्या मुश्किल होगी 2019 की राह

2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी,

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राजस्थान उपचुनाव में बीजेपी की हार आने वाले 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए खतरे की घंटी है. हार भी छोटी-मोटी नहीं बल्कि कांग्रेस ने बीजेपी के किले में ऐसा सेंध लगाया कि बीजेपी को इतनी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी.

भले ही बीजेपी ने अलवर और अजमेर की दो सीटें ही हारी हैं, लेकिन ये हार बहुत कुछ कहता है. बीजेपी के लिए मिशन 2019 काफी मुश्किल होने वाला है. एक तरफ उसकी हार तो दूसरी तरफ उसके सहयोगी अभी से किनारा करने लगे हैं. अगर बीजेपी अकेले दम पर बहुमत का आकड़ा नहीं पार पाती है और ऊपर से उसके साथी भी अलग हो जाएंगे, तो बीजेपी की राह काफी मुश्किल हो सकती है.

जब दोबारा लोकसभा चुनाव करीब आ रहा है तब एकजुट होने के बजाय इस बिखराव के संकेत क्यों नजर आ रहे हैं?सबसे हैरान करने वाला है बीजेपी की सबसे पुरानी साथी शिवसेना का ऐलान कि वो 2019 में अकेेले लड़ेगी या एनडीए के साथ नहीं होगी. शिवसेना और बीजेपी का 25 सालों का साथ है और वो दावा करते हैं दुख-सुख के साथी हैं.कई दूसरी सहयोगी पार्टियां भी बीजेपी से खुश नहीं हैं. कम से कम उनके बयान तो यही संकेत दे रहे हैं. आंध्र प्रदेश में भी अब तक दोस्ती की कस्में खाते आई चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी ने भी खफा होकर कह दिया है कि अब नहीं निभ पाएगी.

क्या वजह है बीजेपी से क्यों नाराज हो रहे हैं एनडीए के सहयोगी?

2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी,
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2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीती. शिवसेना को 18 सीटें और टीडीपी को 16 सीटें मिलीं.  बीजेपी ने अकेले ही बहुमत हासिल कर लिया था. वक्त के साथ एडीए के दूसरे सहयोगी आरोप लगाने लगे हैं कि बीजेपी उनके साथ बड़े भाई जैसे सुलूक कर रही है.  इस वजह से वो अब छिटकने से लगे हैं.
2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी,
शिवसेना-बीजेपी की दोस्ती में दरार
(फोटो: पीटीआई)

तीन सालों से चल रही है तकरार

बीजेपी की सबसे पुरानी साथी है शिवसेना. दोनों ने हर चुनाव साथ मिलकर लड़ा, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही दोनों के रिश्तों में खटास आने लगी और थी और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. इसमें बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और फिर दोनों ने साथ मिलकर सरकार बना ली.

लेकिन शिवसेना केंद्र और राज्य दोनों जगह सरकार में रहते हुए भी बीजेपी के साथ विपक्ष जैसा व्यवहार कर रही है.

वैसे तो लोकसभा चुनाव तो 2019 में अप्रैल-मई में हैं पर लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराने पर जो बहस छिड़ी है उससे लगता है कि साल के अंत तक कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव कराए जा सकते हैं.

ये भी पढ़ें-शिवसेना-बीजेपी की शादी टूट गई है, लेकिन तलाक लेना अभी बाकी है

2019 में अलग लड़ने का दावा

मुंबई में हाल में शिवसेना की कार्यकारिणी में शिवसेना ने एनडीए से अलग होकर अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अकेले उतरने का प्रस्ताव पास कर दिया. प्रस्ताव के मुताबिक बीजेपी ने पिछले तीन सालों में शिवसेना को निराश किया है.

इस मौके पर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा

मैं कसम खाता हूं कि हम लोग अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे. चाहे जीतें या हारें. यही नहीं शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना के संपादकीय में भी बीजेपी पर हमला करते हुए लिखा था कि बीजेपी गठबंधन धर्म का पालन नहीं करती, बल्कि अपने सहयोगी दलों को कमजोर करने में लगी है.

टीडीपी भी नाराज

2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी,
चंद्रबाबू नायडू भी बीजेपी से नाराज
(फोटो: पीटीआई)

बीजेपी को दूसरा झटका लग सकता है आंध्रप्रदेश की सत्ताधारी पार्टी तेलुगुदेशम से. पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कुछ दिन पहले ही ये कहते हुए बीजेपी से अपनी नाराजगी जाहिर की.....

हम बीजेपी के साथ दोस्ती का धर्म निभा रहे हैं, लेकिन अगर वो लोग ये गठबंधन नहीं चलाना चाहते हैं, तो हम अकेले चुनाव लड़ने को तैयार हैं
चंद्रबाबू नायडू, मुख्यमंत्री, आंध्र प्रदेश

केंद्रीय नेतृत्व से नाराज नायडू

नायडू की नाराजगी की वजह राज्य के बीजेपी नेताओं का बयानबाजी बताई जा रही है. आंध्रप्रदेश में बीजेपी नेता अक्सर टीडीपी सरकार की आलोचना करते रहते हैं. चंद्रबाबू नायडू के मुताबिक ने ऐसे बयान रोकने के लिए पर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व कदम उठाए.

वैसे जानकारों के मुताबिक नायडू के नाराज होने की असली वजह है जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस और बीजेपी की बढ़ती नजदीकियां. कुछ दिन पहले ही वाईएसआर कांग्रेस के कई नेता बीजेपी के बड़े नेताओं से मिले थे और नायडू इससे नाराज हैं.

अटल सरकार में भी बीजेपी के साथ थे नायडू

टीडीपी भी एनडीए की पुरानी सहयोगी रही है. इसके पहले भी अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भी चंद्रबाबू नायडू ने समर्थन दिया था हालांकि ये बाहर से था, 2004 में सरकार जाने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था.

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बिहार में भी दरार

2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी,

उपेंद्र कुशवाहा को मिला आरजेडी का सपोर्ट

बिहार में भी बीजेपी के पुराने सहयोगियों की नाराजगी की खबर है. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. आरएलएसपी ने 2014 के चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन नीतीश कुमार की जेडीयू की एनडीए में वापसी के बाद से वो खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं.

उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार में मानव श्रृंखला का आयोजन किया जिसमें लालू यादव की आरजेडी भी शामिल हो गई. इसके बाद बिहार एनडीए में दरार की बात उठने लगी है. इस कार्यक्रम के बाद पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी समर्थन में ट्वीट भी किया था.

ओमप्रकाश राजभर भी नाराज

2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी,

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी एसबीएसपी के अध्यक्ष और यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने भी अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उन्होंने गठबंधन तोड़ने की धमकी दे डाली. इतना ही नहीं उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है.

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कश्मीर में भी बवाल

2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थी, जिसमें 282 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी,

जम्मू-कश्मीर में पहली बार बीजेपी ने पीडीपी के साथ सरकार बनाई. दो विपरीत विचारधारों वाली पार्टियों ने जबसे सरकार बनाई है आए दिन इनके बीच दरार की खबरें आती रही हैं. पिछले दिनों शोपियां में हुई घटना के बाद एक बार फिर दोनों पार्टियां आमने-सामने हैं.

शोपियां में हुई आर्मी फायरिंग में कथित तौर पर दो पत्थरबाजों की जान चली गई थी. इसके बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सेना के मेजर आदित्य और 10 गढ़वाल पर हत्या और हत्या की कोशिश का मामला दर्ज कर दिया. बीजेपी ने इसे वापस लेने की मांग की है. मजिस्ट्रियल जांच को लेकर पीडीपी और बीजेपी के मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं.

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