बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी (Rita Bahuguna Joshi) के बेटे मयंक जोशी (Mayank Joshi) एसपी (Samajwadi Party) में शामिल हो गए. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने आजमगढ़ (Azamgarh) के गोपालपुर में रैली के दौरान उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई. जब लखनऊ में वोट डाले जा रहे थे, उससे दो दिन पहले से ही कयास लगने लगे थे कि मयंक जोशी एसपी में जा सकते हैं. लेकिन तब उन्होंने खुले तौर पर कुछ नहीं कहा. अब जब चुनाव अपने आखिरी चरण में है, तो उन्होंने एसपी की सदस्यता ले ली? लेकिन ये कैसी टाइमिंग? इसके पीछे अखिलेश यादव का क्या प्लान दिख रहा?
वह दांव, जिसका इस्तेमाल अखिलेश ने खूब किया
ये दांव परसेप्शन बनाने का है. यूपी चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही परसेप्शन का खेल शुरू हो गया. सबसे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे ओबीसी के बड़े चेहरे बीजेपी छोड़ एसपी में शामिल हो गए. एक नैरेटिव सेट करने की कोशिश की गई कि अबकी बार के चुनाव में गैर यादव ओबीसी अखिलेश के साथ है. पिछली बार यही गैर यादव ओबीसी ने बीजेपी को भारी जीत दिलाई थी.
ओपी राजभर को पहले ही पार्टी में शामिल करा अखिलेश यादव बीजेपी में टूट का मैसेज दे चुके थे. फिर स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के बाद परसेप्शन की लड़ाई में उन्होंने लीड ले लिया. हालांकि मतदान के दौरान इन बड़े नेताओं का वैसा प्रभाव नहीं दिखा.
बीजेपी भी कहां पीछे रहने वाली थी. उसने भी अखिलेश यादव के परिवार में टूट का बड़ा मैसेज देना चाहा. मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव को बीजेपी में शामिल कर लिया. मंच से स्पीच दी गई कि अखिलेश यादव अपना परिवार नहीं संभाल पाए, प्रदेश क्या संभालेंगे. कुछ दिनों बाद मुलायम सिंह यादव के समधी ने भी बीजेपी ज्वाइन कर ली. बीजेपी जानती थी कि परिवार में टूट के डेंट ने साल 2017 में एसपी को काफी नुकसान किया था. हालांकि अबकी बार वैसा असर नहीं दिखा.
अखिलेश ने चला 'परसेप्शन' का आखिरी हथियार
सवाल आता है कि अखिलेश ने आखिरी चरण में मयंक जोशी को पार्टी क्यों ज्वाइन कराई? पहले क्यों नहीं? ये उसी परसेप्शन की लड़ाई है, जिसका जिक्र ऊपर किया गया. अखिलेश यादव मैसेज देना चाहते हैं कि चुनाव के आखिरी वक्त में भी बीजेपी के बड़े परिवार से जुड़े नेता एसपी में शामिल हो रहे हैं या शामिल होना चाहते हैं. आखिरी चरण में ये उनका आखिरी दांव था, जिसे उन्होंने आखिरी वक्त के लिए बचा कर रखा था.
क्या पहले ज्वाइन करा लेते तो फायदा नहीं होता?
रीता बहुगुणा जोशी चाहती थी कि बीजेपी उनके बेटे को लखनऊ कैंट से टिकट दे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तभी से कयास लग रहे थे कि मयंक जोशी एसपी में जा सकते हैं. हालांकि खुले तौर पर सामने नहीं आए. लेकिन जब लखनऊ में वोट पड़ने थे तो कहा गया कि उन्होंने वोटर को एसपी के पक्ष में प्रभावित करने की कोशिश की. हालांकि ये सिर्फ एक कयास है. वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं,
रीता बहुगुणा जोशी ने फैसला लेने में देर कर दी. नहीं तो मयंक जोशी को एसपी से टिकट भी मिलता. लखनऊ में पोलिंग से दो दिन पहले मयंक जोशी ने दो ऐसे इलाकों में ज्यादा वक्त दिया, जहां पहाड़ी और ब्राह्मण वोटर हैं. जैसे सरोजनी नगर में. जहां ज्यादा टाइम दिया. सरोजनी नगर से बीजेपी ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट और ईडी अधिकारी राजेश्वर सिंह को उतारा. उनके सामने एसपी के कैबिनेट मंत्री रहे अभिषेक मिश्रा थे. यहां कई नई कॉलोनियां बनी हैं. उत्तराखंड के कई लोग हैं. मयंक ने वहां कैंपेन किया.
क्या अखिलेश के इस मूव से बीजेपी को घाटा होगा?
एक लाइन में कहें तो सातवें चरण में कोई घाटा नहीं होगा. पहली वजह ये है जिन सीटों पर मतदान होना है वहां मयंक जोशी या रीता बहुगुणा जोशी का प्रभाव न के बराबर है. बीजेपी भी पहले से जानती थी कि मयंक जोशी ऐसा कर सकते हैं. ऐसे में सीटों के मामले में घाटे का सवाल नहीं उठता.
अब आखिरी चरण में मयंक को एसपी ज्वाइन करा अखिलेश ने परसेप्शन की लड़ाई में फिर से लीड लेने की कोशिश की है. हालांकि इससे उन्हें सीटों में बहुत ज्यादा फायदा मिलता नहीं दिख रहा. अब आगे की बात कर लेते हैं. इस चुनाव में मयंक जोशी एसपी में शामिल हो गए, लेकिन उनका तत्काल फायदा होता नहीं दिखा. लोकसभा चुनाव में जरूर उनके लिए संभावना बन सकती है. वहीं मयंक जोशी के जाने से रीता बहुगुणा जोशी की लाइन ओपन हो चुकी है. यानी ये टूट के खेल से नैरेटिव सेट करने की राजनीति बदस्तूर जारी रह सकती है.
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