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Pilot Vs Gehlot: पायलट की जनसंघर्ष पदयात्रा गहलोत को चुनौती या राजनीतिक मजबूरी?

Ashok Gehlot Vs Sachin Pilot: चुनावी माहौल में सचिन पायलट की यह यात्रा कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है.

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राजस्थान में सचिन पायलट (Sachin Pilot) की जनसंघर्ष यात्रा ने एक बार​ फिर से कांग्रेस (Congress) में तूफान मचा दिया है. प्रदेश में विधानसभा चुनाव के छह महीने से भी कम का समय बचा है. ऐसे में अपनी ही पार्टी पर भ्रष्टाचार के मसले पर ढीला रवैया रखने का आरोप लगाते हुए पायलट की यात्रा सीधे तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) शासन को चुनौती मानी जा रही है.

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पायलट खुद भी जानते है कि चुनावी माहौल में उनकी यह यात्रा न केवल बीजेपी (BJP) को एक बड़ा मुद्दा दे रही है, बल्कि कांग्रेस के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकती है. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इसके बावजूद भी यात्रा के लिए यह समय चुनना क्या पायलट की सोची समझी रणनीति है? या फिर राजनीतिक मजबूरी?

इससे पहले भी पायलट इसी मसले पर एक दिन का अनशन करके विरोध जता चुके हैं, लेकिन कांग्रेस ने उसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया, जितना लेना चाहिए था. शायद इसलिए जनसंघर्ष यात्रा का नया प्लान सामने आया है.

दरअसल, कांग्रेस के 2018 में राजस्थान की सत्ता पर काबिज होने के साथ ही पायलट और गहलोत के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर शुरु हुई राजनीतिक लड़ाई में ​हर बार गहलोत भारी पड़े. कांग्रेस के दिल्ली दरबार और राजस्थान के पुराने नेताओं मजबूत पकड़ और निर्दलीय व BSP से जीत कर आए विधायकों के भरोसे गहलोत ने हर बार इस लड़ाई में पायलट को पटखनी दी.

2020 की कांग्रेस में हुई बगावत को भी गहलोत ने बड़ी सूझबूझ और आक्रमक तरीके से निपटाते हुए पायलट और उनके समर्थक मंत्रियों को मंत्रिमण्डल से बाहर का रास्ता दिखवाया. राहुल गांधी और प्रियंका के दखल के बाद इस मसले पर कुछ दिनों के लिए सीज फायर हुआ, लेकिन एक बार फिर मुख्यमंत्री बदलाव को लेकर सितंबर 2022 में कांग्रेस आलाकमान की कवायद को भी गहलोत ने ऐसे दांवपेंच में फंसा डाला. इस घटना के बाद से लगातार राहुल गांधी ने कई मंच से पायलट की तारीफ तो की, लेकिन उन्हें राजस्थान की सत्ता या संगठन के किसी भी अहम पर काबिज करवाने में असफल रहें. जबकि राजस्थान में अब विधानसभा चुनाव को लेकर कवायद शुरु हो गई है तो गहलोत पार्टी और सरकार दोनों पर मजबूत पकड़ में दिखाई दे रहे हैं.

गहलोत खुले मंच से भी कई बार पायलट की निष्ठा पर सवाल खड़े करते हुए बीजेपी के हाथों बिकाउ बताते रहते हैं. गहलोत समर्थकों का यह भी दावा है कि पायलट यह सब बीजेपी के ईशारे पर कर रहे हैं. उन्होंने बीजेपी से अंदरखाने में हाथ मिलाया हुआ है.

ऐसे में अब पायलट के पास अपना वजूद दिखाने के लिए सड़क पर उतरने के अलावा कोई और चारा नहीं रह जाता है, क्योंकि कांग्रेस आलाकमान भी जानते हैं कि राजस्थान में यदि पार्टी को दुबारा सरकार में लाना है तो पायलट फैक्टर को इग्नोर नहीं किया जा सकता. पायलट जनाधार वाले नेता हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है. 2018 के चुनाव में कांग्रेस की 21 से 100 सीटों के बहुमत तक लाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी. गुर्जर मतदाताओं के साथ यूथ में भी काफी पकड़ है.

पायलट के निकटतम सूत्र बताते है कि, चुनाव से पहले तक पदयात्रा जैसे कई कार्यक्रम अभी और सामने आएंगे. इस तरह के कार्यक्रमों से न केवल पायलट अपने समर्थकों को एकजुट रखेंगे. मुख्यमंत्री गहलोत को लगातार चुनौती देते रहेंगे, ​बल्कि कांग्रेस आलाकमान पर भी दबाव बनाकर आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी और अपने समर्थकों की भूमिका भी तय करवाने की कोशिश करेंगे, क्योंकि पायलट भी अब यह समझ गए है कि 2020 जैसी सीधी बगावत से कुछ हासिल होने वाला नहीं है. इसलिए कांग्रेस या कांग्रेस के बाहर राजनीतिक वजूद की लड़ाई को वे जनाधार फार्मूले से ही लड़ेंगें.

(Input- Pankaj Soni)

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