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"उद्धव में अनुभव की कमी"- MVA सरकार क्यों गिरी पवार ने अपनी आत्मकथा में बताया?

शरद पवार ने 2019 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद महाराष्ट्र की सियासी उथल-पुथल किताब में क्या लिखा?

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शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ के विमोचन के मौके पर ही पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. पवार ने साल 1999 में पार्टी का गठन किया था, तभी से वह इस पद पर बने हुए थे. लेकिन, शरद पवार के पार्टी प्रमुख पद से इस्तीफे के बाद पार्टी के भविष्य, उनके भतीजे अजीत पवार की भूमिका और राज्य में कांग्रेस और उद्धव सेना के साथ NCP के गठबंधन पर कई सवाल खड़े रहे हैं. पवार ने अपनी किताब में महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.

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शरद पवार ने 2019 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद महाराष्ट्र की सियासी उथल-पुथल और अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने के फैसले से संबंधित कई बातें अपनी किताब में लिखी हैं.

2019 की घटना को याद करते हुए, शरद पवार ने अपना किताब में लिखा है कि "उन्हें 23 नवंबर, 2019 को सुबह 6 बजे एक कॉल आया. वह यह जानकर चौंक गए कि अजित पवार के साथ 10 NCP विधायक राजभवन में हैं. शरद पवार ने उन विधायकों को फोन किया और पता चला कि उन विधायकों को बताया गया था कि शरद पवार ने बीजेपी को समर्थन देने वाली एनसीपी की बात मान ली है.

शरद पवार ने अपनी किताब में लिखा है कि...

"मैंने तुरंत उद्धव ठाकरे को फोन किया और उनसे कहा कि अजीत ने जो कुछ भी किया है, उससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है."

अजीत पवार बीजेपी के साथ क्यों गए, पवार ने बताया

शरद पवार ने आगे लिखा है कि ''जब मैंने सोचना शुरू किया कि अजित ने ऐसा फैसला क्यों लिया, तब मुझे एहसास हुआ कि सरकार गठन में कांग्रेस के साथ चर्चा इतनी सुखद नहीं थी. उनके व्यवहार के कारण हमें हर रोज सरकार गठन पर चर्चा में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. हमने चर्चा में बहुत नरम रुख अपनाया था लेकिन उनकी प्रतिक्रिया स्वागत योग्य नहीं थी. ऐसी ही एक मुलाकात में मैं भी आपा खो बैठा और मेरा मानना ​​था कि यहां आगे कुछ भी चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है. जिससे मेरी ही पार्टी के कई नेताओं को झटका लगा था."

"अजित के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था कि वह भी कांग्रेस के इस रवैये से खफा हैं. मैं बैठक से चला गया लेकिन अपनी पार्टी के अन्य सहयोगियों से बैठक जारी रखने के लिए कहा. कुछ समय बाद मैंने जयंत पाटिल को फोन किया और बैठक की प्रगति के बारे में पूछा, उन्होंने मुझे बताया कि अजित पवार मेरे (शरद पवार) तुरंत बाद चले गए.''

पवार ने लिखा, ''मैंने नहीं सोचा था कि उस समय से कुछ गलत होगा. इस तरह के विद्रोह को तोड़ने के लिए और सभी विधायकों को वापस लाने के लिए तत्काल पहला कदम उठाया. YB चव्हाण केंद्र में मैंने बैठक बुलाई. उस बैठक में 50 विधायक मौजूद रहे, इसलिए हमें विश्वास हो गया कि इस बागी में कोई ताकत नहीं है.''

"उद्धव ठाकरे में अनुभव की कमी"

पवार ने अपनी किताब में उद्धव ठाकरे की अपरिपक्वता पर भी बात की है. उन्होंने किताब में लिखा कि ''स्वास्थ्य कारणों से उद्धव की कुछ मर्यादाएं थीं. कोविड के दौरान उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे. बालासाहेब ठाकरे से बातचीत में जो सहजता हमें मिलती थी, उसमें उद्धव की कमी थी. उनके स्वास्थ्य और डॉक्टर की नियुक्ति को देखते हुए मैं उनसे मिलता था."

उन्होंने आगे लिखा कि...

"मुख्यमंत्री के रूप में राज्य से संबंधित सभी समाचार होने चाहिए. सभी राजनीतिक घटनाओं पर मुख्यमंत्री की कड़ी नजर होनी चाहिए और भविष्य की स्थिति को देखते हुए कदम उठाए जाने चाहिए. हम सभी ने महसूस किया कि यह कमी थी और इसका मुख्य कारण अनुभव की कमी थी, लेकिन एमवीए सरकार गिरने से पहले जो स्थिति बनी थी, उद्धव ने कदम पीछे खींच लिए और मुझे लगता है कि उनका स्वास्थ्य इसका मुख्य कारण था.''

MVA सरकार क्यों गिरी, पवार ने बताया

शरद पवार ने MVA सरकार के गिरने पर भी अपनी किताब में बात की है. उन्होंने किताब में लिखा, ''MVA का गठन सिर्फ सत्ता के लिए नहीं हुआ था, यह छोटे दलों को कुचलकर सत्ता में आने की बीजेपी की रणनीति का करारा जवाब था. एमवीए पूरे देश में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी और हमें पहले से ही अंदाजा था कि वे हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करेंगे, लेकिन हमें अंदाजा नहीं था कि उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही शिवसेना में बगावत शुरू हो जाएगी, लेकिन शिवसेना का नेतृत्व करने वाले संकट को संभाल नहीं सके और बिना संघर्ष किए उद्धव ने इस्तीफा दे दिया जिसके कारण एमवीए सरकार का गिर गई.''

"शिवसेना को खत्म करना चाह रही थी बीजेपी"

पवार ने अपनी किताब में लिखा कि '2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी अपने 30 वर्षीय सहयोगी शिवसेना को खत्म करने की कोशिश में थी क्योंकि बीजेपी को यकीन था कि वह महाराष्ट्र में तब तक प्रमुखता हासिल नहीं कर सकती जब तक कि राज्य में शिवसेना के अस्तित्व को कम नहीं किया जाता. क्योंकि बीजेपी को पता था कि शहरी इलाकों में मजबूत उपस्थिति रखने वाली शिवसेना को खत्म किए बिना, वह राज्य में निर्विवाद वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाएगी.

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