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क्या नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की जिम्मेदारी बस हमारी ही: शिवसेना

शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में बीजेपी पर निशाना साधा है

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महाराष्ट्र सरकार में अनिल देशमुख के गृह मंत्री पद से इस्तीफे के बाद शिवसेना ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए पूछा है कि क्या नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की जिम्मेदारी सिर्फ शिवसेना या एनसीपी के मंत्रियों पर ही है.

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शिवसेना के मुखपत्र सामना में इस मुद्दे को लेकर संपादकीय छपा है. संपादकीय में लिखा गया है, ''मुंबई से हटाए गए पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने गृह मंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार और वसूली का आरोप लगाया. परमबीर सिंह ने निराधार आरोप लगाए और हाई कोर्ट ने उन्हें उठाया है. आरोपों को गंभीरता से लेते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने देशमुख की सीबीआई से जांच कराने का आदेश दिया. इस पर गृह मंत्री देशमुख के सामने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा.''

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इसके अलावा संपादकीय में लिखा गया है,

  • ''अनिल देशमुख पर आरोपों के हवाई फायर होने के दौरान हाई कोर्ट ने उनकी सीबीआई जांच का आदेश दिया. उसी समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर लगे भ्रष्टाचार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें राहत दी है. सर्वोच्च न्यायालय ने येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के मामलों में स्थगनादेश दे दिया है. मतलब देशमुख को अलग न्याय और येदियुरप्पा को अलग न्याय.''
  • ''राफेल सौदे में एक बिचौलिये को कुछ करोड़ की दलाली मिलने का धमाका फ्रांस की एक न्यूज वेबसाइट ने किया है. मतलब राफेल प्रकरण में कुछ तो घोटाला हुआ है. राहुल गांधी का ऐसा कहना सही है.''
  • ''राफेल सौदे में कोई भी भ्रष्टाचार अथवा दलाली प्रकरण नहीं हुआ, ऐसा फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले दिया था, तो किसके कहने पर? राहुल गांधी को ही बीजेपी ने तब आरोपियों के कटघरे में खड़ा कर दिया. अब फ्रांस के ही अखबारों ने राफेल घोटाले का पर्दाफाश किया है इसलिए नैतिकता के मुद्दे पर इस्तीफा किसे देना चाहिए? या नैतिकता के मुद्दे पर इस्तीफा देने की जिम्मेदारी सिर्फ शिवसेना अथवा राष्ट्रवादी के मंत्रियों पर ही है?''
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सामना ने लिखा है कि महाराष्ट्र में तानाशाही वगैरह बिल्कुल नहीं है, लेकिन कानून और राष्ट्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग राजनीतिक विरोधियों को मुश्किल में डालने के लिए लगातार किया जाता है, ये अब निश्चित हो गया है.

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संपादकीय में लिखा गया है,

  • ''महाराष्ट्र की सरकार को इस तरह से कमजोर करने के इन दांव-पेंचों में ये संवैधानिक संस्थाएं सक्रिय होती हैं, ये चिंताजनक है. महाराष्ट्र में विपक्ष रोज उठकर ‘आज इस मंत्री को डुबाएंगे, कल उस मंत्री की ‘विकेट’ गिराएंगे’, ऐसा बयान देता है. केंद्रीय जांच एजेंसियां हाथ में नहीं होतीं तो उनकी ऐसी बेसिर-पैर की बातें करने की हिम्मत ही नहीं हुई होती.''
  • ''इससे पहले महाराष्ट्र में विपक्ष ने सत्ताधारियों पर आरोप लगाकर धूल उड़ाई है. कई बार मंत्री और मुख्यमंत्रियों को जाना पड़ा है, लेकिन उनमें आज के विपक्ष जैसा द्वेष और जहर भरा नहीं था. विपक्ष के हाथ में सचमुच कुछ प्रमाण था इसलिए हंगामा किया. आज साबुन के बुलबुले उड़ाकर ‘बम-बम’ ऐसी दहशत पैदा की जा रही है.''
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शिवसेना ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र में कहीं कुछ सरसराहट हुई तो भी सीबीआई, ईडी, राष्ट्रीय जांच एजेंसियों को घुसाने का मौका ढूंढना यह राज्य के विपक्ष का प्रमुख कर्तव्य ही बन गया है, राज्य की सत्ता उनको चाहिए. इसके आगे संपादकीय में लिखा गया है, ''इसके लिए किसी भी स्तर पर जाने के लिए विरोधी तैयार होंगे भी लेकिन सफल होंगे ऐसा लगता नहीं!''

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