शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में मोदी सरकार की किसानों के मुद्दे पर नोटबंदी के फैसले की आलोचना की है. शिवसेना ने सामना के एडिटोरियल में केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि उसने ‘नोटबंदी का चाबुक’ चलाकर कर्ज में दबे किसानों को बर्बादी की ओर धकेला दिया. इससे किसानों के खेत भी तबाह हो गए.
सरकार भूल गई अपना वादा
शिवसेना ने किसानों के प्रति केंद्र सरकार के रवैये पर निशाना साधा है. शिवसेना ने कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के विकास के वादे के साथ सत्ता में आई थी, लेकिन आज वह इस क्षेत्र को टैक्स लगाने के नाम पर डराती रहती है.
कई साल बाद पिछले साल का मानसून किसानों के लिए उम्मीदें लेकर आया था और पैदावर भी अच्छी हुई थी. लेकिन नोटबंदी के चाबुक ने उन्हें अपनी फसलों को मिट्टी के भाव बेचने पर विवश कर दिया. उन्हें अपनी लागत भी नहीं मिल पाई और नतीजा यह हुआ कि कर्ज में दबे किसान भारी घाटे में डूब गए.सामना
वोटबैंक नहीं हैं किसान
शिवसेना ने अपने एडिटोरियल में कहा है कि यदि आपके पास पैसा है, तो आप चांद पर हो रहा चुनाव भी जीत सकते हैं.
चुनाव जीतने का यह मतलब नहीं है कि जनता आपकी नौकर है. किसानों की भावनाओं को समझने के लिए जरूरी है कि यह समझ लिया जाए कि वे सिर्फ वोटबैंक नहीं हैं.सामना
शिवसेना ने सामना में लिखा है कि जब बीजेपी चुनाव में ‘सैंकड़ों करोड़’ रूपये खर्च कर सकती है, तो फिर वह किसानों का कर्ज माफ करने में क्यों हिचकिचा रही है? तीन साल बीत गए लेकिन क्या ‘अच्छे दिनों’ के वादे पूरे किये गए?’
यह एडिटोरियल ऐसे समय पर आया है जब महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के किसान कर्जमाफी के लिए आंदोलन कर रहे हैं.
- इनपुट भाषा से
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