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शिवसेना का चुनाव चिन्ह जब्त, ठाकरे vs शिंदे की जंग के बीच चुनाव आयोग का फैसला

ShivSena Symbol Frozen: दोनों गुटों को उपचुनाव में शिवसेना के धनुष-तीर सिंबल,पार्टी नाम के उपयोग की अनुमति नहीं होगी

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भारत के चुनाव आयोग ने शनिवार, 8 अक्टूबर को उद्धव ठाकरे गुट और उनके प्रतिद्वंद्वी एकनाथ शिंदे गुट के बीच जारी तनातनी के बीच, आगामी अंधेरी पूर्व विधानसभा उपचुनाव में शिवसेना पार्टी के चुनाव चिन्ह धनुष और तीर को जब्त/फ्रीज (Shiv Sena Symbol Frozen ) कर दिया है.

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आयोग ने एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया है कि दोनों में से किसी गुट को "शिवसेना" के "धनुष और तीर" के सिंबल और पार्टी के नाम का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

चुनाव आयोग ने यह अंतरिम आदेश चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के प्रावधानों के तहत जारी किया है.

चुनाव चिन्ह जब्त होने के साथ ही उद्धव ठाकरे को अब अंधेरी पूर्व सीट पर होने जा रहे आगामी उपचुनाव में एक अलग नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करना होगा. अंधेरी पूर्व सीट पर 3 नवंबर को होने जा रहे उपचुनाव के लिए ठाकरे गुट ने पूर्व विधायक रमेश लटके की विधवा पत्नी रुतुजा लटके को मैदान में उतारने का फैसला किया है जबकि शिंदे की सहयोगी बीजेपी इस सीट पर मुर्जी पटेल को उतार रही है. यह सीट पूर्व विधायक रमेश लटके के निधन के कारण खाली है.

बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ठाकरे गुट के खिलाफ ;फैसला देते हुए चुनाव आयोग को यह तय करने से रोकने से इनकार कर दिया था कि "असली" शिवसेना कौन है.

इससे पहले चुनाव आयोग ने शुक्रवार को ठाकरे गुट को राज्य में आगामी विधानसभा उपचुनाव के मद्देनजर पार्टी के चुनाव चिन्ह पर शिंदे गुट के दावे पर शनिवार तक जवाब देने को कहा था. इसी दिन शिंदे गुट ने एक ज्ञापन सौंपकर उसे चुनाव चिह्न आवंटित करने की मांग की थी.

10 अक्टूबर तक देना होगा वैकल्पिक नाम और सिंबल

चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि दोनों गुटों को वर्तमान उप-चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने फ्री सिंबल की जो सूची जारी की है, उनमें से अपने नए सिंबल के लिए 3 विकल्प चुनने होंगे. दोनों गुटों को 10 अक्टूबर को दोपहर 1:00 बजे तक अपने पसंद के तीन सिंबल को वरीयता के अनुसार चुनाव आयोग के सामने जमा करने का निर्देश दिया गया है. साथ भी दोनों गुट अपने लिए उस पार्टी नाम को भी प्रस्तुत करेंगे जिनसे उन्हें आयोग द्वारा मान्यता दी जा सकती है.

जून में शिवसेना के दो फाड़ हो जाने के बाद से दोनों गुट एक-दूसरे पर बाल ठाकरे की विरासत को कलंकित करने का आरोप लगाते रहे हैं और खुद को उनका असली उत्तराधिकारी बता रहे हैं.

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