अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के सीधे 'अनुरोध' के बाद, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) कांग्रेस पार्टी के अगले अध्यक्ष बनने की रेस में अगुवा हो गए हैं. गहलोत ने अपनी ओर से इन अटकलों का खंडन किया है और कहा है कि उन्हें "मीडिया से ही इस बारे में पता चल रहा है".
आगे वो कहते हैं कि वो चाहते हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर फिर से लौट आएं. उन्होंने कहा, "कांग्रेस का हर कार्यकर्ता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनते देखना चाहता है. उन्हें प्रेरित करने के लिए यह सबसे अच्छा कदम होगा"
हालांकि, राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि वो कार्यभार लेने के लिए तैयार नहीं हैं. क्योंकि वो पार्टी के आगामी जनसंपर्क कार्यक्रम - भारत जोड़ो यात्रा पर पूरा ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.
इधर सोनिया गांधी ने यह भी कहा है कि पार्टी में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष होना चाहिए. अपनी सेहत से जुड़ी परेशानियों को देखते हुए वो और ज्यादा अंतरिम प्रमुख के तौर पर नहीं रहना चाहती हैं.
सोनिया गांधी के साथ गहलोत की बातचीत के बाद इस बात की तरफ इशारा लगातार बढ़ रहा है कि गहलोत फ्रंटरनर हैं. कहा जाता है कि सोनिया ने उनसे अध्यक्ष का पद संभालने का अनुरोध किया था और कहा था कि यह पार्टी के लिए सबसे अच्छा होगा. 28 अगस्त को जब कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक होगी तो फिर तस्वीर ज्यादा साफ होगी.
फिलहाल हम अपनी कहानी में तीन सवालों पर फोकस करेंगे
• अशोक गहलोत के नाम पर विचार क्यों ?
• क्या राजस्थान के सीएम तैयार होंगे ?
• आगे क्या होगा ?
अशोक गहलोत क्यों ?
गहलोत के होने से कई फायदे होंगे
1.राजस्थान के 3 बार मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत सेल्फमेड शख्सियत हैं. हिंदी भाषी इलाके के वो मास लीडर हैं और उन्हें अध्यक्ष बनाना हिंदी पट्टी में कांग्रेस को फिर से मजबूत करने में मददगार होगा.
2. वो OBC नेता हैं और जिस सैनी/माली कम्यूनिटी से वो आते हैं पूरे उत्तर भारत, केंद्रीय और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सें में उनकी आबादी है.
3. वो चतुर नेता हैं और जमीनी सच्चाई से वाकिफ हैं. राजस्थान सरकार को कई बार गिराने की बीजेपी और विपक्ष की तमाम कोशिशों को नाकाम कर चुके हैं. उन्होंने राजस्थान से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर सुभाषचंद्रा को राज्यसभा भेजने की BJP की कोशिशों को भी नाकाम किया.
4. वह मिलनसार शख्सियत हैं और उनकी नेताओं से बढ़िया केमिस्ट्री है.
फिर भी ग्रुप-23 धड़ा अशोक गहलोत को केंद्र में लाए जाने के खिलाफ है. जब सोनिया गांधी को ग्रुप-23 धड़ा ने चिट्ठी लिखी थी तो अशोक गहलोत ने इन नेताओं की कड़ी आलोचना की थी.
5. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उन्हें सोनिया गांधी और राहुल दोनों का ही विश्वास हासिल है.
6. साल 2017, 2018 में जब वो कांग्रेस के महासचिव के तौर पर काम कर रहे थे तो उन्होंने बढ़िया छाप छोड़ी थी. राहुल गांधी के साथ मिलकर पार्टी के कामकाज को देखना और चलाने में उनकी उपयोगिता अहम रही है. यह वक्त पिछले 8 साल में पार्टी के लिए सबसे ज्यादा बेहतर समय था. कांग्रेस ने तब पंजाब, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, में सरकार बनाया था और गुजरात में भी बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी.
अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए तैयार होंगे?
गहलोत को पहले भी कांग्रेस अध्यक्ष बनने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने मुख्य रूप से राजस्थान से बाहर जाने की अनिच्छा के कारण मना कर दिया था. राजस्थान में कांग्रेस सरकार की अनिश्चित संख्या ने गहलोत के लिए राज्य में बने रहना आवश्यक बना दिया.
71 साल के गहलोत को लगता है कि राजस्थान में किसी युवा नेता को कमान सौंपने से पहले उनके पास अभी भी काम करने के लिए बहुत कुछ है.
हालांकि, सूत्रों का कहना है कि इस बार सोनिया गांधी की इस हफ्ते की शुरुआत में गहलोत से मुलाकात के दौरान उनके 'अनुरोध' को इनकार करना गहलोत के लिए मुश्किल हो सकता है. राजस्थान का सवाल अब भी रहेगा. अगर गहलोत अध्यक्ष का पद संभालते हैं, तो सचिन पायलट का राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की संभावना है. 2020 में पायलट के 'विद्रोह' को देखते हुए, गहलोत खेमे के कई लोग शायद उनके साथ काम करने में सहज ना हों.
हालांकि, राजस्थान कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में दिल्ली जाना गहलोत के लिए कोई बुरी बात नहीं होगी. वैसे भी, राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने का इतिहास रहा है. एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी के चुनाव में जीतने की परंपरा राजस्थान में चलती आ रही है.
ऐसे में कांग्रेस के लिए राज्य में अपनी सरकार को दोहराना हाल ही में जालोर में एक दलित बच्चे की हत्या, उदयपुर की हत्या और करौली जैसी जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा जैसे विवादों की श्रृंखला से काफी कठिन हो सकती है.
आगे क्या होगा ?
जैसा कि पहले बताया गया कि, अशोक गहलोत जिम्मेदारी लेते हैं या नहीं, इस पर से पर्दा कुछ दिनों में हट सकता है . लेकिन अगर वो केंद्र में जाने के लिए सहमत हो गए तो फिर इसके दो अहम सियासी अंजाम हो सकते हैं.
अब G-23 क्या करेगा: इसकी संभावना है कि वो गहलोत को चुनौती दे
राजस्थान में क्या होगा ..सचिन पायलट की ताजपोशी क्या आसानी से हो जाएगी ?
यदि गहलोत की उम्मीदवारी विफल हो जाती है तो मल्लिकार्जुन खड़गे और मुकुल वासनिक जैसे नामों पर विचार करने के साथ-साथ एक दूसरे गैर-गांधी उम्मीदवार की तलाश जारी रह सकती है. कांग्रेस संगठन के लोगों के लिए, वासनिक पसंदीदा नेता हैं, क्योंकि संगठनात्मक मामलों पर उनकी गहरी पकड़ है.
फिर निश्चित रूप से, राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने की मांग और कार्यभार संभालने के लिए आवाज जोर शोर से पकड़ सकती है. वैसे तो यह अभी भी हो रहा है जब अशोक गहलोत के अध्यक्ष बनाए जाने की अटकलें तेज हो रही हैं. यहां तक कि अशोक गहलोत ने खुद भी राहुल गांधी को दोबारा से कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर वापसी करने की इच्छा जताई.
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