उत्तर प्रदेश चुनाव में अखिलेश यादव के खिलाफ करहल सीट से बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा है. वे आगरा से सांसद हैं. दिलचस्प बात ये है कि एसपी सिंह बघेल पुराने सपाई हैं. वे पहली बार एसपी के टिकट से ही सांसद बने. बीएसपी में भी रहे फिर 2014 में बीजेपी में शामिल हो गए. लेकिन सवाल ये कि अखिलेश यादव के खिलाफ एक केंद्रीय मंत्री को उतारकर बीजेपी क्या मैसेज देना चाहती है?
बघेल का 'बही खाता'
बीजेपी के मैसेज को समझने से पहले एसपी सिंह बघेल के बारे में जान लेते हैं. ये पहले 3 बार एसपी के टिकट से सांसद बने. एटा की सुरक्षित सीट जलेसर से लगातार 1998, 1999 और 2004 में चुनाव लड़े. 1998 में उन्हें 39%, 1999 में 32% और 2004 में 44% वोट मिले. फिर वे बीएसपी के साथ चले गए. 2010 से लेकर 2014 तक बीएसपी की तरफ से राज्यसभा सदस्य रहे. फिर बीजेपी में चले गए. साल 2017 में फिरोजाबाद के टूंडला से चुनाव जीते. फिर साल 2019 में आगरा से चुनाव लड़े और 56% वोट से जीत सांसद बने.
एसपी सिंह बघेल की जाति को लेकर हो चुकी है कंट्रोवर्सी
एसपी सिंह बघेल की जाति को लेकर कंट्रोवर्सी हो चुकी है. एक मतदाता ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि बघेल ने अपनी जाति छिपाई है. नवंबर 2016 तक बघेल एक ओबीसी नेता थे. बीजेपी ने ओबीसी मोर्चा का चीफ बनाया था. जबकि साल 2017 में वे आरक्षित सीट से चुनाव लड़े थे. कास्ट सर्टिफिकेट में उन्हें धंगेर दिखाया गया, जो एससी है. जबकि उनके बड़े भाई बृजलाल सिंह गडेरिया जाति के हैं, जो ओबीसी में आते हैं. फिलहाल मूल सवाल पर आते हैं. बीजेपी ने एसपी सिंह बघेल को करहल जैसी यादव बाहुल्य सीट से क्यों उतारा?
बीजेपी का मैसेज, अखिलेश को नहीं दिया वॉकओवर
उम्मीदवार बनाए जाने के बाद एसपी सिंह बघेल ने कहा कि बीजेपी ने अपने नंबर वन उम्मीदवार को करहल से कुछ सोचकर ही उतारा होगा. दरअसल, बीजेपी ने एक केंद्रीय मंत्री को करहल से उतार कर मैसेज देने की कोशिश की है कि उन्होंने अखिलेश यादव को वॉकओवर नहीं दिया है. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं-
बीजेपी दिखाना चाहती है कि वह गंभीर उम्मीदवार ला रहे हैं. लेकिन एसपी बघेल करहल में चल नहीं पाएंगे. करहल का जो वोटिंग पैटर्न है वह अलग है. यादव बाहुल्य क्षेत्र है. लगभग डेढ़ लाख यादव हैं. ये फैसला सिर्फ एक संदेश देने के लिए किया गया है. बाकी उनका कोई कास्ट बेस नहीं रहा है. बीजेपी दिखाना चाहती है कि हमने सेंट्रल मिनिस्टर को उतारा है. इसके अलावा और कुछ नहीं है.
एसपी की सेफ सीट रही है करहल
मैनपुरी की करहल सीट सपा के लिए सबसे सेफ इसलिए मानी जाती है क्योंकि यहां पिछले तीन विधानसभा चुनाव में पार्टी जीतती रही है. हर बार 45% से ज्यादा वोट मिले. साल 2007, 2012 और 2017 में सोबरन सिंह यादव ने एसपी के टिकट पर जीत हासिल की. 2002 में करहल सीट से बीजेपी की जीत हुई थी.
अखिलेश का करहल से चुनाव लड़ने की बड़ी वजह ये है कि चुनाव की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है. वह पार्टी के वन मैन आर्मी की भूमिका में है. चुनावी रैलियों में अखिलेश के अलावा दूसरा बड़ा चेहरा कम ही नजर आता है. ऐसे में उनकी जिम्मेदारी 403 सीटों पर चुनाव लड़ाने और जिताने की है. ऐसे में करहल ऐसी सीट है जहां पर उन्हें ज्यादा एफर्ट नहीं करना पड़ेगा. वे बाकी सीटों पर फोकस कर सकेंगे.
अखिलेश के लिए करहल भले ही सेफ सीट मानी जा रही हो, लेकिन एसपी सिंह बघेल केंद्रीय मंत्री हैं. एसपी के पुराने खिलाड़ी हैं. बीएसपी में रहे और अब बीजेपी के टिकट से मैदान में हैं. वे चुनावी स्पीच में सीधे अखिलेश पर अटैक करेंगे. अखिलेश को भी जवाब देना होगा. ऐसे में जिस सीट को एफर्टलेस माना जा रहा था, उसपर बघेल के आने से कुछ मुश्किल तो जरूर खड़ी हो सकती है.
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