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SP Vs CONG: कर्नाटक में जीत के बाद बदले कांग्रेस के तेवर, गठबंधन से किसका फायदा?

SP Vs Cong: SP Vs Cong: कांग्रेस के रवैया से तिलमिलाए अखिलेश यादव ने कांग्रेस को धोखेबाज करार दिया है.

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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Election 2023) में कांग्रेस और एसपी में गठबंधन (Congress-SP) को लेकर बिगड़ी बात अब जुबानी जंग की शक्ल ले चुकी है. कांग्रेस के रवैये से तिलमलाए SP अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने एक बयान में कांग्रेस यूपी अध्यक्ष अजय राय को "चिरकुट" कह दिया. जवाब में अजय राय ने भी अखिलेश यादव को खरी-खोटी सुनाया. अभी ताजे मामले में एसपी के एक और वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव का बयान भी वायरल हो रहा है, जिसमें वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ को "छुटभैया" नेता बता रहे हैं.

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कांग्रेस और एसपी के बीच संघर्ष की नींव इसी साल उपचुनाव के दौरान पड़ गई थी. उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बिना मांगे SP को समर्थन दिया था और दूसरी तरफ उत्तराखंड के बागेश्वर सीट पर हुए उपचुनाव में SP ने अपना कैंडिडेट उतार दिया था. बागेश्वर सीट पर सीधी टक्कर कांग्रेस और बीजेपी के बीच थी.

नतीजे में बीजेपी के प्रत्याशी पार्वती दास ने कांग्रेस के बसंत कुमार को 2405 वोटों से हराया. एसपी के भगवती दास को 637 वोट मिले.

बागेश्वर सीट पर कांग्रेस को एसपी का समर्थन न मिलने की बात को लेकर कांग्रेस यूपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कई बार SP पर निशाना साधा था. पूर्व के चुनाव में SP की हुई हार को लेकर भी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हमलावर थे. वहीं, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में SP और कांग्रेस के गठबंधन की विफल वार्ता ने कोढ़ में खाज का काम किया.

इन्हीं, सभी सवालों को पत्रकारों ने अखिलेश यादव के सामने रखा तो पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी पूरी भड़ास अजय राय पर निकाल दी. इसके बाद सिलसिलेवार तरीके से दोनों पार्टियों के कुछ शीर्ष नेताओं की तरफ से बयानबाजी शुरू हो गई.

अखिलेश यादव की मानें तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे मध्य प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से 6 सीटों पर गठबंधन को लेकर वार्ता चल रही थी. यह वह 6 सीटें हैं, जहां पर या तो SP का कोई विधायक है, या फिर पूर्व में यहां विधायक रहे हैं या उनके प्रत्याशी चुनाव में दूसरे नंबर पर रहा है. गठबंधन को लेकर हो रही वार्ता विफल रही और कांग्रेस ने इन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए.

कांग्रेस के रवैया से तिलमिलाए अखिलेश यादव ने कांग्रेस को धोखेबाज करार दिया. उन्होंने यहां तक आरोप लगाया कि कांग्रेस के शीर्ष नेता बीजेपी से मिले हुए हैं. उन्होंने आगे चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि जैसा रवैया एसपी के साथ कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में किया है, वैसा ही रवैया एसपी कांग्रेस के साथ उत्तर प्रदेश में करेगी.

कर्नाटक में जीत के बाद बदले कांग्रेस के तेवर?

INDIA ब्लॉक में कांग्रेस, एसपी और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की हिस्सेदारी से लग रहा था कि आगे आने वाले लोकसभा चुनाव में तीनों पार्टियां एक साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ अपनी ताकत झोकेंगी. हालांकि, जिस तरह SP और कांग्रेस के बीच मतभेद उभर कर सामने आए हैं, उसे यह कहना भी मुश्किल होगा कि यह दोनों पार्टियां एकजुट होकर चुनाव लड़ पाएंगी.

2017 की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने एक साथ चुनाव लड़ा था लेकिन अपेक्षित नतीजे ना मिलने के कारण दोनों के रास्ते अलग हो गए थे. क्या 2024 के आम चुनाव में सपा और कांग्रेस एक बार फिर सारे मतभेदों को दरकिनार करते हुए एक साथ चुनाव लड़ेंगी? 2024 के लिए कांग्रेस का क्या रोड मैप हो सकता है?

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तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच हमने उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल से बातचीत की. उनका कहना है कि कांग्रेस के लिए अभी अपने दम पर चुनाव लड़ना और जीतना जरूरी है.

"कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस को यह एहसास होने लगा है कि अगर पार्टी कमियों पर काम करते हुए अपनी स्थिति को मजबूत करें तो उन राज्यों में, जहां पर वह पहले सत्ता में रह चुकी है, बिना किसी क्षेत्रीय पार्टी की मदद के दोबारा सत्ता में आ सकती है. कांग्रेस के नजरिए में यह बदलाव कर्नाटक चुनाव के बाद ही आया है. INDIA ब्लॉक में जितनी बार भी क्षेत्रीय पार्टियों ने सीट बंटवारे को लेकर बातचीत करने की कोशिश की है तो कांग्रेस ने उसे यह कहते हुए टाल दिया कि पहले एक साथ लड़ना जरूरी है. बीजेपी को हराना जरूरी है."

वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल ने आगे कहा, "कांग्रेस के लिए इस समय अपनी सीट बढ़ाना और राज्यों में अपने दम पर सत्ता में आना कहीं ज्यादा जरूरी है, बजाय इसके की वह दूसरी विपक्षी पार्टियों को अपने दम पर मजबूत करें."

गठबंधन से किसको कितना फायदा?

2017 के विधानसभा चुनाव में SP और कांग्रेस का गठबंधन कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया था. विशेषज्ञों की माने तो एसपी-कांग्रेस को विधानसभा से ज्यादा लोकसभा में गठबंधन से फायदा हो सकता है.

इसका एक कारण यह है कि लोकसभा चुनाव में वोटरों का एक बड़ा वर्ग ऐसा होता है, जो केंद्र में सत्ता बनाने का दमखम रखने वाली पार्टी को वोट करता है. ऐसे में गैर बीजेपी वोटरों का रुझान क्षेत्रीय पार्टियों के बजाय कांग्रेस की तरफ होता है.
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अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो अपनी जमीनी स्थिति मजबूत करने में लगी कांग्रेस गेम चेंजर की भूमिका में नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में वोट शेयर 6.31% था. पार्टी को इन चुनाव में सिर्फ अपने पारंपरिक रायबरेली सीट पर जीत नसीब हुई थी. पार्टी का दूसरा गढ़ माने जाने वाले अमेठी सीट पर बीजेपी की स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के राहुल गांधी को शिकस्त दी थी.

अमेठी के अलावा फतेहपुर सीकरी और कानपुर ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां पर 2019 में कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी. वहीं, सहारनपुर, बाराबंकी, लखनऊ, उन्नाव और वाराणसी उन लोकसभा सीटों में शामिल है, जहां पर पार्टी को डेढ़ लाख से ज्यादा वोट मिले थे. ऐसे में ये आसानी से कहा जा सकता है कि पूरे प्रदेश में 8 से 10 ऐसी सीटें हैं, जहां पर कांग्रेस गठबंधन में सकारात्मक भूमिका निभा सकती है.

वहीं, अगर SP की बात करें तो 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी का बीएसपी और आरएलडी से गठबंधन था. इन चुनाव में सपा का वोट शेयर 17.96% था और पार्टी को 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

इन समीकरणों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि SP-कांग्रेस पार्टियां अगर 2024 लोकसभा चुनाव में साथ लड़ती हैं तो वे बीजेपी को कोई बहुत बड़ी चुनौती दे पाएंगी.

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