दिल्ली सरकार ने सोमवार,13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका के लिए कोर्ट से अनुरोध किया की वह जीएनसीटीडी संशोधन विधेयक - जो कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार की ताकत को कम कर दिल्ली के गवर्नर को ज्यादा शक्ति प्रदान करता है, उसकी सुनवाई जल्द करें.
चीफ जस्टिस आफ इंडिया (CJI), एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि वो मामले की सुनवाई जल्द करेंगे.
दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा,
"यह अधिनियम सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ के फैसले के विपरीत है और संविधान के तहत अनुच्छेद 239AA (जो दिल्ली की स्थिति से संबंधित है) के खिलाफ है"
केंद्र सरकार ने किया संशोधन
जीएनसीटीडी (GNCTD) संशोधन विधयेक लोकसभा मे 22 मार्च और राज्य सभा मे 24 मार्च को पास हुआ. इस बिल के चार प्रावधानों को बदल दिया है.
संशोधन अधिनियम में कहा गया है कि केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभा द्वारा बनाए जाने वाले किसी भी कानून को संदर्भित करने वाली 'दिल्ली सरकार' का अर्थ राज्यपाल होगा.
अपनी याचिका में आम आदमी पार्टी ने कोर्ट को बताया कि राज्यपाल को दी गई अतिरिक्त शक्तियों के कारण दिल्ली में शासन करने में दुविधा होगी.
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने वर्ष 2018 में यह स्पष्ट किया कि राज्यपाल प्रदेश की चुनी हुई सरकार की मदद और सलाह के लिए बाध्य हैं. दोनों को एक दूसरे के साथ शांतिपूर्ण तरीके से काम करना होगा.
इसमें कहा गया था किया था कि लोकतंत्र में अराजकता या निरपेक्षता के लिए कोई जगह नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह निष्कर्ष निकाला था कि उपराज्यपाल के पास अनुच्छेद 239 के तहत या एनसीटी के दायरे से बाहर के मामलों को छोड़कर निर्णय लेने के लिए कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है.
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