बिहार में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के इस्तीफे को लेकर जेडीयू और आरजेडी के बीच घमासान चरम पर पहुंच गया है. महागठबंधन के दोनों बड़े दलों के बीच तकरार इतनी बढ़ गई कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सुलह का रास्ता तलाशने के लिए आगे आना पड़ा.
इस्तीफा न देने पर अड़े आरजेडी को नीतीश कुमार की पार्टी ने शुक्रवार को करारा जवाब दिया है. जेडीयू ने संकेत दिया है कि तेजस्वी का इस्तीफा न होने की सूरत में सीएम नीतीश किसी भी वक्त पद छोड़ सकते हैं.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सोनिया गांधी ने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार से अलग-अलग फोन पर बात कर कोई ऐसा फॉर्मूला तलाशने को कहा है, जो दोनों को मंजूर हो. दरअसल, बीजेपी के खिलाफ गोलबंद इन तीनों पार्टियों के लिए महागठबंधन बचाने रखना सबसे बड़ी चुनौती है.
महागठबंधन की इन दोनों बड़ी पार्टियों के बीच मतभेद प्रदेश की सियासत को किस मोड़ तक ले जाएगा, हम आगे उन्हीं विकल्प और संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं.
1. RJD डिप्टी सीएम का चेहरा बदल दे
पहली संभावना यह बनती है कि आरजेडी जेडीयू और कांग्रेस के दबाव में आकर तेजस्वी का इस्तीफा दिलवा दे और उनकी जगह पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद के ही किसी चहेते को इस कुर्सी पर बैठा दे. ऐसा करने से नीतीश की इमेज भी बच जाएगी, आरजेडी को भी झटका नहीं लगेगा और सरकार पहले ही तरह चलती रहेगी.
मुमकिन है कि चौतरफा आरोपों से घिरते लालू इस तरह का समझौता करने के लिए राजी हो जाएं.
2. चार्जशीट दाखिल होने तक इंतजार
आरजेडी यह तर्क दे सकता है कि तेजस्वी यादव के खिलाफ अभी सिर्फ एफआईआर ही दर्ज हुई, चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है, ऐसे में जेडीयू को चार्जशीट दाखिल होने तक इंतजार करना चाहिए. हालांकि लालू प्रसाद के परिवार के खिलाफ जांच एजेंसियों की कार्रवाई जिस रफ्तार से आगे बढ़ रही है, उसे देखते हुए ये संभावना कमजोर पड़ जाती है कि जेडीयू अपनी सहयोगी पार्टी को और मोहलत दे.
पल-पल बदलते राजनीतिक माहौल में सीएम नीतीश के लिए इस मामले को लंबे समय तक टालना मुश्किल होगा.
3. नीतीश सरकार को RJD का बाहर से समर्थन
तकरार बढ़ने पर ज्यादा बुरे हालात में आरजेडी सरकार से बाहर निकल सकती है. ऐसी भी चर्चा है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद आरजेडी इस बारे में कोई बड़ा फैसला कर सकती है.
गौर करने वाली बात यह है कि महागठबंधन के टूटने की स्थिति में जेडीयू के पास तो विकल्प पहले से ही मौजूद हैं. जेडीयू के सामने बीजेपी पहले ही दोस्ती का प्रस्ताव रख चुकी है.
लेकिन आरजेडी किसी से बारगेन करने की हालत में नहीं है. ऐसे में वह गठबंधन टूटने से बचाने के लिए ये आखिरी दांव आजमा सकती है कि वह नीतीश सरकार को बाहर से समर्थन दे दे. इससे सरकार भी बच जाएगी और गठबंधन भी कुछ और लंबा चल जाएगा.
4. यूं ही चलती रहे सरकार
आरजेडी ने अपनी सहयोगी पार्टी जेडीयू के दबाव में आए बिना शुक्रवार को एक बार फिर साफ किया है कि तेजस्वी यादव का इस्तीफा नहीं होगा. आरजेडी पहले ही तर्क दे चुका है कि तेजस्वी यादव को जनता ने डिप्टी सीएम बनाया है, तो वे किसी और के चाहने से इस्तीफा क्यों दें?
ऐसे में एक संभावना तो यह भी बनती है कि दोनों बड़ी पार्टियों के बीच फ्रेंडली फाइट होती रहेगी और सरकार यूं ही चलती रहेगी.
हालांकि लालू और नीतीश की पार्टियों के बीच जिस तरह मीडिया में तल्ख बयानबाजी हो रही है, उसे देखते हुए यह संभावना काफी कमजोर पड़ गई है.
हालांकि, आरोप-प्रत्यारोप राजनीति के खेल के ही हिस्से समझे जाते हैं. मतलब, सियासत में जब तक कोई आरोप साबित नहीं हो जाए, तब तक वह केवल विरोधी पार्टी की साजिश ही समझा जाता है.
5. नीतीश बीजेपी का दामन थाम लें
पिछले दिनों ऐसे कई सियासी घटनाक्रम हुए, जब नीतीश नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की नीतियों के प्रति नरम नजर आए. कई मुद्दों पर तो उन्होंने बीजेपी को अपना खुला समर्थन दे दिया. हालिया मामला एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को जेडीयू के समर्थन का है. उनके इस रुख से बीजेपी को घेरने के लिए गोलबंदी हो रही विपक्षी पार्टियां भी हैरान हैं.
इन बातों के बावजूद ऐसा नहीं माना जा सकता कि नीतीश बीजेपी से पुरानी दोस्ती के टूटे तार फिर से जोड़ने को लालायित हैं. हो सकता है कि वे 2019 के लोकसभा चुनाव पर निगाहें रखते हुए किसी और पर निशाना साध रहे हों.
नीतीश का गेमप्लान चाहे जो भी हो, पर बिहार की राजनीति की एक आखिरी संभावना ये तो बनती है कि सियासी मजबूरियों के चलते वे फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लें.
इस बारे में एक कहावत यह है कि एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों से बेहतर होता है. दूसरी कहावत यह है कि जब पूरा नष्ट होने की नौबत आ जाए, तो समझदार लोग कोशिश कर आधा बचा लेते हैं.
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