समस्तीपुर के भोला टॉकीज में नौ सौ लोगों के बैठने की जगह है. 1958 से ये टॉकीज स्थानीय़ लोगों के मनोरंजन का साधन है. सिंगल स्क्रीन वाले इस थिएटर में फिलहाल ऐश्वर्या राय बच्चन की हालिया रिलीज फिल्म ‘जज्बा’ दिखाई जा रही है.
हालांकि फिल्म देखने वालों की तादाद उतनी नहीं है जितनी किसी भोजपुरी फिल्म को देखने के लिए होती है. भोजपुरी सिनेमा देखने आने वालों की संख्या हिंदी फिल्मों से दोगुनी होती है.
अशरफ आलम पिछले 35 सालों से अपने काम को बतौर मैनेजर एक ही अंदाज में करते आ रहे हैं. वे हर रोज भोला टॉकीज जाते हैं.
55 साल के इस शख्स के लिए जोशीले अंदाज में हिंदुत्व और उसके एजेंडे की बात करना बेकार की चीज है. वे उस दिन का जिक्र करते हैं जब थिएटर के अंदर बम फेंक दिए गए थे. दिन की रोशनी में ये सब कुछ लालू के राज में हुआ था.
लोग नीतीश कुमार को ही वोट करने वाले हैं. भले ही उन्होंने लालू प्रसाद के साथ हाथ मिला लिया हो लेकिन लोग उन्हें ही वोट करने वाले हैं.
- अशरफ आलम, मैनेजर, भोला टॉकीज
भोला टॉकीज में ही प्रोजेक्टर रूम में काम करने वाले धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि अगर नीतीश ने इस चुनाव को अपने दम पर लड़ा होता तो ये उनके लिये आसान होता.
कई लोगों को लगता है कि नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के साथ गठजोड़ करके बहुत भारी गलती की है लेकिन फिर भी मैं व्यक्ति विशेष के लिए वोट करूंगा ना कि किसी पार्टी के लिए.
- धर्मेंद्र कुमार, प्रोजेक्टर रूम इंचार्ज, भोला टॉकीज
इसे विडंबना ही कहेंगे कि आलम और कुमार दोनों को ही नीतीश पर पूरा यकीन है और इसीलिए वो अपना कीमती वोट आरजेडी उम्मीदवार अख्तरुल इस्लाम शाहीन को ही देने को मन बना चुके हैं. शाहीन को लेकर दोनों का ही मानना है कि चुनाव जीतने के बाद वो अच्छा काम करेगा और अपने वादों को पूरा करेगा.
भोला टॉकीज के मालिक एक राजपूत व्यवसायी हैं जो कि बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे के प्राइम टार्गेट हैं. लेकिन समस्तीपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की पहुंच दूर तक नजर नहीं आती है.
नीतीश और बीजेपी को कभी भी अलग नहीं होना चाहिए था. लेकिन अब जैसा कि नीतीश ने लालू जैसे लोगों के साथ हाथ मिला लिया है तो लोगों में जंगलराज के लौट आने का डर बैठ गया है. सवाल ये नहीं है कि क्या कोई बुरा आदमी अच्छा काम नहीं कर सकता?
रामविलास पासवान ने एक बार लालू यादव के साथ हाथ मिलाया था. तब उस वक्त क्या वो गलत नहीं थे? क्या अब जब उन्होंने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया है तो वो सही हैं? क्या मांझी नीतीश के साथ नहीं थे? क्या बीजेपी ज्वाइन करने के बाद से वो अचानक से स्वीकार्य नहीं हो गए हैं? राजनीति में कुछ भी कुछ अच्छा या बुरा, काला या सफेद नहीं होता है.
- राज कुमार, भोला टॉकीज के मालिक
लेकिन राजकुमार की पत्नी बीजेपी की कट्टर समर्थक हैं.
लोग नीतीश के विकास माॅडल के बारे में बात कर रहे हैं. लेकिन असलियत ये है कि जो भी विकास उन्होंने किया है वो उस दौर में हुआ जब वो बीजेपी के साथ गठजोड़ में थे. मैं न तो उन पर भरोसा कर सकती हूं और न ही उनके नए गठबंधन पर.
- कुमुद सिंह, राजकुमार की पत्नी
पटना में बीजेपी मजबूत स्थिति में है लेकिन वहीं से 100 किमी की दूरी पर समस्तीपुर में स्थिति बिल्कुल उलट है. ग्रामीण इलाकों में लोग अलग विचार रखते हैं और इन सबको देखते हुए कहा जा सकता है कि यहां अमित शाह और उनके कार्यकताओं को अब भी बहुत काम करने की जरूरत है.
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