हिमाचल प्रदेश की दूसरी राजधानी धर्मशाला में तिब्बती लोग बरसों से रहते चले आ रहे हैं लेकिन वे आज भी भारत में मतदान का अधिकार हासिल करने पर विभाजित हैं. 9 नवंबर को हो रहे विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार इस छोटे से हिस्से को नजरअंदाज नहीं कर सकते और कुछ दिग्गज नेताओं ने यहां अपनी उपस्थिति दर्ज करा इस चुनाव को और कड़ा कर दिया है.
धर्मशाला में रहने वाले कुछ तिब्बतियों का मानना है कि भारत में मताधिकार का प्रयोग करना उनके द्वारा आजादी के लिए किए गए संघर्ष के महत्व को कमजोर कर देगा. जबकि अन्य तिब्बती लोगों का कहना है कि तिब्बत आंदोलन उनके दिलों में है और मतदान उन्हें अपने संघर्ष को सहेजने से नहीं रोक सकता.
धर्मशाला विधानसभा सीट में 69000 वोटर
धर्मशाला विधानसभा में लगभग 69000 मतदाता है. चुनाव आयोग के मुताबिक विधानसभा चुनाव से पहले 1000 तिब्बतियों ने मतदाता के रूप में खुद को पंजीकृत कराया है. इस करीबी चुनावी जंग में यह 1000 तिब्बती मतदाता पहली बार अपना वोट डालेंगे. लिहाजा इनका मत विधायक का चुनाव करने में निर्णायक साबित हो सकता है. केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) ने तिब्बती समुदाय को अपनी पसंद पर वोट डालने का निर्णय छोड़ा है जिस वजह से समुदाय अलग-अलग राय में बंटी हुई नजर आ रही है.
सीटीए के लिए चुनाव आयोग की एक अधिकारी फुर्बु तोलमा ने अपनी आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि मतदान स्वतंत्र तिब्बत के लिए चल रहे उनके संघर्ष को प्रभावित करेगा.
हम वापस जाना चाहते हैं. मतदान का अधिकार हमारे संघर्ष को प्रभावित करेगा.”फुर्बु तोलमा, चुनाव आयोग अधिकारी
लेकिन सीटीए के एक अधिकारी थिन्ले जाम्पा और एक सामाजिक कार्यकर्ता रिंचेन ग्याल का एक अलग ही दृष्टिकोण है. तिब्बत युनाइटेड सोसाइटी चलाने वाले जाम्पा के मुताबिक -
मतदान के जरिए हम भारतीयों के साथ घुल मिल जाएंगे और उन्हें हमारे संघर्ष के बारे में बताएंगे. यह हमें भटका नहीं सकता है. तिब्बत की स्वतंत्रता की दौड़ जारी रहेगी.”थिन्ले जाम्पा, तिब्बत युनाइटेड सोसाइटी
इंद्रेश कुमार ने दलाई नामा के साथ की थी बैठक
नियम के तहत 1950 से 1987 के दौरान भारत में जन्मे सभी तिब्बतियों को मतदान का अधिकार करने की अनुमति हैं. इन चुनावों में उनके महत्त्व को इस बात से समझा जा सकता है कि आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने 4 नवंबर को धर्मशाला में तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के साथ एक घंटे की लंबी बैठक की थी, जिसका मकसद सामुदायिक वोटों को लुभाने का था.
इस सीट पर मुख्य उम्मीदवार कांग्रेसी नेता और शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा और बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री किशन कपूर हैं. इसके अलावा इस सीट गोरखा समुदाय से ताल्लुक रखते निर्दलीय उम्मीदवार रविंद्र राणा, ब्रिटेन से भारत आए पत्रकार विकास चौधरी और एनएसयूआई की पृष्ठभूमि से जुड़े पंकज कुमार चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं.
गोरखा समुदाय कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक
गोरखा समुदाय कांग्रेस का एक पारंपरिक वोट बैंक रहा है, जो इस विधानसभा क्षेत्र में पर्याप्त रूप से उपस्थित है. राणा भी गोरखा समुदाय से आते हैं और ऐसी संभावना है कि कांग्रेस नेता शर्मा का गणित बिगाड़ सकते हैं. कुमार भी उनकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कपूर की गद्दी समुदाय पर अच्छी पकड़ है. गद्दी मतदाताओं की संख्या विधानसभा में लगभग 15000 के आसपास है. 2012 के विधानसभा चुनाव में शर्मा ने कपूर को 5000 वोटों से हराया था.
निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव को बनाया दिलचस्प
वहीं निर्दलीय उम्मीदवार विकास चौधरी कांग्रेस और बीजेपी के बजाय खुद को सबसे अच्छा विकल्प पेश कर निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. चौधरी ने बर्मिंघम विश्वविद्यालय से मानविकी का अध्ययन किया है और उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुख्य टीम के साथ काम किया था. वह एक ट्रैक्टर पर प्रचार कर मतदाताओं को आकर्षित कर रहे हैं. ट्रैक्टर उनका चुनाव चिन्ह भी है.
इन पांच प्रमुख उम्मीदवारों के अलावा सात अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों की उपस्थिति ने चुनावी जंग को दिलचस्प बना दिया है. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीबियों में शुमार शर्मा अपने विकास कार्यों के दम पर जनता के बीच वोट मांग रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि उनके प्रयासों के कारण ही हिमाचल प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय और एक आईटी पार्क को मंजूरी मिली है. लेकिन कपूर ने एक पोस्टर के जरिए उनसे कहा है कि ये वास्तविकता में कब तब्दील होंगे?
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