उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तो काफी पहले से ही तेज है. अब तारीखों के ऐलान का वक्त भी नजदीक आता जा रहा है. मुमकिन है कि चुनाव आयोग इस माह के अंत तक या अगले साल की शुरुआत होते ही वोटिंग की तारीखों पर मुहर लगा दे. प्रदेश की अगली विधानसभा की तस्वीर कैसी होगी, इसका अंदाजा लगाने के लिए कुछ तथ्यों पर गौर किया जाना जरूरी है.
यूपी में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी ने हाल ही में अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की है. इन 23 उम्मीदवारों में कुछ के खिलाफ गंभीर क्रिमिनल केस हैं. इनमें माफिया अतीक अहमद और कई संगीन आरोपों का सामना कर रहे मुख्तार अंसारी के भाई भी शामिल हैं.
ऐसे में इस आशंका को बल मिलता है कि आने वाले चुनाव में कमोबेश हर पार्टी से दागी उम्मीदवारों की तादाद बढ़ेगी. किसी भी कीमत पर सत्ता पर काबिज होने की ऐसी होड़ बढ़ने की वजह भी साफ है. हर सियासी पार्टी को मालूम है, 'लोहा ही लोहे को काटता है'. नतीजतन साल 2017 की विधानसभा में कई ऐसे दागी चेहरे नजर आ सकते हैं.
'दागी' मतलब जीत की गारंटी!
पिछले 10 साल के आंकड़े बताते हैं कि बेदाग उम्मीदवारों की तुलना में दागी उम्मीदवारों के जीत की संभावना 2.37 गुना तक बढ़ जाती है. अगर पूरे देश की बात करें, तो 2004 के लोकसभा चुनाव में इस तरह की संभावना का प्रतिशत 3 था, जो कि 2014 के चुनाव तक 2.6 हो गया.
यूपी के विधानसभा चुनावों में बाहुबल और धनबल के इस्तेमाल के ट्रेंड पर नजर डालते हैं.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2012 के चुनाव में जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचने वाले 403 विधायकों में से 189 (47 फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मामले पेंडिंग थे. इनमें 98 एमएलए (24 फीसदी) के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. ऐसे मामलों में हत्या, हत्या की कोशिश, जबरन उगाही, लूट व डकैती, अपहरण जैसे संगीन केस शामिल हैं.
मौजूदा विधानसभा में दागी विधायकों के प्रतिशत के मामले में बीजेपी सबसे आगे है. ADR के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी के 53.2 फीसदी विधायक, सपा के 49.6 फीसदी, कांग्रेस के 46.4 फीसदी, जबकि बीएसपी के 36.3 फीसदी विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.
यूपी विधानसभा चुनाव, 2012 के आंकड़े:
अब साल 2007 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालते हैं. चुनाव जीतने वालों में से 140 एमएलए (35 फीसदी) के खिलाफ क्रिमिनल केस पेंडिंग थे. इनमें 78 (19.35 फीसदी) के खिलाफ गंभीर आपराधिक केस दर्ज थे.
मतलब, 2007 के चुनाव में दागी विधायकों का जो आंकड़ा 35 फीसदी था, वह 2012 में बढ़कर 47 फीसदी तक पहुंच गया. अगर यही सिलसिला आगे भी जारी रहता है, तो 2017 विधानसभा चुनाव की तस्वीर काफी चिंताजनक हो सकती है.
जीत में पैसा कितना मायने रखता है?
जीत में बाहुबल के साथ के साथ-साथ उम्मीदवार का धनबल कितना असर डालता है, इस पर भी चर्चा जरूरी है. साल 2012 में यूपी चुनाव में जीत हासिल करने वाले 403 विधायकों में 271 (67 फीसदी) करोड़पति थे. साल 2007 में करोड़पति विधायकों की तादाद 124 (30.77 फीसदी) थी. साफ है कि इन 5 साल में करोड़पति विधायकों का आंकड़ा दोगुना से भी ज्यादा हो गया.
यूपी विधानसभा चुनाव, 2012 के आंकड़े:
अगर प्रदेश की बड़ी पार्टियों की बात करें, तो पिछले विधानसभा चुनाव में प्रतिशत के लिहाज से सबसे ज्यादा बीएसपी के करोड़पति विधायक चुनकर आए. मौजूदा विधानसभा में बीएसपी के 78.8 फीसदी, बीजेपी के 68.1 फीसदी, कांग्रेस के 64.3 फीसदी और सपा के 62.5 फीसदी विधायक करोड़पति हैं.
कुल मिलाकर, अगर धनबल-बाहुबल के मामले में यूपी में यही ट्रेंड कायम रहा, तो साफ-सुथरी राजनीति और अलग 'चाल, चरित्र, चेहरा' वाली पार्टी बस ढूंढते ही रह जाएंगे!
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