नवाबों के शहर लखनऊ को 100 साल बाद पहली बार महिला मेयर मिली है. ब्रिटिश काल में लखनऊ में 1916 में म्युनिसिपल एक्ट बना था,तब से अब तक यहां पुरुष मेयर ही चुने जाते रहे, लेकिन लखनऊ सीट महिलाओं के लिए रिर्जव थी. जिस पर बीजेपी की संयुक्ता भाटिया ने शानदार जीत हासिल की है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जीत को बड़ी बनाने के लिए लखनऊ में तीन सभायें की थी. वैसे तो ये सीट पहले से ही बीजेपी की थी, प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा यहां से मेयर रहे. लिहाजा सभी ने इसे पार्टी की प्रतिष्ठा से जोड़कर रखा था.
संयुक्ता के पति बीजेपी के विधायक थे
संयुक्ता भाटिया का परिवार शुरू से RSS से जुड़ा रहा. संयुक्ता पति सतीश भाटिया बीजेपी के कोर ग्रुप के सदस्य रहे और लखनऊ कैंट दो बार विधायक भी रहे. साफ-सुथरी छवि वाली संयुक्ता भाटिया पर बीजेपी ने इस बार दांव लगाया, जो सही पड़ा. अपनी बड़ी जीत के बाद लखनऊ के लोगों को बधाई देते हुए उन्होंने जीत सेहरा लखनऊ की महिलाओं के सिर बांधा.
1960 में लखनऊ में नगर निगम बना था
आजादी के बाद 1960 में लखनऊ में नगर निगम बना था, उस वक्त जनसंघ से जुड़े राजकुमार श्रीवास्तव लखनऊ के पहले नगर प्रमुख बने थे. 57 साल के इतिहास में अब तक 18 नगर प्रमुख और महापौर चुने जा चुके हैं. 21 नवंबर 2002 से नगर निगम में नगर प्रमुख को महापौर (मेयर) का नाम दिया गया.
प्रदेश में 7 महिला मेयर चुनी गईं
उत्तर प्रदेश का निकाय चुनाव हर मायनों में अलग नजर आया. 16 नगर निगमों के चुनाव में 7 महिला मेयर चुनी गयी हैं. बड़ी बात यह भी है कि प्रदेश के लगभग सभी प्रमुख शहरों की कमान इस बार महिलाओं के हाथ में हैं.
लखनऊ में संयुक्ता भाटिया के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मृदुला जायसवाल ने भी अच्छी जीत हासिल की है. इसके अलावा नाक का सवाल बने इलाहाबाद की सीट अभिलाषा गुप्ता ने भाजपा की झोली में डाल दी. ये सीट पिछले बार बीएसपी के पास थी. कानपुर से पिस्टल रानी के नाम से मशहूर प्रमिला पांडेय और गाजियाबाद से बीजेपी की आशा शर्मा ने जीत हासिल की है.
उत्तर प्रदेश में इस बार आधे से थोड़ी ही कम मेयर की सीटों पर महिलाओं ने कब्जा जमाया हैं. और जीत के बाद इरादे भी बुलंद हैं, लेकिन इन इरादों को क्षेत्र की विकास के कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ेगा.
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