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सीएम योगी के अभियानों को उनके ही अधिकारी लगा रहे हैं पलीता!

क्या उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ की हनक कमजोर पड़ने लगी है?

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क्या उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ की हनक कमजोर पड़ने लगी है? क्या प्रदेश के ब्यूरोक्रेट अब सीएम की बात को अनसुना कर रहे हैं? या फिर सरकार में मंत्रालयों के बीच तालमेल की कमी है? यूपी की मौजूदा तस्वीर, इन तीन सवालों के इर्द-गिर्द घूम रही है.

लोकसभा चुनाव के बाद सीएम योगी ताबड़तोड़ समीक्षा बैठक कर अधिकारियों की 'पेच' कसने में जुटे हैं. अपराध से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य सहित तमाम महत्वपूर्ण विभागों के अधिकारियों को आगाह किया जा रहा है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि बेअंदाज नौकरशाही ने सरकार को बेबस कर दिया है.

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नौकरशाहों ने बिगाड़ी सरकार की चाल!

उत्तर प्रदेश को संभाल पाना किसी भी नेता के लिए सबसे बड़ा चैलेंज माना जाता है. गाजियाबाद से लेकर गाजीपुर तक फैले 75 जिलों और लगभग 14 करोड़ की जनसंख्या वाले इस प्रदेश पर राज करने वाले नेता की राजनीतिक कौशल के साथ ही प्रशासनिक क्षमता की भी परीक्षा हो जाती है.

कुछ ऐसा ही हो रहा है योगी आदित्यनाथ के साथ. बीजेपी में भगवा ब्रिगेड के सबसे मुखर नेता ने जब यूपी की कमान संभाली, तो लगा कि प्रदेश में काफी कुछ बदलेगा. खास तौर से प्रशासनिक स्तर पर, लेकिन हैरानी इस बात की है कि ढाई साल गुजर जाने के बाद भी नौकरशाहों में सरकार का खौफ गायब है. ये बात हम क्यों कह रहे हैं, इसकी ये बड़ी वजह हैं:

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1. वायरल रोगों की रोकथाम अभियान की शुरुआत करते ही 19 CMO के तबादले

वायरल बीमारी, खासतौर से इंसेफेलाइटिस को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ किस तरह संजीदा हैं, ये हर कोई जानता है. इंसेफेलाइटिस का सबसे ज्यादा प्रकोप योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों में देखा जाता है. लिहाजा सीएम नहीं चाहते कि इसे लेकर किसी तरह की कोताही बरती जाए. लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को शायद इस बात की फिक्र नहीं है.

लापरवाही का आलम ये है कि 1 जुलाई को सीएम लखनऊ में संक्रामक रोगों की रोकथाम के अभियान की शुरुआत कर रहे थे, दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश के 19 जिलों के सीएमओ और 22 अस्पतालों के सीएमएस के तबादले कर दिए. इन तबादलों के कुछ घंटे के अंदर ही सवाल उठने लगे कि ये अभियान आखिर कैसे पूरा होगा?
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ट्रांसफर को कुछ ही घंटों में सीएम योगी ने किया निरस्त

खुद सीएम योगी भी इस तबादले से हैरान और नाराज थे. शाम होते- होते उन्होंने सारे ट्रांसफर कैंसिल कर दिए. लेकिन बात सिर्फ ट्रांसफर होने और निरस्त होने की नहीं है. सवाल इस बात का था कि जब तैयारियों में लगे मुख्य चिकित्सा अधिकारी ही अंतिम वक्त पर बदल जाएंगे, तो ये अभियान कैसे परवान चढ़ेगा?

वैसे भी किसी भी योजना या अभियान की तैयारी एक या दो दिन में नहीं होती. उसे अमलीजामा पहनाने में हफ्ते-दो हफ्ते या महीनों का वक्त लगता है. मतलब साफ है तबादलों के पीछे बड़ी लापरवाही बरती गई. ऐसे में सवाल उठता है:

  • क्या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को ये बात नहीं मालूम थी कि 1 जुलाई को सीएम वायरल रोगों की रोकथाम अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं?
  • क्या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और सरकार के बीच तालमेल नहीं था?
  • क्‍या जान-बूझकर अंतिम वक्त पर तबादले किए गए?
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2. 'स्कूल चलो' अभियान की निकली हवा

चलिए, स्वास्थ्य के बाद अब आपको बताते हैं स्कूलों का हाल. किसी भी राज्य की बेहतरी में शिक्षा का अहम योगदान रहता है. सीएम योगी आदित्यनाथ इसे बखूबी समझ रहे हैं. वो शिक्षा को लेकर खास सजग भी हैं. लेकिन कोई भी सेना तभी सफल होती है, जब सेनापति के साथ सैनिक भी मजबूती से लड़ें, जो यूपी में नहीं दिख रहा है.

सीएम योगी आदित्यनाथ की कोशिशों को शिक्षा महकमे के अधिकारी ही पलीता लगा रहे हैं. पहली जुलाई को जब स्कूल खुले, तो हाल देखने लायक था. प्रदेश के अधिकांश जिलों में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही खुलकर सामने आई.

स्कूलों में जिन हाथों में कलम और कॉपी होनी चाहिए थी, टीचरों ने उसमें झाड़ू और फावड़ा पकड़ा दिया. पढ़ाई की बजाय कड़ी धूप में बच्चे ‘मजदूरी’ करते दिखे. रायबरेली, वाराणसी सहित कई स्कूलों में छात्रों से ‘मजदूरी’ कराने की तस्वीरें तो बकायदा कैमरों में भी कैद हुईं.

इतना ही नहीं, कई जिलों में तो टीचर टाइम पर पहुंचे ही नहीं. बच्चे टीचर की राह देखते रह गए. शिक्षा महकमे में इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है? लाख कोशिशों के बाद भी टीचर क्यों नहीं सुधर रहे हैं? क्या शिक्षकों और महकमे के अधिकारियों में सरकार का खौफ खत्म हो गया है?

ये हाल तब है, जब खुद सीएम योगी आदित्यनाथ 'स्कूल चलो' अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं.

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3. कटघरे में प्रदेश की कानून-व्यवस्था

कानून-व्यवस्था को लेकर योगी सरकार की खूब तारीफ हो रही थी. चुनावी सभाओं के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी योगी सरकार में लॉ एंड ऑर्डर का बखान करते थकते नहीं थे.

लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हालात बेपटरी हो चुके हैं. अपराधियों के अंदर खाकी वर्दी का खौफ गायब हो चुका है और वह खुलेआम मासूमों की अस्मत से खेल रहे हैं. यही नहीं, राजधानी लखनऊ समेत वीआईपी शहरों में तेजी से क्राइम का ग्राफ बढ़ा है.

इन घटनाओं से सहमी योगी सरकार अब एक्शन के मोड में है. आलम ये है कि पिछले एक हफ्ते के अंदर 30 आईपीएस समेत तीन दर्जन से अधिक पीपीएस अफसरों के तबादले हो चुके हैं. बिगड़ती कानून व्यवस्था से सीएम कुछ इस कदर खफा हैं कि उन्होंने लखनऊ में अधिकारियों की मीटिंग के दौरान सभी के फोन जब्त करवा लिए और डीजीपी समेत आला अधिकारियों की जमकर खबर ली थी. अब देखिए सीएम की इस 'घुड़की' का वर्दीवालों पर असर कब होता है?

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