ADVERTISEMENTREMOVE AD

मायावती के प्रबुद्ध सम्मेलन में शंख से लेकर त्रिशूल...क्या BSP दलितों को गई भूल?

मायावती ने एक बार फिर चुनाव से पहले हाथी को गणेश जी के साथ जोड़ना शुरू कर दिया है

Published
story-hero-img
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

शंख की गूंज, मंत्रों का उच्चारण, त्रिशूल लहराना और भगवान गणेश की मूर्तियां... दलित समाज का झंडा उठाकर पिछले कई दशकों से राजनीति कर रहीं मायावती (Mayawati) के मंच पर यूपी चुनाव (UP Elections 2022) से पहले ये सब कुछ नजर आया. जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि मायावती के लिए आने वाले चुनाव करो या मरो की स्थिति वाले हैं. इसीलिए लखनऊ की एक रैली में मायावती ने पार्टी का चुनावी बिगुल बजाते हुए ब्राह्मण वोटों पर सीधा निशाना साधा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जय श्री राम और परशुराम के नारे

इस बार मायावती की पार्टी बीएसपी का टारगेट ब्राह्मण वोटर हैं, जिन्हें साधने के लिए काफी पहले से ही तैयारियां कर ली गई हैं. ब्राह्मण वोटरों को अपनी ओर खींचने के लिए मायावती की पार्टी ने पूरे उत्तर प्रदेश में प्रबुद्ध सम्मेलन आयोजित किए. इन सम्मेलनों का समापन लखनऊ में किया गया. जहां मायावती ने खुद पहुंचते ही जय श्री राम के नारों से शुरुआत की. साथ ही इसके बाद परशुराम के नारे भी लगाए गए.

पहले आपको बताते हैं कि हालिया रैली में मायावती ने ब्राह्मणों को लेकर क्या कहा. मायावती ने कहा कि,

"अब ब्राह्मण समाज के लोग भी कहने लगे हैं कि, हमने BJP के प्रलोभन भरे वादों के बहकावे में आकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर बहुत बड़ी गलती की है. इस बार बीएसपी की सरकार आने से कोई नहीं रोक सकता है. हमारी सरकार आई तो सरकार में एक बार फिर ब्राह्मणों को सही प्रतिनिधित्व दिया जाएगा. बीजेपी की सरकार के दौरान जिन ब्राह्मणों पर अत्याचार हुआ है. उसकी जांच कराई जाएगी."
0

मायावती को कितना फायदा, कितना नुकसान?

कुल मिलाकर मायावती ने ये साफ कर दिया है कि वो ब्राह्मण वोटों के सहारे पार्टी के गिरते वजूद को बचाने की पूरी कोशिश में जुटीं हैं. इसके पीछे एक बड़ा कारण ये है कि मायावती के कोर वोटर, यानी दलित वोटर अब धीरे-धीरे बंटते जा रहे हैं. इसीलिए उनके सहारे यूपी में पार्टी के अस्तित्व को बचा पाना अब माया के लिए मुश्किल है. तो अब बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश हो रही है. लेकिन सवाल ये है कि एक ट्रैक से दूसरे ट्रैक पर उतरने का बीएसपी को फायदा ज्यादा होगा या फिर नुकसान?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालांकि ऐसा नहीं है कि मायावती की पार्टी बीएसपी ने अभी अपनी रणनीति बदली है, पिछले कुछ सालों से मायावती लगातार अपने हाथी (चुनाव चिन्ह) को गणेश भगवान का रूप देने की कोशिश में जुटी हैं, लेकिन सफलता अब तक हाथ नहीं लगी.

तो अब आने वाले चुनावों में एक बार फिर गणेश का सहारा लेते हुए ब्राह्मणों के वोटों को खींचने की कोशिश हो रही है. लेकिन इस बार मायावती पूरी तरह हिंदुत्व वाली राजनीति करने के मूड में हैं. फिर चाहे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर बयानबाजी हो या फिर मंच से जय श्री राम के नारे... ये सब माया की हिंदुत्व राजनीति की एक झलक देते हैं.

लेकिन हिंदुत्व की इस राजनीति के बीच मायावती ने अपने कोर वोट यानी दलित और अल्पसंख्यक समुदाय की आवाज उठाना लगभग बंद कर दिया है. मंच से भले ही दलितों को लेकर नारेबाजी हो रही हो, लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है. दरअसल माया को लगता है कि उनका दलित वोटर कहां जाएगा, उसे तो बीएसपी के पास ही आना है. इसी भरोसाे वो ब्रह्मणों की खुली पैरवी करती नजर आती हैं. रणनीति ये है कि दलित साथ हैं, ब्राह्मण भी साथ हो लें तो हाथी लखनऊ की गद्दी तक आराम से पहुंच जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चंद्रशेखर आजाद फैक्टर का असर

मायावती के लिए भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद भी एक बड़ी खतरे की घंटी बनकर सामने आ सकते हैं. क्योंकि मायावती के बाद अब चंद्रशेखर को दलित अपने नेता का विकल्प मान रहे हैं.

चंद्रशेखर पिछले कुछ सालों से लगातार दलित राजनीति में एक्टिव हैं, वो दिल्ली से लेकर यूपी, राजस्थान और देश के अन्य राज्यों में दलित आंदोलन चला रहे हैं. यही कारण है कि चंद्रशेखर ने मायावती के बाद खुद को दलितों के दूसरे नंबर के नेता के तौर पर खड़ा कर दिया है. अब आने वाले चुनावों में पहले ही नुकसान झेल रहीं मायावती की बीएसपी को चंद्रशेखर बड़ा डेंट लगाने का काम कर सकते हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ब्राह्मण वोट इतने जरूरी क्यों?

अब सवाल ये है कि तमाम पार्टियों के लिए ब्राह्मण वोट इतने जरूरी क्यों हो गए हैं? जबकि यूपी में ब्राह्मण वोटों की संख्या 11 से 12 फीसदी तक ही है. इसका जवाब है कि ये वोट कई बार यूपी की सत्ता की चाबी बनकर सामने आया है. फिलहाल ब्राह्मण वोटर बीजेपी से छिटकता हुआ नजर आ रहा है. क्योंकि बीजेपी सरकार के दौरान आरोप लगते आए हैं कि ब्राह्मणों की सुनवाई नहीं हुई और उन पर अत्याचार होते रहे. साथ ही एनकाउंटर में जो अपराधी मारे गए हैं, उनमें ज्यादातर ब्राह्मण समुदाय से आते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसीलिए फिलहाल योगी सरकार में ब्राह्मण समुदाय सहज महसूस नहीं कर रहा है. खुद बीजेपी में भी ब्राह्मण समुदाय को लेकर आवाजें उठने लगी थीं. ऐसे में बाकी विपक्षी दलों की नजरें इस समुदाय पर टिकी हैं, हर कोई उनका भरोसा जीतकर उसे अपने पक्ष में करने की जुगत में लगा हुआ है. अखिलेश की समाजवादी पार्टी, मायावती की बीएसपी, आम आदमी पार्टी और बाकी छोटे दल ब्राह्मण समुदाय की बीजेपी से नाराजगी को एक मौके की तरह देख रहे हैं. अब देखना ये होगा कि ब्राह्मण वोटर किस पार्टी की तरफ जाता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×