उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की वापसी हुई. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने पिछली बार की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन बहुमत से दूर रहे. नतीजों को देखने के बाद कई परसेप्शन गलत साबित हुए. मसलन, पश्चिम यूपी में जाट बीजेपी से नाराज हैं और वे एसपी को वोट कर सकते हैं. जयंत चौधरी से एसपी को बड़ा फायदा मिल सकता है. गैर यादव ओबीसी के बड़े चेहरों का बीजेपी छोड़ने से अखिलेश की सीट बढ़ सकती है. एक से सात चरणों (UP Election Phase Wise Result) के वोटिंग पैटर्न और नतीजों से समझते हैं कि अखिलेश यादव ने कौन सी गलती की और बीजेपी को कहां फायदा मिला?
अखिलेश यादव की गलतियों और बीजेपी के फायदे को समझने के लिए सातों चरणों के नतीजों से निकले 2 फैक्ट जान लीजिए.
1- BJP का चौथे फेज में सबसे अच्छा-सातवें में सबसे बुरा प्रदर्शन
बीजेपी और उसके सहयोगियों ने सबसे अच्छा प्रदर्शन चौथे चरण में किया. ये वह फेज था, जिसमें लखीमपुर खीरी और पासी वोटर वाले बेल्ट में वोट पड़े थे. बीजेपी प्लस ने कुल में से 83% सीटों पर कब्जा किया. पहले फेज में भी बीजेपी प्लस ने 80% सीटें जीत ली थी. यहां अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी फेल साबित हुई.
2- SP का सातवें फेज में सबसे अच्छा- चौथे में सबसे बुरा प्रदर्शन
एसपी ने सबसे अच्छा प्रदर्शन आखिरी फेज में किया. पूर्वांचल में अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ में वोट पड़े थे. एसपी ने 47% सीटों पर कब्जा कर लिया. दूसरे फेज में भी एसपी ने अच्छा किया. 43% सीटें जीत ली. इसकी एक वजह मुस्लिम बाहुल्य इलाके हैं. 9 में से 6 जिले ऐसे थे जहां पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है. यहां अखिलेश यादव का फायदा मिला.
उत्तर प्रदेश चुनाव 10 फरवरी से शुरू होकर 7 मार्च को खत्म हुआ. 26 दिन तक. BJP को 255, SP को 111, अपना दल (एस) को 12, निषाद को 6 और RLD को 8 सीट मिली. अब समझते हैं कि 1 से 7 फेज के चुनाव में दौरान चुनाव कैसे बदलता गया और उसे अखिलेश यादव भाप नहीं सके.
फेज 1: पहली बॉल पर ही दोनों लड़कों की जोड़ी बिखरी-BJP का 80% सीटों पर कब्जा
यूपी चुनाव के पहले फेज में ही अखिलेश यादव और जयंत की जोड़ी बिखर गई. हालांकि चुनाव के दौरान हवा थी कि इन दो लड़कों की जोड़ी बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर रही है. लेकिन ऐसा नहीं था. पहले फेज में 58 में से 46 सीटों पर BJP का कब्जा हुआ. यानी 80% सीटें. SP को 5 और RLD को 7 सीटें मिलीं. यानी पहले फेज में अखिलेश और जयंत चौधरी की जो हवा थी, वह सिर्फ टीवी या अखबारों में ही दिखी. जमीन पर नहीं.
फेज 2: मुस्लिम वोटर ने कुछ देर पारी संभाली-एसपी की परफॉर्मेंस थोड़ी सुधरने लगी
दूसरे फेज में 9 जिलों की 55 सीटों पर वोट पड़े थे. जिसमें 6 जिले अमरोहा, सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद और बरेली ऐसे है, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. यहां बंपर वोट पड़े. अखिलेश यादव को इसका फायदा भी मिला. BJP को 31 और SP को 24 सीट मिली. यानी एसपी ने 43% सीटों पर कब्जा किया.
फेज 2 में एसपी ने मुस्लिम वोटर के भरोसे बीजेपी को कुछ टक्कर देने की कोशिश की. एक मोमेंटम बिल्ड होता दिखा, लेकिन बीजेपी के अंडर करंट के आगे ज्यादा देर टिक नहीं सका.
फेज 3: हाथरस-बिकरू से SP को फायदा नहीं, यादवलैंड नहीं आया अखिलेश के काम
यूपी चुनाव के तीसरे चरण में यादवलैंड की खूब चर्चा हुई. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) और हरिओम यादव (Hariom Yadav) जैसे बड़े चेहरे मैदान में थे. हाथरस (Hathras) और बिकरू कांड (Bikru kand) वाली विधानसभा सीटों पर वोट पड़े थे. लेकिन नतीजे एकदम उलट थे. एसपी 23% सीटों पर ही कब्जा कर पाई. 59 में से BJP को 41, SP को 14, RLD को 1 और अपना दल को 3 सीट मिली.
फेज 4: जहां BJP को सबसे ज्यादा डेंट के कयास लगे-वहीं सबसे बढ़िया प्रदर्शन
यूपी के चौथे चरण में किसान आंदोलन और लखीमपुर कांड वाली जगहों पर वोट पड़े थे. कई सीटों पर पासी वोटर निर्णायक भूमिका में था. ये चरण बीजेपी के लिए काफी खास माना जा रहा था. नतीजे भी वैसे ही आए. 59 सीटों पर वोट पड़े, जिसमें बीजेपी को 48, एसपी को 10 और अपना दल को 1 सीट मिली. इस चरण में लखीमपुर खीरी में भी मतदान हुआ था. वोटिंग प्रतिशत भी ज्यादा था, लेकिन नतीजे बीजेपी के पक्ष में दिखे. एसपी 16% सीटों पर ही कब्जा कर पाई.
फेज 5: पांचवें चरण में राम मंदिर मुद्दा और कुर्मी वोटर से बीजेपी को फायदा
पांचवें चरण में 61 सीटों पर 54% वोट पड़े थे. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीट सिराथू और अयोध्या भी इसी फेज में थे. कुर्मी वोटर की भूमिका बड़ी मानी जा रही थी. नतीजे आए तो केशव प्रसाद मौर्य की हार हुई, लेकिन राम मंदिर के मुद्दे से बीजेपी को फायदा हुआ. हर बार की तरह ही इस बार भी कुर्मी वोटर ने मोदी-योगी को वोट किया.
पांचवें चरण में 61 सीटों में से बीजेपी को 33, एसपी को 21, अपना दल को 4 और कांग्रेस को 1 सीट मिली. प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी ने 54% और एसपी ने 34% सीटों पर कब्जा किया.
फेज 6: एसपी ने कुछ टक्कर दी, लेकिन दलबदलू नेता बहुत कुछ नहीं कर पाए
छठे चरण में योगी आदित्यनाथ की सीट पर मतदान हुआ था. 10 जिलों की 57 सीटों पर 54% वोट पड़े थे. बीजेपी से टूटकर एसपी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य और ओपी राजभर जैसे नेताओं की भी परीक्षा थी, लेकिन नतीजे बताते हैं कि ये नेता फेल साबित हुए. स्वामी प्रसाद मौर्य के कंधों पर गैर यादव ओबीसी का वोट दिलाने का जिम्मा था, लेकिन वे अपनी ही फाजिलनगर सीट से हार गए. एसपी को क्या वोट दिलाते. ओपी राजभर खुद की सीट तो जीत गए लेकिन बाकी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए.
छठे फेज में 57 में से बीजेपी को 35, एसपी को 14, बीएसपी को 1, कांग्रेस को 1, अपना दल को 1, सुहेलदेव को 2 और निषाद पार्टी को 3 सीट मिली.
छठे चरण में मुस्लिम बाहुलता वाली सीटों पर ज्यादा वोट पड़ने का ट्रेंड टूटा था
1 से 5 फेज के चुनाव में दिखा कि जहां पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है, उन सीटों पर बंपर वोट पड़े. लेकिन छठे चरण में ये ट्रेंड टूट गया. छठे चरण में जिन जिलों में वोट पड़े थे उनमें बलरामपुर में 37%, सिद्धार्थनगर में 30% और संत कबीर नगर में 24% मुस्लिम आबादी है. लेकिन वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो बलरामपुर में सबसे कम 48% वोट पड़े थे. सिद्धार्थनगर में भी 49% और संत कबीर नगर में 51% वोट पड़े थे. ये तीनों जिले ऐसे हैं जहां पर सबसे कम मतदान हुआ. नतीजों में इसका रिफ्लेक्शन भी दिखा.
फेज 7: बीजेपी को सबसे ज्यादा चुनौती मिली-एसपी का सबसे बढ़िया प्रदर्शन
यूपी के सातवें फेज में पीएम मोदी के वाराणसी और अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ सहित कुल 54 सीटों पर वोट पड़े थे, जिसमें बीजेपी को 21 और एसपी को 23 सीट मिली. सुहेलदेव को 4 सीट मिली. इसमें आजमगढ़ की सभी 10 सीटों पर एसपी ने कब्जा कर लिया. वहीं मऊ और गाजीपुर की सीटों पर भी ऐसा ही देखने को मिला.
यूपी चुनाव में अखिलेश यादव को जयंत चौधरी की वजह से पश्चिम से काफी उम्मीद थी, लेकिन वैसा हुआ नहीं. पहले ही चरण में बीजेपी ने बड़ी लीड ले ली. जिस फेज में अखिलेश की सीट पर वोट पड़े, उसमें भी एसपी को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ. दूसरे, पांचवें और सातवें चरण में जरूर बीजेपी को कुछ टक्कर मिलती दिखी. अवध और बुंदेलखंड में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा. 403 में से 223 सीटें ऐसी थीं, जहां SP दूसरे नंबर पर रही. ऐसे में जयंत चौधरी की दोस्ती पर ज्यादा भरोसा और दलबदलुओं का गलत आकलन अखिलेश को भारी पड़ गया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)