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योगी से शिवपाल और शाह से मिल रहे राजभर, क्या अखिलेश के नए साथी बने रहेंगे हमसफर?

अखिलेश खेमे की छोटी पार्टियों को साथ लाना बीजेपी के लिए होगा फायदेमंद

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चुनाव खत्म होने के बाद विपक्ष के समीकरण में बदलाव होने शुरू हो गए हैं. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) के BJP में जाने की चर्चाओं से विपक्ष के खेमे में नई राजनीतिक हलचल पैदा हो गई है. शिवपाल के बीजेपी में जाने की अटकलों की शुरुआत समाजवादी पार्टी (SP) विधानमंडल दल की बैठक से शुरू हो गई थी जब उनको बैठक का आमंत्रण नहीं दिया गया. माना जा रहा है अपनी अवहेलना से नाराज शिवपाल बाद में संपन्न हुए एसपी सहयोगियों की बैठक में नहीं पहुंचे. इन अटकलों को बल तब मिल गया जब वह सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ से मिले लेकिन पार्टी ने इसे शिष्टाचार भेंट ही करार दिया था.

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और SP के गठबंधन के समय कयास लगाए जा रहे थे कि शिवपाल यादव ने अपनी बेटे सहित कुछ करीबी सहयोगियों के लिए टिकट मांगे थे लेकिन अंत में सिर्फ उन्हें ही जसवंतनगर से चुनाव लड़ने दिया गया, वह भी SP सिम्बल पर.

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BJP लगा पाएगी यादव वोट बैंक में सेंध?

विधानसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा में यह बात निकलकर साफ हो गई थी कि बीएसपी का मूल वोट बैंक खिसक कर बीजेपी की तरफ आ गया था जिसका उन्हें नतीजों में सीधा फायदा मिला. यह बात खुद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने स्वीकार भी की है. वहीं दूसरी तरफ संगठित मुस्लिम और यादव वोट बैंक की वजह से समाजवादी पार्टी अपनी कुछ साख बचाने में सफल रहा.

विशेषज्ञों की मानें तो BJP की नजर अब इस संगठित यादव वोट बैंक पर है जिसको अभी तक पार्टी भेद नहीं पाई है. इस लक्ष्य की तरफ बढ़ते हुए पार्टी ने छोटी सी शुरुआत यादव खानदान की बहू अपर्णा यादव को पार्टी में जगह देकर कर भी दी है और अगर शिवपाल बीजेपी में आते हैं तो बीजेपी अपनी स्थिति यादवों के बीच मजबूत करने में लग जाएगी.

मेरठ कॉलेज में प्रोफेसर सतीश प्रकाश का मानना है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी अभी तक यादव वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाई है. शिवपाल के BJP में आने से यादवों का पार्टी में जुड़ने का एक नया रास्ता खुल जाएगा जिसका सीधा घाटा समाजवादी पार्टी को होगा.

क्या होगा SP सहयोगियों का भविष्य?

चुनाव से पहले SP ने पश्चिम से लेकर पूर्व तक जातीय समीकरण का ध्यान रखते हुए अपने सहयोगियों के साथ एक मजबूत टीम तैयारी कर ली थी. हालांकि अब चुनाव हारने के बाद इनमें से कितने सहयोगी SP का आगे तक साथ देंगे, इस बात पर भी अटकलें लगनी लगनी शुरू हो गई हैं. इन अटकलों की शुरुआत सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के मुखिया ओमप्रकाश राजभर के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच हुए कथित मुलाकात से शुरु ही गई है.

इसके बाद राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने अपने पार्टी के मुखिया जयंत चौधरी को लिखे पत्र में इस्तीफा देते हुए SP-RLD गठबंधन के तानाशाही रवैये को हार का कारण बताया. उन्होंने यहां तक आरोप लगाया पैसे लेकर अयोग्य उम्मीदवारों को टिकट बांटे गए.

SP के सहयोगी दलों की हुई बैठक में सारे सहयोगियों ने अखिलेश यादव पर अपना भरोसा तो जता दिया है लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो 2024 चुनाव से पहले समीकरण फिर बदल सकते हैं.

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