उत्तराखंड में चुनाव से पहले बीजेपी एक बार फिर अपना मुख्यमंत्री बदल सकती है? बताया जा रहा है कि बीजेपी ने इसकी तैयारियां भी कर ली हैं. तीरथ सिंह रावत को फिर नए सीएम के लिए कुर्सी खाली करनी पड़ सकती है.
तीरथ सिंह रावत को किया गया दिल्ली तलब
उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत को अचानक दिल्ली तलब किया गया, जिसके बाद उन्होंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द किए और सीधे दिल्ली पहुंच गए. अटकलें लगाई जा रही हैं यहां पार्टी नेतृत्व ने तीरथ सिंह रावत के साथ आगे की रणनीति और विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चा की.
लेकिन बताया जा रहा है कि, जिस तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने से पहले दिल्ली तलब किया गया, ठीक उसी तरह तीरथ सिंह रावत से भी चर्चा हुई है. यानी उत्तराखंड में फरवरी 2022 तक होने वाले चुनावों से पहले एक और मुख्यमंत्री देखने को मिल सकता है.
अब आप सोच रहे होंगे कि एक राज्य में एक साल के भीतर दो मुख्यमंत्री कैसे बदले जा सकते हैं और ऐसा करने से तो किसी भी पार्टी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है. लेकिन नहीं, मुख्यमंत्री बदलने को लेकर बीजेपी के पास एक वैधानिक कारण है. साथ ही अगर ऐसा होता है तो ये पार्टी को नुकसान से ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है.
नियमों के चलते होगी सीएम रावत की विदाई?
पहले ये जान लेते हैं कि आखिर तीरथ सिंह रावत को क्यों और कैसे हटाया जा सकता है. दरअसल तीरथ सिंह रावत पौड़ी गढ़वाल से सांसद चुने गए थे. लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर अचानक पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी थमा दी. 10 मार्च को रावत ने उत्तराखंड के सीएम पद की शपथ ली. लेकिन नियम के मुताबिक सीएम बनाए जाने के अगले 6 महीने में मुख्यमंत्री को विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है. यानी तीरथ सिंह रावत को अगर सीएम पद पर बने रहना है तो विधायक का उपचुनाव लड़ना और जीतना होगा.
अब पार्टी के लिए यहां एक मौका है, जिससे वो सीएम भी बदल सकते हैं और इस पर ज्यादा सवाल भी नहीं उठेंगे. तीरथ सिंह रावत के सामने आने वाले इस संवैधानिक संकट को भुनाकर पार्टी राज्य में चुनाव से ठीक पहले एक नया और बेहतर चेहरा उतार सकती है.
संवैधानिक संकट ये है कि 9 सितंबर तक तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड विधानसभा का सदस्य बनना है, लेकिन कोरोना के चलते फिलहाल चुनाव आयोग ने उपचुनावों पर रोक लगा दी है. यानी तीरथ सिंह रावत का विधायक बनना फिलहाल नामुमकिन लग रहा है. क्योंकि फरवरी में चुनाव होना है, यानी विधानसभा चुनाव में करीब 6 महीने का वक्त बाकी है. क्योंकि अब सितंबर में उपचुनाव नहीं होने जा रहे हैं तो उसके बाद विधानसभा चुनावों के कुछ ही महीने बाकी होंगे, जिसका मतलब ये है कि उपचुनाव नहीं कराए जाएंगे.
अब इसे सीएम तीरथ सिंह की बदकिस्मती कहें या बीजेपी की खुशकिस्मती, कुल मिलाकर समीकरण ये बन रहे हैं कि रावत को इस्तीफा देना पड़ सकता है. क्योंकि उत्तराखंड में विधान परिषद नहीं है, तो ये विकल्प भी रावत के लिए खत्म हो चुका है. तो कुल मिलाकर तीरथ सिंह रावत की विदाई तय मानी जा रही है.
तो किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा चुनाव?
अब एक बार फिर सबसे बड़ा सवाल ये है कि उत्तराखंड में बीजेपी किसे मुख्यमंत्री बनाएगी और किसके नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ा जाएगा. पिछली बार जब त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई हुई थी तो कई नामों की चर्चा थी, जिसमें तीरथ सिंह दूर-दूर तक नहीं थे, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने सभी को चौंकाते हुए उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया.
लेकिन अब माना जा रहा है कि उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री दिल्ली से भेजा जा सकता है. जिसमें पहले नंबर के दावेदार राज्यसभा सांसद और बीजेपी के मीडिया इंचार्ज अनिल बलूनी हैं. जिनकी ईमानदार छवि और मोदी-शाह से करीबी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दिला सकती है. बलूनी कोरोनाकाल में लगातार उत्तराखंड के लिए राहत सामग्री पहुंचाने का काम कर रहे हैं, साथ ही लोकल मुद्दों को लेकर भी एक्टिव हैं. इसके अलावा बलूनी एक साफ छवि के नेता माने जाते हैं और उनकी राजनीतिक दुश्मनी भी काफी कम है. इसीलिए उनकी दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है.
बलूनी के अलावा दूसरे नंबर पर देश के मौजूदा शिक्षा मंत्री और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके रमेश पोखरियाल निशंक का नाम शामिल है. जिनके अनुभव पर पार्टी उन्हें मौका दे सकती है. अगले कुछ ही दिनों में मोदी कैबिनेट में कई बदलाव होने जा रहे हैं, अगर निशंक को कैबिनेट से बाहर किया जाता है तो उत्तराखंड में उन्हें पार्टी नई जिम्मेदारी सौंप सकती है. हालांकि रमेश पोखरियाल निशंक की छवि राज्य में उतनी साफ नहीं है.
तीरथ सिंह रावत का जाना बीजेपी के लिए फायदा या नुकसान?
अब ऊपर हमने आपको बताया था कि बीजेपी के लिए तीरथ सिंह रावत का जाना फायदे का सौदा है. इसका कारण ये है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद उत्तराखंड की जनता को एक भरोसेमंद और मजबूत सीएम की जरूरत थी, जो उन्हें नहीं मिल पाया. तीरथ सिंह रावत ने आते ही महिलाओं को लेकर जो बयान दिए उनसे जनता नाराज हो गई. वहीं कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन को लेकर भले ही फैसले दिल्ली से लिए गए हों, लेकिन बैक फायर होने के बाद इसकी पूरी जिम्मेदारी भी तीरथ सिंह रावत के सिर है.
अब इन तमाम चीजों के बावजूद चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टी को उन्हें बाहर करना महंगा पड़ सकता था, लेकिन जो समीकरण बने हैं, वो बीजेपी के लिए उनकी मन की बात जैसे है. क्योंकि अगर संवैधानिक संकट के चलते तीरथ सिंह को इस्तीफा देना पड़ता है तो ये हटाने जैसा बिल्कुल नहीं लगेगा. साथ ही पार्टी के पास किसी मजबूत और साफ छवि वाले नेता के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का सुनहरा मौका मिल जाएगा.
बीजेपी के लिए विवादों से दूरी इसलिए भी जरूरी है हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस जैसा मजबूत विपक्ष पार्टी के सामने है, वहीं इस बार आम आदमी पार्टी भी राज्य में चुनौती दे रही है. ऐसे में बीजेपी को एक दमदार नेतृत्व में चुनाव लड़ने की जरूरत है.
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