इस कहानी की शुरुआत आप कह सकते हैं कि साल नवंबर 2017 में हुई. जब ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के संस्थापक सदस्यों में से एक और पार्टी में बेहद मजबूत दिखने वाले मुकुल रॉय बीजेपी में शामिल हो गए. उस वक्त केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रॉय को पार्टी में शामिल कराते हुए कहा था कि रॉय के बीजेपी में आने से संगठन के विस्तार में मदद मिलेगी और बंगाल में हमारा विस्तार होगा. अब इस 'विस्तार' से उनका क्या मतलब था? इसे साल-साल दर साल समझे तो धीरे-धीरे बीजेपी में कई टीएमसी और दूसरी पार्टियों के नेताओं-कार्यकर्ताओं की एंट्री हुई. अब टीएमसी के एक और जमीनी नेता सुवेंदु अधिकारी, 5 दूसरे पार्टी विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. 1 टीएमसी सांसद और 2 सीपीआई(एम), एक-एक सीपीआई और कांग्रेस के विधायक भी बीजेपी के पाले में आ गए हैं.
'आउटसोर्स नेता' टीएमसी की मुश्किल
इन सभी नेताओं का अपना एक क्षेत्र है, पुराना काम और नाम है. लेकिन पार्टी बदलकर बीजेपी हो गई है. ऐसा दांव पश्चिम बंगाल में ही नहीं, बीजेपी पहले भी कई राज्यों में आजमाती नजर आई हैं, जहां उसका कैडर कमजोर है. जाहिर है ऐसे 'आउटसोर्स नेताओं' की पॉपुलैरिटी बीजेपी को अगले विधानसभा चुनाव में फायदा पहुंचाने जा रही है, एक उदाहरण देखिए टीएमसी के पॉपुलर नेता सुवेंदु ने तो टीएमसी कार्यकर्ताओं के नाम खुला खत लिखकर समर्थन देने की बात कही है, दूसरे नेता भी अपने फैंस और कार्यकर्ताओं से ऐसी ही अपील करेंगे.
सुवेंदु पार्टी के तह तक की बात जानते हैं, उनका हमला भी सीधा वहीं होगा, जहां टीएमसी को सबसे ज्यादा चोट पहुंचेगी. बीजेपी में शामिल होने के बाद वो शाह के साथ एक रैली में नजर आए. उन्होंने ममता के भतीजे और तृणमूल के डायमंड हार्बर निर्वाचन क्षेत्र के लोकसभा सदस्य अभिषेक बनर्जी पर भी हमला किया और उन्हें 'जबरन वसूली' करार दिया। सुवेंदु अधिकारी ने ममता पर निशाना साधते हुए कहा कि, "अब मैं कहता हूं 'तोलाबाज भाईपो हटाओ' (जबरन भतीजे से छुटकारा पाएं).
'बाहरी' के आरोप के जवाब में बंगाली अस्मिता?
तो कुल मिलाकर अमित शाह ऐसे ही नहीं 294 विधानसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल में 200 सीटों पर जीत के दावे कर रहे हैं. ममता बनर्जी को घेरने के बीजेपी हर कोशिश कर रही है. एक तरफ ममता बनर्जी ये साबित करने में जुटी हैं कि बीजेपी और उनके नेता 'बाहरी' हैं तो जवाब में बीजेपी ने भी बंगाली महापुरुषों का जबरदस्त तरीके से महिमांडन शुरू कर दिया है. शाह के दौरे पर भी इसकी साफ झलक दिखी, दौरे के पहले दिन स्वामी विवेकानंद और खुदीराम बोस का जिक्र करते वो नजर आए. स्वामी विवेकानंद के पैतृक आवास पर पहुंचकर उन्होंने श्रद्धांजली दी और उन्हें भारत की आकाशगंगा का सबसे तेजस्वी तारा बताया. साथ ही ये भी कह दिया कि खुदीराम बोस जितने बंगाल के थे, उतने ही पूरे भारत के थे. इससे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने दौरे के दौरान ममता बनर्जी के बाहरी होने के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा था कि जनसंघ संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी बाहरी थे क्या?
विपक्ष का तगड़ा घालमेल
बीजेपी की हालिया चुनाव में एक बड़ी सफलता ये भी रही है कि वो गाहे-बगाहे ये साबित करती रही है कि किसी भी राज्य में चुनाव हो, वो 'बीजेपी Vs विपक्ष' का ही है. अब चाहे विपक्षी पार्टियां अलग-अलग विचारधारी ही कि क्यों न हो लेकिन माहौल ऐसा बन ही जाता है. अब पश्चिम बंगाल में भी विपक्ष के लिए यही 'मुसीबत' है. यहां करीब 6 महीने में होने जा रहे पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए फिर से कांग्रेस और लेफ्ट ने हाथ मिलाया है. दोनों के लिए अस्तित्व की जंग है, पहले जो मुकाबला टीएमसी बनाम लेफ्ट का हुआ करता था, उसे बीजेपी ने टीएमसी बनाम बीजेपी का बना दिया है. लेफ्ट और कांग्रेस भी यही साबित करती आई हैं कि उनकी मुख्य लड़ाई बीजेपी से ही है. सीपीआई(एम) नेता शत्रुप घोष ने हाल ही में क्विंट से बातचीत में कहा था कि "बीजेपी हमारी मुख्य विपक्षी पार्टी है, न सिर्फ पश्चिम बंगाल में बल्कि पूरे देश में. वो राजनीतिक और वैचारिक तौर पर हमसे बिल्कुल उलट हैं. लेकिन दूसरी तरफ हम ममता बनर्जी को भी मौका नहीं देंगे. टीएमसी का जाना जरूरी है, लेकिन बीजेपी उसे रिप्लेस नहीं कर सकती है. यही हमारा स्टैंड है."
वहीं दूसरी तरफ, ममता बनर्जी AIMIM पर सीधा आरोप लगाती हुई खुद कह रही हैं कि अल्पसंख्यक वोटों को विभाजित करने के लिए बीजेपी ने हैदराबाद से एक पार्टी को पकड़ लिया. उन्होंने कहा, “बीजेपी उन्हें पैसे देती है और वे वोटों को विभाजित कर रहे हैं. बिहार चुनाव ने इसे साबित कर दिया है.”
आरोप के जवाब में ओवैसी का कहना है कि मुस्लिम मतदाता उनकी (ममता की) 'जागीर' नहीं है. हैदराबाद के सांसद ने ट्वीट किया कि ममता बनर्जी उन मुसलमानों को पसंद नहीं करती हैं जो अपने लिए सोचते और बोलते हैं.साफ है कि ओवैसी भी इन चुनाव में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे और टीएमसी के अल्पसंख्यक वोट बेस में सेंध लगा सकते हैं.
कुल मिलाकर टीएमसपी की डगर में बीजेपी का कांटा तो है ही, साथ ही बिखरा विपक्ष भी उनके लिए बड़ी चुनौती बनता दिख रहा है.
धीरे-धीरे बढ़ा है बीजेपी का वोट शेयर
बात बीजेपी के वोट शेयर की करें तो कई चुनावों में धीरे-धीरे ही सही लेकिन वोट शेयर में इजाफा करने वाली बीजेपी इस बार आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ने की तैयारी में है और ममता के कई पुराने साथी भी उनका साथ छोड़कर बीजेपी में जा रहे हैं. 2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं और उसका वोट शेयर 10.16 प्रतिशत था.
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के वोट शेयर के बीच तुलना करें तो यह पाएंगे कि उसके वोट शेयर में इजाफा हुआ है. 2014 में उसका वोट शेयर 16.8 प्रतिशत था, और 2019 में 40.25 प्रतिशत. खास तौर से तीन अहम क्षेत्रों में बीजेपी का ये उदय देखा गया है वो हैं- जंगल महल, उत्तर बंगाल और नबद्वीप के आस-पास के इलाके. 2019 के आम चुनावों के नतीजों से ये पता चलता है कि बीजेपी 2021 के चुनावों में बंगाल की सीमा से सटे क्षेत्रों पर अधिक ध्यान लगाए हुए है.
पश्चिम बंगाल में कुल 294 विधानसभा सीटें हैं. वर्ष 2016 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने 219 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत से लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी. कांग्रेस को तब 23,लेफ्ट को 19 और बीजेपी को 16 सीटें हासिल हुई थीं.
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