ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार की जनता गाय बनाम अगड़ा-पिछड़ा से कहीं आगे की सोचती है

बिहार की सत्ता किसके हाथ आएगी? क्या गाय और जातिवाद का नुकसान बीजेपी को सहना पड़ेगा?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

गुरुवार को संपन्न हुए आखिरी चरण की वोटिंग के बाद बिहार विधानसभा चुनावों के लिए किए गए एक्जिट पोल ने दोनों ही गठबंधनों के लिए रविवार, 8 नवंबर तक खुश रहने का कोई न कोई कारण दे दिया है.

एक्जिट पोल में एक एजेंसी के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए इन चुनावों में क्लीन स्वीप कर रही है, वहीं तीन अन्य एजेंसियों का मानना है कि नीतीश के नेतृत्व में महागठबंधन बहुमत हासिल कर लेगा.

वहीं एक और एजेंसी ने सर्वे में एनडीए को आगे रखते हुए एक त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की है. यदि हम बाकियों को दरकिनार कर दें, तो आखिर ये पांच पोल्स किस ट्रेंड की तरफ इशारा कर रहे हैं?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एग्जिट पोल्स के मुताबिक नीतीश की लोकप्रियता बरकरार रहेगी


अधिकांश एक्जिट पोल के मुताबिक दस साल सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश कुमार की लोकप्रियता बरकरार है. हमने भी 10 जिलों में की गई अपनी यात्रा के दौरान यही महसूस किया था. वहां नीतीश कुमार के किसी कट्टर आलोचक को ढूंढ़ना बहुत मुश्किल था.

बिहार की सत्ता किसके हाथ आएगी? क्या गाय और जातिवाद का नुकसान बीजेपी को सहना पड़ेगा?
बिहार में नीतीश कुमार के समर्थक. (फोटो: फेसबुक)

हमें जनता दल (युनाइटेड) के इस नेता के लिए ‘विकास पुरुष’ और ’बदलाव लाने वाला’ जैसे तमाम विशेषण सुनने को मिले. यहां तक कि जिन्होंने हमसे ये कहा कि वे लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन के चलते नीतीश को वोट नहीं देंगे, उन्होंने भी नीतीश कुमार के काम को सराहा था.

वहीं लालू के समर्थक नीतीश के साथ आने से बेहद खुश थे. तमाम यादवों, जिनसे हमने बात की, का कहना था कि नीतीश का लालू के साथ गठबंधन एक तरह की घरवापसी है.

बिहार की सत्ता किसके हाथ आएगी? क्या गाय और जातिवाद का नुकसान बीजेपी को सहना पड़ेगा?
मीडिया से बात करते लालू (फोटो: रॉयटर्स)

कुछ ने तो 1930 के त्रिवेणी संघ के बारे में भी बात की जिसमें अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने के लिए यादवों, कुर्मियों और कोरी समाज के लोगों ने हाथ मिलाया था. अधिकतर एग्जिट पोल्स को देखते हुए लगता है कि नीतीश कुमार ने जो गुडविल कमाई थी वह वोट में भी बदली है.

एक पोल में तो यह भी दिखाया गया है कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडी(यू) का कन्वर्जन रेट (लड़ी गई सीटों में से जीती गई सीटें) बाकी सभी पार्टियों से ज्यादा है, और आरजेडी-कांग्रेस से तो निश्चित रूप से ज्यादा.

क्या सांप्रदायिक बयानबाजी का उल्टा असर हुआ?


एक एक्जिट पोल ने चुनाव के चरणों के हिसाब से ट्रेंड्स का अध्ययन किया. इसमें देखा गया कि महागठबंधन ने तीसरे और पांचवें फेज में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है.

यदि यह सच है, तो इससे पता चलता है कि चुनाव के आखिरी चरणों में वोटरों को ध्रुवीकृत करने की एनडीए की कोशिश का उल्टा असर हो गया. यही वह समय था जब एनडीए की तरफ से ‘महागठबंधन जीता तो पाकिस्तान में जश्न’ और ‘एक खास समुदाय के लिए आरक्षण’ जैसे तमाम बयान आए थे.

इन विज्ञापनों को बीजेपी में हाशिये पर रह रहे नेताओं ने छपवाया है? या बीजेपी के बड़े नेताओं ने?

अरविंद केजरीवाल

ऐसी ही संदेशों के साथ अखबारों मे तमाम विज्ञापन दिए गए थे.

इसी समय तांत्रिक और गाय को लेकर विवाद हुए थे. ध्रुवीकरण की इस राजनीति को देखते हुए मुसलमान भारी संख्या में वोट देने पहुंचे.

जिन इलाकों में मुसलमानों की बहुलता है, वहां पर हुए अपेक्षाकृत ज्यादा मतदान से तो यही इशारा मिलता है. चुनाव के पांचवें चरण में सबसे ज्यादा वोट पड़े. कटिहार और किशनगंज, जहां मुसलमानों की अच्छी-खासी संख्या है, में तो वोटिंग टर्नआउट 65 प्रतिशत रहा.

तमाम एक्जिट पोल के आधार पर देखा जाए तो यह साफ है कि महागठबंधन को मुस्लिमों, यादवों और कुर्मियों का वोट इस बार भी मिला है.

हमने जो जमीन पर देखा, ये एक्जिट पोल भी वही बात कर रहे थे. महागठबंधन की रैलियों की बात की जाए या इलेक्शन ऑफिसों की, अलग-अलग विधानसभाओं में इनके कार्यकर्ताओं में हमें बराबर उत्साह देखने को मिला.

बिहार की सत्ता किसके हाथ आएगी? क्या गाय और जातिवाद का नुकसान बीजेपी को सहना पड़ेगा?
बिहार में एक सार्वजनिक दीवार पर जनता दल (युनाइटेड) का विज्ञापन. (फोटो: फेसबुक)

हमें तमाम ऐसे आरजेडी कार्यकर्ता मिले जो राज्य में नीतीश के किए गए कामों का बखान करते थे और ऐसे जेडीयू कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात हुई जो लालू के ‘धर्मनिरपेक्ष सोच’ की तारीफ करते नहीं थकते थे.

लगभग हर रैली में लालू जिंदाबाद के बाद नीतीश कुमार जिंदाबाद के नारे लगते थे. लालू की रैली के आयोजक यह हमेशा सुनिश्चित करते थे की नीतीश कुमार की जेडी(यू) के नेताओं को भी रैली को संबोधित करने का मौका मिले.

यहां तक कि स्वाभिमान रथ, जिसपर एक एलसीडी स्क्रीन भी लगी थी, लालू और नीतीश कुमार के भाषणों की 41 मिनट लंबी क्लिप दिखाता था. राज्य की 243 विधानसभाओं में सबके लिए ऐसे दो रथों का इंतजाम किया गया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फैसला निर्णायक होगा


बिहार में हमने जो भी देखा, उसके आधार पर कह सकते हैं कि एग्जिट पोल चाहे जो कहें, यहां की जनता निर्णायक फैसला करेगी. चुनाव के अंतिम चरणों में वोटरों ने अपनी राजनीतिक सोच के बारे में खुलकर बताना शुरू कर दिया था.

उन्होंने इस पर भी बात की कि कैसे चुनावी बहस स्तरहीन होती जा रही है. वे राजनीतिक बहस को गाय बनाम अगड़ा-पिछड़ा तक ही सीमित कर देने से काफी नाराज दिखे.

इससे मुझे यह उम्मीद बंधी है कि बिहारी त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति उत्पन्न नहीं होने देंगे. वे किसी भी एक गठबंधन को पूर्ण बहुमत देंगे और पांच साल बाद पूरा हिसाब मांगेगे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×