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योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनते देखना चाहती है RSS?

क्या उत्तर प्रदेश में एक बार फिर ध्रुविकरण की राजनीति अपनाएगी बीजेपी?

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उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके चुनावी रणनीतिकार इस बार कोई चूक नहीं चाहते, लिहाजा फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं.

पर लगता है इस बीच संघ ने सीएम पद की उम्मीदवारी पर अपना मन बना लिया है. संघ इस बार गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ पर अपना दांव खेलना चाहती है.

संघ का एक प्रभावशाली हिस्सा मानता है कि योगी आदित्यनाथ को सीएम पद का उम्मीदवार बनाना यूपी जीतने का अचूक दांव हो सकता है.

लेकिन योगी आदित्यनाथ का नाम यूपी सीएम की उम्मीदवारी के लिए आगे बढ़ाए जाने का आइडिया सबके गले से नीचे नहीं उतर रहा. खासकर तब जब, इस पद की उम्मीदवारी के लिए स्मृति ईरानी, वरुण गांधी और केशव प्रसाद मौर्य का नाम पहले उछाला जा चुका है. इसके अलावा, आदित्यनाथ अपनी कट्टर सांप्रदायिक सोच के लिए जाने जाते हैं, जो उनकी संभावित उम्मीदवारी को काफी रोचक बनाती है.

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असम से मिली सीख

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक सेक्शन को लगता है कि पीएम मोदी को यूपी के लिए स्मृति ईरानी, वरुण गांधी या ओबीसी नेता या यूपी में बीजेपी के नए प्रमुख केशव प्रसाद मौर्य को चुनना चाहिए.

उम्मीदवार चाहे जो चुना जाए, संघ में एक बात पर अग्रीमेंट है कि बीजेपी को अपना उम्मीदवार चुनाव से पहले चुन लेना चाहिए और उसी के चेहरे के साथ मैदान में उतरना चाहिए. बीजेपी में भी इस रणनीति को सपोर्ट मिल रहा है.

हाल ही में असम में हुए चुनाव में पार्टी को इस रणनीति का फल भी मिला है. बीजेपी ने सर्बानंद सोनोवाल को आगे करके चुनाव लड़ा और जीता.

पार्टी से जुड़े लोगों को ये भी लगता है कि अगर बिहार में बीजेपी शत्रुघन सिन्हा के साथ मतभेद मिटा पाती और उन्हें बीजेपी का हेचरा बनाकर मैदान में उतरती तो नतीजा कुछ और हो सकता था.

आदित्यनाथ ही क्यों?

स्वभाव से बड़बोले, बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ यूपी सीएम की उम्मीदारी में वाइल्ड कार्ड एंट्री जैसे हैं. उनका नाम आगे बढ़ाए जाने का कारण भी समझना कोई खास कठिन नहीं है.

वो ध्रुविकरण की राजनीति में माहिर माने जाते हैं. विवादित बयान देकर सुर्खियों में आने की उन्हें आदत है. उन्होंने अभिनेता शाहरुख खान का नाम पाकिस्तानी आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के चीफ हाफिज सईद से ये कहकर जोड़ दिया कि शाहरुख हाफिज सईद की तरह बातें करते हैं.

अपने विवादित बयानों की बदौलत आदित्यनाथ कई बार पीएम मोदी के लिए सिरदर्द बन चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद मोदी ने उनके खिलाफ कभी सार्वजनिक तौर पर कड़ा रूख नहीं अपनाया.

ध्रुविकरण की मदद से बीजेपी ने दो साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें जीतीं. लिहाजा अगर पार्टी इसी विनिंग फॉर्मुले को दोहराना चाहती है तो यूपी में इसके लिए आदित्यनाथ से बेहतर उम्मीदवार कौन हो सकता है?

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ईरानी के लिए अभी उम्मीद बाकी

चूंकि सारा खेल ध्रुविकरण का है तो यहां सिक्के का दूसरा पहलु भी कमजोर नहीं है और वो ये है कि अगर पार्टी राज्यों के चुनावों में ध्रुविकरण के बल पर ही चुनाव लड़ती रहे तो केंद्र में कांग्रेस के खिलाफ एक प्रभावशाली विकल्प की छवि को नुकसान पहुंच सकता है. लिहाजा, अगर आदित्यनाथ बीजेपी के लिए यूपी जीत भी लाते हैं तो लोकसभा चुनाव में पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.

इस तरह से स्मृति ईरानी एक बेहतर उम्मीदवार हो सकतीं हैं, जो बीजेपी के कोर वोटरों के साथ महिलाओं को भी लुभा सकतीं हैं. ईरानी की सबसे बड़ी खूबी ये है कि वो पीएम मोदी की कट्टर समर्थक हैं और मोदी को उनसे कोई खतरा नहीं है.

(लेखक राजीव शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं. उनके साथ जुड़ने के लिए उनके ट्विटर हैंडल @Kishkindha पर ट्वीट कर सकते हैं.)

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