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पूर्वोत्तर में नागरिकता कानून को लेकर असुरक्षा की भावना: कांग्रेस

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नयी दिल्ली, 13 दिसंबर (भाषा) राज्यसभा में कांग्रेस ने पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों का मुद्दा शुक्रवार को उठाया और सरकार से तत्काल एक सर्वदलीय बैठक तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुला कर स्थिति का समाधान निकालने तथा पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को भरोसे में लेने की मांग की।

शून्यकाल में कांग्रेस के आनंद शर्मा ने पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों का मुद्दा उठाया।

उन्होंने कहा कि त्रिपुरा, असम, मणिपुर, मिजोरम में स्थिति चिंताजनक है। ये सीमाई पूर्वोत्तर राज्य संवेदनशील हैं क्योंकि इनकी सीमा चीन, बांग्लादेश, भूटान आदि देशों के साथ मिलती है।

शर्मा ने कहा कि लोगों के मन में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर असुरक्षा की भावना आ गई है। इन लोगों को डर है कि अब वे अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा नहीं कर पाएंगे क्योंकि बड़ी संख्या में उनके राज्यों में बाहरी लोग आएंगे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि वहां सेना की कार्रवाई समाधान नहीं है। वहां के लोगों से बात की जानी चाहिए। राजनीतिक संवाद किया जाना चाहिए। ‘‘जो लोग आंदोलन कर रहे हैं, वह हमारे अपने लोग हैं। हम लोग राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं और हम वहां के हालात देख कर चुपचाप नहीं रह सकते।’’

उन्होंने मांग की कि सरकार को तत्काल एक सर्वदलीय बैठक और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलानी चाहिए और स्थिति पर विचार कर समुचित समाधान निकाला जाना चाहिए।

शर्मा ने मांग की कि पूर्वोत्तर में जो कुछ हो रहा है, उसका पड़ोसी देशों से रिश्तों पर असर नहीं होना चाहिए। ‘‘खास तौर पर संवेदनशील बांग्लादेश के साथ संबंध प्रभावित नहीं होने चाहिए।’’

इसके बाद सभापति ने भाकपा के विनय विश्वम से अपना मुद्दा उठाने को कहा। लेकिन इसी बीच सदन में हंगामा शुरू हो गया और बैठक दोपहर बारह बजे तक स्थगित कर दी गई।

इससे पहले, कांग्रेस की अंबिका सोनी ने लेह और लद्दाख की हिल काउंसिल को छठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग उठाई।

सोनी ने कहा कि लेह के कई नेताओं, पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा हिल काउंसिल के अध्यक्ष, युवाओं के प्रतिनिधिमंडल और अन्य ने कल विपक्ष के नेता और उनसे मुलाकात की तथा लेह में बन रही खतरनाक स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित किया। वहां लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं।

अंबिका सोनी ने कहा कि उनसे मुलाकात करने वाले लोगों ने लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश को छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग उठाई। उन्हें लगता है कि छठी अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद उन्हें उसी तरह संवधौनिक अधिकार मिल जाएंगे जिस तरह के अधिकार पूर्वोत्तर में हिल काउंसिल के पास हैं।

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों असम त्रिपुरा, नगालैंड, मिजोरम की हिल काउंसिल को संवैधानिक अधिकार दिए गए हैं।

उन्होंने कहा कि शुरू में केंद्रशासित प्रदेश बनने को लेकर लेह लद्दाख के लोग बेहद खुश थे, लेकिन अब उनकी वह खुशी गायब हो गई। ‘‘अब उन्हें लग रहा है कि वह अपने संसाधनों, अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, जमीन की रक्षा नहीं कर पाएंगे। ’’

सोनी ने कहा ‘‘लद्दाख के लेह और करगिल में 97 फीसदी लोग जनजातीय समुदाय से हैं। अत: उन्हें छठी अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा ‘‘लेह और लद्दाख की हिल काउंसिलें स्वायत्तशासी हैं लेकिन वैधानिक इकाई हैं संवैधानिक इकाई नहीं हैं। इसकी वजह से उनके पास अपेक्षित अधिकार नहीं हैं। छठी अनुसूची में शामिल किए बिना लोग अपने संसाधनों, अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, अपनी जमीन की रक्षा नहीं कर पाएंगे। ’’

सोनी ने कहा कि यह लद्दाख के लोगों की तर्कसंगत मांग है और सरकार को समय रहते इस ओर ध्यान देना चाहिए।

सभापति एम वेंकैया नायडू ने सदन के नेता थावरचंद गहलोत से कहा कि यह अत्यंत गंभीर मुद्दा है और वह इस संबंध में गृह मंत्री तथा संबद्ध मंत्रियों से बात करें।

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