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Qutab Minar: साकेत कोर्ट में सुनवाई पूरी, 9 जून को फैसला आएगा

कुतुब मीनार में पूजा की मांग को लेकर दायर हिंदू पक्ष की याचिका पर ASI का जवाब.

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देश में ऐतिहासिक इमारतों और धार्मिक स्थलों से जुड़े विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. कुतुब मिनार (Qutub Minar) को लेकर जारी विवाद में अब एक नया मोड़ आया है. कुतुब मीनार परिसर में मंदिरों के जीर्णोद्धार से संबंधित अंतरिम अर्जी पर भारतीय पुरात्तव विभाग (ASI) ने साकेत कोर्ट में हलफनामा दायर कर विरोध जताया. एएसआई ने कहा, कुतुब मीनार पूजा स्थल नहीं, मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता है. कोर्ट इस पर 9 जून को फैसला देगा.

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कुतुब मिनार में पूजा करने का कोई अधिकार नहीं- ASI

कुतुब मीनार के निर्माण के लिए कथित रूप से नष्ट किए गए 27 मंदिरों को फिर से बहाल करने की मांग करते हुए दिल्ली के साकेत कोर्ट में दायर एक याचिका दायर की गई थी. एएसआई ने कहा है कि स्मारक की मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता है.

पुरात्तव विभाग ने स्पष्ट किया कि कुतुब मिनार में पूजा करने का कोई अधिकार नहीं दिया जा सकता है.

यह स्वीकार करते हुए कि कुतुब मीनार परिसर के भीतर कई मूर्तियां मौजूद हैं, ASI ने कहा कि 1914 से, कुतुब मीनार, प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 3 (3) के तहत एक संरक्षित स्मारक है और इसे इसी रूप में बरकरार रखा जाएगा.

'AMSAR एक्ट में पूजा का कोई प्रावधान नहीं'

ASI ने आगे कहा कि, "भूमि की किसी भी स्थिति के उल्लंघन के मामले मौलिक अधिकार का लाभ नहीं उठाया जा सकता है. AMSAR एक्ट के तहत संरक्षित स्मारक में किसी भी नई प्रथा को शुरू करने की अनुमति नहीं दी जासकती. स्मारक के संरक्षण के समय जहां कहीं भी पूजा नहीं की जाती है, वहां पूजा शुरू करने की अनुमति नहीं है."

विकास जैन की ओर से शंकर जैन ने साकेत कोर्ट में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया गया था कि महरौली में कुतुब मीनार परिसर के भीतर स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद एक मंदिर परिसर के स्थान पर बनाई गई थी. इसमें मांग की गई है कि कथित तौर पर तोड़े गए 27 मंदिरों का फिर से जिर्नोद्दार कराया जाए.

हिंदू पक्ष की दलीलें और कोर्ट के सवाल-जवाब

हिंदू पक्ष की ओर से कोर्ट में वकील हरिशंकर जैन ने दलीलें पेश की

जैन: जब कोई मंदिर है जो मस्जिद से बहुत पहले अस्तित्व में था, तो उसे बहाल क्यों नहीं किया जा सकता?

जज ने कहा कि अगर इसकी इजाजत दी गई तो संविधान के ताने-बाने, धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नुकसान होगा. इसपर जैन ने कहा कि वह चाहते हैं कि देवताओं की बहाली हो और पूजा की जाए.

कोर्ट: कौन सा कानूनी अधिकार आपको ऐसा करने का अधिकार देता है...अगर ये मान भी लिया जाए कि इसे ध्वस्त किया गया था, क्या अब आप दावा कर सकते हैं कि इसे बहाल किया जाए?

कोर्ट: अब आप चाहते हैं कि इस स्मारक को मंदिर में बदल दिया जाए और इसका जीर्णोद्धार किया जाए. मेरा सवाल ये है कि आप ये कैसे दावा करेंगे कि ये वादी को मानने का अधिकार है कि ये लगभग 800 साल पहले मौजूद था? इसपर जैन ने AMSAR एक्ट 1958 के सेक्शन 16 का जिक्र किया.

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जैन: अगर यह एक हिंदू मंदिर है, तो इसकी अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती? कानून ऐसा कहता है. देवता की संपत्ति, हमेशा एक देवता की संपत्ति होती है.

कोर्ट: अयोध्या मामले में क्या राय है?

जैन ने प्रासंगिक हिस्से को पढ़ते हुए कहा,- एक बार का देवता, हमेशा का देवता होता है...मंदिर के विध्वंस के बाद यह अपने चरित्र, पवित्रता या गरिमा को नहीं खोएगा. मैं एक उपासक हूं. इसके निशान अभी भी मौजूद हैं, अभी भी दिखाई दे रहे हैं.

जैन: आपने मेरे आवेदन पर पिछली बार मूर्ति के संरक्षण का आदेश पारित किया था. यहां एक लोहे का खंभा है, जो करीब 1600 साल पुराना है.

जैन: देवता कभी नहीं खोते हैं. ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है. अगर देवता हैं, तो पूजा का अधिकार भी है.

कोर्ट: एक हल्के नोट पर, अगर पिछले 800 सालों से बिना काम के देवता जीवित हैं, तो उन्हें ऐसे ही रहने दें.

कोर्ट: सवाल ये है कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार है? क्या यह संवैधानिक या कोई अन्य अधिकार ह

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