फिल्मकार शेखर कपूर का मानना है कि देश में असहिष्णुता पर चल रही चर्चा का हल पुरस्कार लौटाना नहीं है.
गोवा में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में शरीक हुए शेखर कपूर ने कहा कि “अगर आप वाकई में असहिष्णुता को मानते हैं तो कुछ करिए. पुरस्कार लौटाना बहुत आसान है. असहिष्णुता आपको उतना अधिक प्रभावित नहीं करती क्योंकि लोग इसी जाति प्रणाली के तहत रह रहे हैं”
शेखर कपूर ने कहा कि असहिष्णुता पर चर्चा वाजिब है क्योंकि किसी भी बदलते और विकासशील देश में विरोध को लेकर आवाजें उठेंगी और इन्हें सुना जाना चाहिए.
हर किसी का अपना दृष्टिकोण होता है और अगर किसी संस्कृति में बदलाव नहीं होता तो उसके कोई मायने नहीं है. भारत अभी बदलाव से गुजर रहा है और यहां टकराव होना लाजिमी है. लेकिन यह टकराव प्रगति और बदलाव में ही निहित हैशेखर कपूर, निर्देशक
शेखर कपूर ने ये भी कहा कि बुद्धिजीवियों की आवाज को समूचे देश की सोच के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.
जहां देश की 40 फीसदी आबादी के पास खाने को भोजन नहीं है वहां आपके लिए जेम्स बॉन्ड की फिल्म में चुंबन का दृश्य इतना बडा मुद्दा हो जाता है कि उसे छोटा किया जाता है? मुझे बैंडिट क्वीन में विश्वास था.इसलिए मैंने अपनी फिल्म के लिए तीन साल तक सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ी.अगर आपको अपनी फिल्म में विश्वास है तो आगे बढ़िए और इसके लिए लड़ाई लड़िए और देखिए आप कितनी दूर तक आगे जा पाते हैंशेखर कपूर, निर्देशक
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टॉपिक: असहिष्णुता शेखर कपूर अवॉर्ड वापसी
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