नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस)| केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने ऑफशोर ब्लॉक्स और परमाणु खनिज के लिए पांच कंपनियों को खनन लाइसेंस प्रदान करने में स्वामित्व के पैटर्न, वित्तीय संसाधन और तकनीकी क्षमता के संबंध में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं बरतने का खुलासा किया है।
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि जून 2010 में खनन लाइसेंस के लिए आवेदन करते समय इन कंपनियों में एक समान निदेशक थे।
सीबीआई के दस्तावेज के अनुसार, केंद्र ने बताया कि सरकार द्वारा जून 2010 में खनन लाइसेंस के लिए सरकार द्वारा निजी पक्षों से आवेदन मंगाने के बाद पांचों कंपनियों का पंजीकरण हुआ।
उस समय सरकार को मालूम नहीं था कि इन खनिजों का रणनीतिक व रक्षा संबंधी महत्व है।
सीबीआई के अनुसार, लाइसेंस के प्रशासनिक प्राधिकरण ने विभिन्न मंत्रालयों खासतौर से गृह मंत्रालय से अनिवार्य मंजूरी नहीं ली।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 25 अप्रैल के अपने आदेश में केंद्र सरकार को आदेश प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर प्रक्रिया के अनुसार कंपनियों के लाइसेंस की जांच-पड़ताल पूरी करने को कहा।
इस आदेश से पहले केंद्र द्वारा 16 अप्रैल को एक हलफनामे में दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया गया कि उसने परमाणु खनिज वाले ऑफशोर ब्लॉक निजी पक्षों को नीलामी या दोबारा प्रदान नहीं करने का एक नीतिगत फैसला लिया है।
उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए केंद्र ने कंपनियों को मूल्यांकन पत्र में चिन्हित करने के आधार पक्ष में उचित दस्तावेज सुपुर्द नहीं करने का आरोप लगाया।
कंपनियों पर किसी वित्तीय संस्थान या बैंक से कर्ज की मंजूरी के संबंध में कोई दस्तावेज नहीं प्रदान करने का आरोप लगाया गया।
इनमें से एक कंपनी ने एक अग्रणी वित्तीय सेवा कंपनी से खनन के लिए धन मुहैया करने की मांग करते हुए संपर्क किया।
सीबीआई ने एक आंतरिक दस्तावेज में कहा, "दस्तावेज को आवेदक कंपनी की वित्तीय क्षमता के पक्ष में दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया गया। उसके अनुसार, सितंबर 2010 को एक एमओयू पर हस्ताक्षर हुए जिसे इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस (आईबीएम) ने लाइसेंस प्रदान करने के लिए आवेदन प्राप्त करने की तारीख 14 सितंबर 2010 के बाद अक्टूबर 2010 को प्राप्त किया।"
इसलिए केंद्र का मानना है कि कंपनी ने संशोधित दिशानिर्देश के अनुसार, क्रेडिट लिमिट की मंजूरी की पुष्टि नहीं की।
सीबीआई ने उन सरकारी अधिकारियों को आरोपित किया जिन्होंने नवंबर 2017 में जल्दबाजी में दो लाइसेंस के कागजात पर हस्ताक्षर किए। इनमें एक कंपनी ने उचित प्रक्रिया का अनुपालन नहीं किया।
सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर छह साल बाद मामले में प्रारंभिक जांच शुरू की।
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