इलाहाबाद के संगम तट पर हर साल एक ऐसा शहर बसता है, जिसके उजड़ने की तारीख बसने के दिन ही तय हो जाती है. हर साल माघ महीने में ये शहर एक जिले की तरह बसाया जाता हैं. इस शहर की खास बात ये है की ये दूसरे शहरों से एकदम अलग है, क्योंकि ये धर्म की नगरी है. जहां हर काम धर्म से शुरू होकर धर्म पर खत्म होता है.
आस्था की नगरी- तंबुओं का आशियाना
तंबुओं से घिरा, ये रेत का मैदान आस्था की वो नगरी है, जो धर्म की बुनियाद पर, तंबुओं के आशियाने से, बस्ती में तब्दील कर दी गई है. यहां रहने वाले लोगों के घर तंबुओं के हैं और फर्श रेत की तो सड़कें लोहे के चकार्ड प्लेट से बनाई गई हैं.
यहां एक बस्ती से दूसरी बस्ती को जोड़ने के लिए कोई फ्लाई ओवर नहीं, बल्कि पीपे से बने पंटून के पुल हैं, जिस पर गाड़ियां बड़े मजे से दौड़ती हैं. इस शहर के लिए प्रसाशन को एक महानगर की तरह ही व्यवस्था करनी पड़ती है.
महानगरों की चकाचौंध से दूर
1800 सौ एकड़ में बसे इस नगर को पांच सेक्टर में बांटा गया है, तो वहीं सड़कें 56 किलोमीटर तक बिछाई गई हैं. महानगरों से इतर यहां आने वालों लोगों की संख्या कुछ खास स्नान पर्वों पर घटती बढ़ती रहती है पर अखाड़े साधु सामाजिक संस्था और कल्पवासी इस नगर के उजड़ने तक रहते हैं, लिहाजा इनके लिए राशन पानी बिजली स्वास्थ्य जैसी व्यवस्था महानगरों की तरह ही होती है. पर यहां महानगरों के चकाचौंध से दूर हर वक्त भजन कीर्तन और पूजन पाठ चलता रहता है.
आध्यात्मिक जरूरतों के लिए प्रवचन का सहारा
भगवा रंग में रंगी आस्था की इस नगरी में लोगों की अध्यात्मिक जरूरतें साधु-संतों के प्रवचनों से पूरी होती है. यहां रहने वाले लोगों का भले ही आम नगरों की तरह झगड़े-फसाद से कोई लेना देना न हो फिर भी इनकी सुरक्षा के लिए पुलिस की गयी है. पर इसमें खास बात ये है की इन पुलिस वालों को लाठी डंडे या आंसू गैस से नहीं बल्कि प्रेम और सौहार्द की सीख दे कर यहां तैनात किया गया है. जो देश के दूसरे महानगरों से बिलकुल अलग है.
सबके अपने-अपने रंग
रेत पर बसने वाले इस नगर में देश ही नहीं विदेश से भी साधु संत और आम लोग आध्यात्म की खोज में संगम की रेट पर अपनी धूनी रमाते हैं. अध्यात्म की इस खोज में सबके अपने-अपने रंग अलग-अलग होते हैं, कुछ भजन-पूजन करते हैं, तो कुछ नचाते गाते हैं.
इस भक्ति से इन्हें पता नहीं भगवान मिलेंगे या नही, पर यहां विश्वास की डोर से खींचे लोगों के आने का तांता लगा रहता है. अपने इसी विश्वास में आत्मिक सुख की अनुभूति करते भगवान को तलाशते नजर आते हैं.
कई रंग बदलती है ये नगरी
त्रिवेणी के तट पर बसी ये नगरी दिन भर में कई रंग बदलती है. सुबह की शुरुआत जहां गंगा स्नान से होता है तो दिन भजन पूजन में गुजरता है.
देश के बाकी शहर भले ही रात में खामोश हो जाते हो पर ये नगरी पूरी रात जगती है, और ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि एक महीने के बद जब ये नगरी उजाड़ जाएगी तब ऐसा सुख इन्हें फिर एक साल बाद ही मिलेगा. इसलिए ये इस पूरे महीने को जिंदगी भर के लिए सहेज लेना चाहते हैं.
ये भी पढ़ें- माघ मेला में संगम पर भड़के संन्यासी, कहा-योगी से ऐसी उम्मीद नहीं
[गणतंत्र दिवस से पहले आपके दिमाग में देश को लेकर कई बातें चल रही होंगी. आपके सामने है एक बढ़िया मौका. चुप मत बैठिए, मोबाइल उठाइए और भारत के नाम लिख डालिए एक लेटर. आप अपनी आवाज भी रिकॉर्ड कर सकते हैं. अपनी चिट्ठी lettertoindia@thequint.com पर भेजें. आपकी बात देश तक जरूर पहुंचेगी]
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)