कानपुर (Kanpur) और कासगंज (Kasganj) कस्टोडियल डेथ (Custodial Death) के मामलों में यूपी पुलिस (UP Police) पर जो सवाल उठ रहे हैं, वो सुदर्शन फाकिर की लिखी पंक्तियों के काफी करीब हैं. इन दोनों मामले में कुछ ऐसी अजीब चीजें हुई हैं कि सवाल उठने तो तय थे.
कासगंज में अल्ताफ और कानपुर में जितेंद्र- कस्टडी में मौत के संगीन आरोपों से घिरी उत्तर प्रदेश की पुलिस ने अपने ऊपर लगे आरोपों के जवाब में कुछ ऐसे बयान दिए जिस पर फिर सवाल खड़े हो गए.
कासगंज (Kasgang) में 21 वर्षीय अल्ताफ (Altaf) की कथित तौर पर कस्टडी में मौत हो जाती है. कासगंज के पुलिस अधीक्षक रोहन बोत्रे का बयान आता है- अल्ताफ ने लॉकअप के बाथरूम में 3 फुट पर लगे पानी की पाइप से लटककर जान दे दी.
गले में फंदा बनाने के लिए अपने हुड के नाड़े का इस्तेमाल किया. कप्तान साहब ने बयान तो दे दिया, लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतरी. विपक्ष ने जमकर हमला बोला, लेकिन कप्तान साहब अपने बयान पर अड़े रहे. इस घटना पर उठ रहे कई सवाल, पुलिस को अभी भी पशोपेश में रखे हुए हैं.
पहला सवाल: लड़की भगाने के आरोप में अल्ताफ को थाने लेकर आई पुलिस, लेकिन इसकी एंट्री थाने की जनरल डायरी में क्यों नहीं की गई?
दूसरा: आरोप ये भी लग लग रहे हैं कि लड़की को भगाने का मुकदमा पुलिस ने अल्ताफ की मौत के बाद दर्ज किया. अगर यह सच है तो एक मरे हुए इंसान के ऊपर पुलिस मुकदमा कैसे दर्ज कर सकती है?
तीसरा: मीडिया और विपक्ष के दबाव में पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज कर लिया, लेकिन अल्ताफ के पिता की तरफ से दी गई तहरीर में आरोपी पुलिस वालों का नाम होने के बावजूद इसको FIR में क्यों नहीं शामिल किया गया?
और आखिरी: पांच पुलिसवालों को सस्पेंड तो कर दिया गया है, लेकिन हत्या का मुकदमा दर्ज होने के बाद भी अभी तक कोई गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है?
अब ताजा मामला कानपुर का है जहां पर आरोप लग रहा है कि जिले के कल्याणपुर थाने की पुलिस द्वारा कस्टडी में कथित तौर पर हुई बर्बरता के बाद जितेंद्र नाम के एक युवक की अस्पताल में मौत हो गई है.
परिवार के लोग जितेंद्र के शव पर चोटों के निशान दिखाते बिलख रहे हैं, लेकिन पुलिस का कहना है कि जितेंद्र की मौत पेट की बीमारी के कारण हुई है.
परिवार का आरोप है कि चोरी के शक में जितेंद्र को कल्याणपुर थाने की पुलिस 12 तारीख को उठाकर गई थी और अगले दिन मरणासन्न हालत में परिवार को सुपुर्द कर दिया. इलाज के दौरान 16 तारीख की रात जितेंद्र की मौत हो गई.
मौके पर पहुंचे कानपुर डीसीपी वेस्ट बीबीजीटीएस मूर्ति ने कहा कि- हमारे सब इंस्पेक्टर का कहना है कि किसी दूसरी जगह के पुलिसकर्मियों का यह काम हो सकता है.
कहानी यहीं खत्म नहीं होती है. अपने आप को मामले में घिरता देख पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज कर लिया लेकिन आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ नहीं, जितेंद्र के पड़ोसी के खिलाफ. जी हां, यह वही पड़ोसी है जिसने जितेंद्र के खिलाफ चोरी का मुकदमा दर्ज किया था.
जितेंद्र का शरीर फट्टों की मार से लाल हो गया है लेकिन पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से कह रही है कि जितेंद्र के शरीर पर कोई अंदरूनी चोट नहीं थी और उसकी मौत पेट की बीमारी के कारण हो गई थी.
कानपुर पुलिस कमिश्नर का कहना है कि घटना की जांच वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर कराई जाएगी.
NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक पिछले 20 साल में 1888 लोगों की जान कस्टडी में चली गई. इनमें सिर्फ 26 पुलिस वालों को सजा हुई.
सवाल यह भी उठता है जब पुलिस के ऊपर आरोप लगेंगे और जांच भी पुलिस करेगी तो निष्पक्षता और पारदर्शिता के क्या मायने होंगे? कासगंज और कानपुर के मामलों में भी पुलिस के आला अधिकारी अपने अधीनस्थ पुलिसकर्मियों को क्लीन चिट देते हुए नजर आ रहे हैं.
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