- रिपोर्टर: 'सर क्या आप हमारे साथ चल सकते हैं, हमें इस इलाके के बारे में कुछ नहीं पता'
- दिल्ली पुलिस: 'मैं आपको बता रहा हूं, आप इस तरफ से जाइए उसके बाद दाएं चलिए'
- रिपोर्टर: 'सर हालात समझिए'
द क्विंट की पत्रकार ने पुलिस से सिराज के लिए मांगी मदद, सिराज एक ऑटो रिक्शा ड्राईवर हैं जो अपने बहन और उनके परिवार को बचाने की कोशिश कर रहे थे जो 23 फरवरी से दिल्ली उत्तर पूर्वी इलाके में फंसे थे जब उस इलाके में स्थिति बिगड़ने लगी.
पुलिस ने सिराज के साथ जाने से इनकार कर दिया, द क्विंट की पत्रकार ने तय किया कि वो सिराज के साथ जाएंगी.
पहली चुनौती ये थी कि सिराज की बहन का घर का पता हमारे पास नहीं था, और पुलिस करावल नगर की गलियों में मौजूद नहीं थी.
पुलिस करावल नगर की गलियों में नहीं आई: स्थानीय
हम जिस रास्ते से जा रहे थे उस रास्ते पर एक परिवार ने हमसे मदद मांगी क्योंकि उस वक्त सिर्फ हमारी गाड़ी मौजूद थी, पुलिस 23 फरवरी से करावल नगर नहीं पहुंची थी.
गली नंबर 12 में एक मस्जिद में तोड़-फोड़ हुई थी, सबसे बड़ी दिक्कत ये थी की पुलिस नहीं आई.
सिराज की बहन का घर उस मस्जिद के ठीक पास था, जहां 23 फरवरी को तोड़ फोड़ हुई. जगह पर पहुंचने के बाद हमने गली के बाहर ही गाड़ी पार्क की और घर की तरफ बढ़े, सभी लोगों की नजरें हम पर थी.
जब हम घर पर पहुंचे तो घर के बाहर ताला लगा था, हमें बताया गया कि कोई भी घर में नहीं है लेकिन उस वक्त सिराज की बहन अंदर से चिल्लाई और उन्होंने हमें पड़ोस से चाबी लेने को कहा
'एक हिंदू परिवार ने हमें पनाह दी'
अली अहमद सिराज की बहन के ससुर हैं जो करावल नगर में अपने परिवार के साथ 1984 से रह रहे हैं, उन्होंने द क्विंट को बताया कि उन्हें कभी यहां डर नहीं लगा जबकि ये एक हिंदू बहुल क्षेत्र है. 24 फरवरी तक क्षेत्र में तनाव बढ़ चुका था तो हमें पड़ोस के एक हिंदू परिवार ने पनाह दी.
‘हम पड़ोस के घर में रह रहे थे, एक हिंदू परिवार के घर में, हम सालों से पड़ोसी हैं, जब लोगों को ये पता लगा कि हम वहां रुके हैं तो उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा, उन्होंने हमें 26 फरवरी को अपने घर लौट जाने को कहा, उन्होंने दरवाजा बाहर से बंद कर ताला लगा दिया, उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वो हमने इस क्षेत्र से बाहर निकालने में मदद करेंगे.’अली अहमद, सिराज की बहन के ससुर
'गली में हिंसा बाहर के लोगों ने फैलाई' 23 फरवरी को याद कर अली बताते हैं -
23 फरवरी को मैंने देखा कि 50-60 लोग मस्जिद में तोड़-फोड़ कर रहे हैं, उन्होंने घरों को निशाना नहीं बनाया, बाद में उन लोगों ने घरों और लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया, वो लोग कह रहे थे कि ‘यहां से मुसलमानों को हटाओ’, मैंने देखा कई लोगों को परेशान किया गया, युवा भाग गए थे. लेकिन परिवार मंगलवार तक निकल पाए थे, हम सोमवार को अपने पड़ोस में गए थे, वो हमारा घर जलाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वो फिर रुक गए क्योंकि आस-पास के घरों में आग लग सकती थी.
कई बार फोन लगाने पर भी पुलिस नहीं आई: परिवार
अली अहमद के बेटे अली मोहम्मद ने द क्विंट को बताया कि उन्होंने पुलिस से कई बार मदद मांगी लेकिन उन्हें बचाने कोई नहीं आया.
मोहम्मद ने द क्विंट के सामने भी 100 नंबर पर कॉल किया लेकिन पुलिस ने आने से इनकार करते हुए कहा कि 'लोग कम हैं'
द क्विंट की रिपोर्टर ने वरिष्ठ पुलिसकर्मी को कॉल कर अली के परिवार को बचाने के लिए कहा जो हिंसा के बीच फंसे थे, करीब 3-4 घंटे बाद 3 पुलिसकर्मी उनके घर पहुंचे और परिवार को वहां से निकाला जिसमें 6 एडल्ट और 4 बच्चे थे.
उस वक्त एक और मुस्लिम कपल जो एक हिंदू परिवार के घर में रह रहा था हमारे साथ जुड़ गया, एक पुलिसकर्मी ने द क्विंट को बताया कि दिल्ली में 23 फरवरी से जो स्थिति खराब हुई है वो 1984 के दंगों से भी भयानक है.
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