विजय रुपाणी सरकार को झटका देते हुए गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) ने 19 अगस्त को एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि, विवादास्पद लव जिहाद (Love Jihad) कानून या गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों का प्रयोग केवल इसलिए नहीं किया जा सकता कि शादी अंतर-धार्मिक हुई है. हाईकोर्ट ने कहा कि, बल, लालच या धोखाधड़ी साबित होने पर ही कार्रवाई की जा सकती है.
लव जिहाद कानून को लेकर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
यह अंतरिम आदेश मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस बीरेन वैष्णव की बेंच ने गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई में दिया. यह याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिंद गुजरात ने दायर की थी.
हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है,
"हमारी राय है कि धारा 3, 4, 4A से 4C, 5, 6, 6A का प्रयोग सुनवाई के लंबित रहने तक केवल इसलिए नहीं किया जा सकेगा क्योंकि एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे के व्यक्ति के साथ बिना बलपूर्वक या प्रलोभन के या कपटपूर्ण तरीकों से विवाह किया गया है और ऐसे विवाहों को गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य के लिए विवाह नहीं कहा जा सकता है. अंतरिम आदेश केवल त्रिवेदी, विद्वान महाधिवक्ता द्वारा दिए गए तर्कों के आधार पर और अंतरधार्मिक विवाह के पक्षों की रक्षा करने के लिए प्रदान किया जा रहा है जिन्हे अनावश्यक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद गुजरात ने तीन आधार पर दी थी चुनौती
याचिकाकर्ता जमीयत उलमा-ए-हिंद गुजरात ने संशोधन अधिनियम को तीन आधार पर चुनौती दी थी.
अधिनियम के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अपने धर्म को मानने और प्रचार करने के लिए एक नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.
अधिनियम में प्रयुक्त भाषा अस्पष्ट है और यह अनुच्छेद 21 के तहत निजता के बहुमूल्य अधिकार का अतिक्रमण करती है, जो विवाह में एक व्यक्ति के लिए आवश्यक है.
2003 का अधिनियम केवल कपटपूर्ण या धमकी द्वारा जबरन धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है, लेकिन संशोधन द्वारा विवाह की मदद से धर्मांतरण और अस्पष्ट भाषा जैसे "ईश्वरीय आशीर्वाद का आकर्षण" को इसके दायरे में लाया गया.
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