ADVERTISEMENTREMOVE AD

दिल्ली में हर साल पॉल्यूशन पर हल्ला, लेकिन इन 5 बड़े कारणों का नहीं हुआ इलाज

प्रदूषण को लेकर हर साल होती है बात, सुप्रीम कोर्ट से भी लगती है फटकार, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाता

Updated
राज्य
6 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

राजधानी दिल्ली (Delhi) में प्रदूषण (Pollution) की समस्या ने एक बार फिर विकराल रूप धारण कर लिया है. वायु प्रदूषण की बात करें तो दिल्ली की हवा 'बेहद खतरनाक' की श्रेणी से 'बेहद खराब' के बीच मापी जा रही है. बीते कुछ दिनों में दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 300 से 400 तक मापा गया. इसके साथ ही हर साल की तरह ब्लेम गेम- यानी आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया.

सरकार अपनी इमेज बचाने को सक्रिय दिखने लगी और दिल्लीवासी अलग-अलग राय मशवरों के साथ सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए. लेकिन इन दोनों के बीच एक समानता है कि दोनों ही प्रदूषण को लेकर गंभीर नहीं है. ये बातें हम हवा में नहीं कर रहे ऐसे बहुत से तथ्य है जो इस सच्चाई को साबित करते हैं, उनमें से पांच तथ्य हम आपको बताने जा रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दिल्ली में लगातार बढ़ती वाहनों की संख्या

इसी साल दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र के दौरान पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली इकनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट में दिल्ली में वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. साल 2005-06 के मुकाबले साल 2019-20 में दिल्ली में वाहनों की संख्या 317 प्रति हजार लोगों से दोगुनी होकर 643 प्रति हजार हो गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 31 मार्च 2020 तक 1.18 लाख करोड़ मोटर से चलने वाले वाहन थे.

दिल्ली सरकार की ओर से पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों में कमी आये इसके लिए कोशिशें जारी है. दिल्ली सरकार इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा देने की कोशिशों में है. इसी वजह से ई-वाहनों पर सब्सिडी भी दी जा रही है.

लेकिन इसमें कुछ कमियां है- दिल्लीवासी अब भी ई -वाहनों की जगह पेट्रोल-डीजल के वाहनों को तवज्जो दे रहे हैं. सरकार की ओर से भी ऐसे कदम उठाने में काफी देर की गई.
प्रदूषण को लेकर हर साल होती है बात, सुप्रीम कोर्ट से भी लगती है फटकार, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाता

दिल्ली सरकार इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा देने की कोशिशों में है

(फोटो:  क्विंट)

जब शहर में चार्जिंग पॉइंट की कमी होगी तो शहरवासी कैसे ई -वाहनों पर निर्भर रहेंगे. रिपोर्ट्स के अनुसार दिल्ली में अभी लगभग 80 चालू चार्जिंग स्टेशन हैं.जो दिल्ली में वाहनों की संख्या के अनुपात में काफी कम हैं. चार्जिंग स्टेशन को लगाने की कीमत भी तकरीबन 10 लाख तक है जो काफी ज्यादा है.

0

पांच सालों में पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक जली पराली

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 24 नवंबर को केंद्र और राज्यों से यह बताने को कहा कि उन्होंने वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने और किसानों द्वारा पराली जलाने से रोकने के लिए क्या उपाय किए हैं.

सुप्रीम कोर्ट को ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि रिपोर्ट्स के अनुसार पंजाब और हरियाणा के गांव में पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा पराली जलाई गई. बीते कुछ वर्षो में पराली के जलने को दिल्ली के प्रदूषण का बड़ा कारण माना जाता रहा है.

प्रदूषण को लेकर हर साल होती है बात, सुप्रीम कोर्ट से भी लगती है फटकार, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाता

पंजाब और हरियाणा के गाव में पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा पराली जलाई गई

(फोटो: आईएएनएस)

रिपोर्ट्स के अनुसार इस साल सैटेलाइट से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार पंजाब में सितंबर से दिसंबर माह में पराली जलाने की 74,015 घटनाएं हुईं. पिछले साल ये संख्या 72, 373 थी. जबकि हरियाणा में सैटेलाइट इमेज के जरिये पता चला कि एक महीने में पराली जलाने की 8,879 घटनाएं हुईं, जबकि पिछले साल ये संख्या 5186 थी.

ये आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि पराली जलाने के खिलाफ सख्त कानून बनाने के बाद भी इनमें कमी नहीं आई और दिल्ली से सटे होने के कारण दिल्ली के प्रदूषण में इनका बड़ा योगदान रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दिल्ली में भारी संख्या में ट्रकों की एंट्री

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने आज 26 नवंबर को कहा कि आवश्यक सेवाओं में लगे लोगों को छोड़कर केवल कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) से चलने वाले ट्रकों और टेंपो को ही 27 नवंबर से दिल्ली में प्रवेश की अनुमति होगी. यह आदेश 3 दिसंबर तक लागू होगा.

राजधानी दिल्ली में बड़ी मात्रा में देशभर से ट्रक और अन्य हैवी वाहनों का आना भी प्रदूषण में अपना बड़ा योगदान देता है. जब दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया और चारों तरफ इसका हल्ला हुआ तब दिल्ली सरकार ने इस ओर ध्यान दिया, वरना उससे पहले दिल्ली सरकार की ओर से ट्रकों के जरिए फैल रहे प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए.

प्रदूषण को लेकर हर साल होती है बात, सुप्रीम कोर्ट से भी लगती है फटकार, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाता

ट्रक के द्वारा फैल रहे प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए.

(फोटो:  क्विंट)

दिल्ली में डीजल-पेट्रोल के ट्रकों की एंट्री पर रोक लगा देना एक अस्थायी हल तो हो सकता है लेकिन ये परमानेंट उपाय तो नहीं है. दिल्ली सरकार को ट्रक के जरिये फैल रहे प्रदूषण पर भी कोई ठोस नीति बनानी होगी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शहर में चलती इंडस्ट्री

छठ पूजा के दौरान दिल्ली की यमुना नदी से जो तस्वीरें सामने आईं वो चर्चा का विषय बनकर रह गईं. पूरी यमुना नदी जहरीले झाग से भरी हुई थी और इन झागों का कारण था यमुना के पानी में इंडस्ट्री से आकर मिलने वाले अलग-अलग तरह के जहरीले केमिकल.

जिसने यमुना नदी के पानी को न सिर्फ प्रदूषित बल्कि जहरीला कर दिया. दिल्ली में बड़ी मात्रा में ऐसी इंडस्ट्रीज और कारखाने मौजूद है जो प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार ने जो गाइडलाइन जारी की उसका पालन नहीं करती.

प्रदूषण को लेकर हर साल होती है बात, सुप्रीम कोर्ट से भी लगती है फटकार, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाता

यमुना नदी के पानी को न सिर्फ प्रदूषित बल्कि जहरीला कर दिया.

(फोटो: आकिब रजा खान/द क्विंट)

युमना के प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने पानी का छिड़काव और बांस के खांचे बनाकर झाग और प्रदूषण नियंत्रण करने की कोशिश की. विशेषज्ञों की ओर से इसका मजाक बनाया गया. सवाल उठे क्या वाकई इससे दिल्ली और यमुना साफ हो जाएगी?

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने दिल्ली-एनसीआर में स्तिथ 100 इंडस्ट्रीज से प्रदूषण फैलाने के लिए 4.8 करोड़ रुपये 'बतौर पर्यावरण' मुआवजा वसूल किये. दिल्ली में प्रदूषण को मद्देनजर यह सख्ती बड़ी है लेकिन क्या आम दिनों में भी इसका कड़ाई से पालन हो पाएगा ये कहना मुश्किल होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कंस्ट्रक्शन साइट्स और दिल्ली में सफाई व्यवस्था

केंद्र सरकार ने इंडस्ट्रीज के सिवा दिल्ली-एनसीआर में 578 निर्माण स्थलों को बंद कर दिया था. इसके अलावा 262 साइटों पर प्रदूषण गाइडलाइन का उल्लंघन पाया गया था. रिपोर्ट्स के अनुसार दिल्ली एनसीआर में निर्माण और डेमोलिशन नॉर्म्स के उल्लंघन के 803 मामलों को नोट किया गया था और इसी कारण दिल्ली, हरियाणा, यूपी और राजस्थान में 443 लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया था.

दिल्ली में ऐसी अनगिनत निर्माण साइट्स मौजूद हैं, जो निर्माण कार्यो में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT ) गाइडलाइन्स का पालन नहीं करती जिसके कारण दिल्ली में धूल-मिट्टी की मात्रा में बढ़ोतरी के साथ-साथ प्रदूषण की मात्रा भी बढ़ती है.

दिल्ली में सफाई कर्मचारियों से लेकर MCD के पास ड्राइवरों की कमी है, जिस वजह से दिल्ली की सड़कें ठीक तरह से साफ नहीं रह पातीं. पूरि दिल्ली सिर्फ 69 मर्चेंडाइज रोड स्वीपर ही कार्यरत हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार इनमें से SDMC और NDMC के पास टैंकरों के ड्राइवर की कमी होने की वजह से सभी टैंकर सफाई में इस्तेमाल नहीं हो पाते.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते कुछ दिनों में लगातार केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "ये देश की राजधानी है. हम दुनिया को जो संकेत भेज रहे हैं, उसे देखिए. आपको हवा की गुणवत्ता गंभीर होने तक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है."

इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने 24 नवबंर को सुनवाई के दौरान एक और सख्त टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार कहा, "हम इस मामले को बंद करने वाले नहीं है."

प्रदूषण को लेकर हर साल होती है बात, सुप्रीम कोर्ट से भी लगती है फटकार, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाता

कोर्ट ने  दिल्ली सरकार को प्रदूषण के कारण दो दिनों का लॉकडाउन तक लगाने की सलाह दे डाली थी

(फोटोः पीटीआई/अतुल यादव)

कोर्ट ने 13 नवंबर को दिल्ली सरकार को बढ़ते प्रदूषण के कारण दो दिनों का लॉकडाउन तक लगाने की सलाह दे डाली थी.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार के साथ ब्यूरोक्रेसी से भी सवाल किया. पराली जलने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने टिप्पणी करते हुए तुषार मेहता से कहा, "आप एक सरकारी वकील के रूप में और हम जज इस पर चर्चा कर रहे हैं. इतने सालों में नौकरशाही क्या कर रही है? उन्हें गांवों में जाने दें, वो खेत में जा सकते हैं, किसानों से बात कर सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं. वो वैज्ञानिकों को शामिल कर सकते हैं और ऐसा क्यों नहीं हो सकता."

सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई 29 नवंबर को तय की है और तब तक दिल्ली में सभी निर्माण कार्यो पर रोक लगा दी गई है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×