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पसंदीदा अफसरों ने ही महाराष्ट्र सरकार को नुकसान पहुंचाया: शिवसेना

शिवसेना की नसीहत- वरिष्ठ अधिकारियों से बेवजह पंगा लिया, कम बोलें देशमुख

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राज्य
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शिवसेना नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र के हालिया घटनाक्रमों का जिक्र करते हुए कहा है कि 'सचिन वझे नाम के सहायक पुलिस निरीक्षक का इतना महत्व कैसे बढ़ गया? यह जांच का विषय है.' उन्होंने यह भी कहा है कि अनिल देशमुख को महाराष्ट्र के गृह मंत्री का पद दुर्घटनावश मिल गया था.

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बता दें कि 25 फरवरी को दक्षिण मुंबई स्थित उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक से लदी स्कॉर्पियों एसयूवी कार मिली थी, इस मामले में एनआई ने 13 मार्च को वझे को गिरफ्तार किया था. ठाणे के कारोबारी मनसुख हिरन की कथित हत्या में भूमिका के आरोप में भी वझे की जांच हो रही है.

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शिवसेना के मुखपत्र सामना में राउत ने लिखा है, ‘’महाराष्ट्र के एक मंत्री संजय राठौड़ को नैतिकता के मुद्दे पर इस्तीफा देना पड़ा. वह प्रकरण शांत नहीं हुआ, तभी मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा गृह मंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ की वसूली का आरोप लगाने का मामला आज भी खलबली मचा रहा है. परमबीर सिंह के आरोपों के कारण अनिल देशमुख को गृह मंत्री के पद से जाना होगा और सरकार डगमगाएगी, ऐसा माहौल तैयार हो गया था, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके बावजूद देशभर में इस प्रकरण पर चर्चा हुई और महाराष्ट्र की बदनामी हुई!’’

राउत ने सचिन वझे को लेकर लिखा है, ''सचिन वझे अब एक रहस्यमयी मामला बन गया है. पुलिस आयुक्त, गृह मंत्री, मंत्रिमंडल के प्रमुख लोगों का दुलारा और विश्वासपात्र रहा वझे महज एक सहायक पुलिस निरीक्षक था. उसे मुंबई पुलिस का असीमित अधिकार किसके आदेश पर दिया यह वास्तविक जांच का विषय है. मुंबई पुलिस आयुक्तालय में बैठकर वझे वसूली कर रहा था और गृह मंत्री को इस बारे में जानकारी नहीं होगी?''

शिवसेना नेता ने लिखा है,

  • ''देशमुख को गृह मंत्री का पद दुर्घटनावश मिल गया. जयंत पाटिल, दिलीप वलसे-पाटिल ने गृह मंत्री का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. तब यह पद शरद पवार ने देशमुख को सौंपा. इस पद की एक गरिमा और रुतबा है. खौफ भी है. संदिग्ध व्यक्ति के घेरे में रहकर राज्य के गृह मंत्री पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति काम नहीं कर सकता है. पुलिस विभाग पहले ही बदनाम है. उस पर ऐसी बातों से संदेह बढ़ता है.''
  • ''अनिल देशमुख ने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से बेवजह पंगा लिया. गृह मंत्री को कम-से-कम बोलना चाहिए. बेवजह कैमरे के सामने जाना और जांच का आदेश जारी करना अच्छा नहीं है. ‘सौ सुनार की एक लोहार की’ ऐसा बर्ताव गृह मंत्री का होना चाहिए. पुलिस विभाग का नेतृत्व सिर्फ ‘सैल्यूट’ लेने के लिए नहीं होता है. वह प्रखर नेतृत्व देने के लिए होता है. प्रखरता ईमानदारी से तैयार होती है, ये भूलने से कैसे चलेगा?''
  • ''परमबीर सिंह ने जब आरोप लगाया तब गृह विभाग और सरकार की धज्जियां उड़ीं. लेकिन महाराष्ट्र सरकार के बचाव में एक भी महत्वपूर्ण मंत्री तुरंत सामने नहीं आया. चौबीस घंटे गड़बड़ी का माहौल बना रहा. लोगों को परमबीर का आरोप शुरू में सही लगा इसकी वजह सरकार के पास ‘डैमेज कंट्रोल’ के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. एक वसूलीबाज पुलिस अधिकारी का बचाव शुरू में विधान मंडल में किया. उसके बाद परमबीर सिंह के आरोपों का उत्तर देने के लिए कोई तैयार नहीं था और मीडिया पर कुछ समय के लिए विपक्ष ने कब्जा जमा लिया, यह भयंकर था.''
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राउत ने लिखा है, ''अनिल देशमुख, वझे, परमबीर सिंह के पत्र के घालमेल में सरकार का पांव निश्चित तौर पर फंसा. वो दोबारा न फंसे. अधिकारियों ने सरकार को मुश्किल में डाला...अधिकारियों पर निर्भर रहने का परिणाम राज्य सरकार भुगत रही है. अपने ही पसंदीदा अधिकारियों की नियुक्ति की प्रथा शुरू हुई. ये पसंदीदा अधिकारी ही डूबने की वजह बने!''

सामना के कार्यकारी संपादक राउत ने बीजेपी को निशाने पर लेते हुए लिखा है, ''महाराष्ट्र के विपक्ष को ठाकरे सरकार को गिराने की जल्दबाजी लगी है इसलिए फटे हुए गुब्बारे में हवा भरने का काम वे कर रहे हैं. उनके आरोप शुरू में जोरदार लगते हैं बाद में वे झूठ सिद्ध होते हैं. ऐसे आरोपों के कारण सरकार गिरने लगी तो केंद्र की मोदी सरकार को सबसे पहले जाना होगा.''

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