उत्तर प्रदेश सरकार ने दावा किया है कि हाल ही में हुए पंचायत चुनावों के दौरान केवल तीन सरकारी शिक्षकों ने कोविड के कारण दम तोड़ा. सरकार का ये दावा उन दावों से बिल्कुल अलग हैं, जिसमें कहा गया था ड्यूटी के दौरान संक्रमण के कारण कम से कम 1,600 कर्मचारियों की मौत हो गई.
बेसिक शिक्षा विभाग ने कहा कि इसकी संख्या राज्य भर के जिलाधिकारियों द्वारा अब तक पेश की गई रिपोर्ट पर आधारित है. बेसिक शिक्षा विभाग के अवर सचिव सत्य प्रकाश ने कहा, कि विभाग ने तीन शिक्षकों के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया और उनके परिजनों को अनुग्रह राशि देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रमुख दिनेश चंद्र शर्मा ने सरकार के दावे का खंडन करते हुए कहा,
सरकारी स्कूल के कर्मचारियों के प्रति बुनियादी शिक्षा विभाग का ऐसा उदासीन रवैया देखना दुर्भाग्यपूर्ण हैृ.
विभाग ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, एक सरकारी अधिकारी को उस समय से चुनाव ड्यूटी पर माना जाता है, जब कर्मचारी चुनाव संबंधी प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए अपना आवास छोड़ता है, जिसमें मतदान और मतगणना का समय शामिल होता है, जब वह घर पहुंचता है तो ड्यूटी खत्म होती है.
पंचायती राज के अतिरिक्त मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा '' भारत निर्वाचन आयोग के नियमों के मुताबिक, अगर 10 अप्रैल को मतदान होना है, तो शिक्षकों की ड्यूटी 9 अप्रैल से शुरू होकर 11 अप्रैल तक होती है.''
उन्होंने समझाया '' अगर इन तीन दिनों के दौरान कुछ भी अनहोनी होती है, तो इसे मतदान ड्यूटी पर मृत्यु माना जाएगा, लेकिन अगर शिक्षक ने 10 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी की, 20 अप्रैल को सकारात्मक परीक्षण किया और 24 अप्रैल को मृत्यु हो गई, तो इसे ड्यूटी के दौरान मृत्यु नहीं माना जाएगा.''
चुनाव ड्यूटी पर सरकारी शिक्षकों की मौत के मामले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 मई को उठाया था और न्यायाधीशों ने राज्य सरकार को सुझाव दिया था कि शिक्षकों के परिवारों को 1 करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि दी जाए.
हालांकि, बुनियादी शिक्षा विभाग ने कहा कि मुआवजे का भुगतान राज्य चुनाव आयोग के निर्धारित नियमों के अनुसार किया जाएगा.
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