2022 में पंजाब (Punjab), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों से पहले ही, 2021 से अलग-अलग राजनीतिक दलों और नेताओं ने जोरदार प्रचार किया.
आम तौर पर पार्टी के संदेश लोगों तक पहुंचाने वाले सोशल मीडिया का इस्तेमाल गलत और भ्रामक सूचनाएं फैलाने के लिए भी किया जाता है. ये काम पार्टियां, नेता और पार्टी समर्थक मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए करते हैं.
क्विंट की वेबकूफ टीम ने जुलाई 2021 से 15 मार्च 2022 के बीच पब्लिश अपने 109 फैक्ट चेक स्टोरीज को एनालाइज किया. ये वो स्टोरी थीं जिनमें पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से जुड़ी गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार का फैक्ट चेक किया गया था.
हमारे डेटासेट के मुताबिक, हमने पाया कि विधानसभा चुनावों से जुड़े दावे 2021 से ही किए जाने लगे थे, लेकिन इन दावों की संख्या दिसंबर एक आसपास काफी बढ़ गई.
इस रिपोर्ट में हम अपने विश्लेषण के आधार पर नीचे दिए गए बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे:
किस तरह के नैरेटिव बनाए गए?
गलत सूचना किसने शेयर की और टारगेट कौन था?
गलत सूचना को बढ़ावा देने के लिए किस तरह के मीडिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया?
विधानसभा चुनावों से जुड़े नैरेटिव
इस रिपोर्ट के लिए हमने 109 स्टोरीज देखीं. उनमें से 67.8 प्रतिशत (74 स्टोरी) 'प्रौपगैंड' के तहत आती हैं. इनमें ऐसे दावे थे जो पूरी तरह से झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए थे, ताकि:
किसी राजनीतिक नेता, पार्टी ये मूवमेंट को इस तरीके से पेश किया जा सके जिससे उनका फायदा हो
विपक्ष को निशाना बनाया जाए
हमने देखा कि इस कैटेगरी वाले दावे पार्टी लाइन से इतर राजनेताओं को टारगेट (या समर्थन) कर रहे थे.
उदाहरण के लिए, इंडियन नेशनल कांग्रेस ने राजस्थान का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें पानी से भरी सड़कों पर पुलिसकर्मी गिरते हुए देखे जा सकते हैं. दावा किया गया कि ये वीडियो यूपी का है. इस दावे के जरिए योगी आदित्यनाथ और राज्य में विकास की स्थिति पर निशाना साधा गया.
वहीं BJP के कई नेताओं ने आंध्र प्रदेश के एक बांध की फोटो शेयर कर दावा किया कि ये यूपी का है, ताकि यूपी सरकार की सराहना की जा सके.
हमारे डेटासेट के मुताबिक, दूसरी प्रमुख कैटेगरी 'सांप्रदायिक' नैरेटिव वाली थी. ये हमारे सैंपल का करीब 10 प्रतिशत (11 स्टोरी) था.
हमने पाया कि इन स्टोरीज के 45 प्रतिशत (5 फैक्ट चेक) में समाजवादी पार्टी को टारगेट किया गया. जैसे कि दावा किया गया कि यूपी में अखिलेश यादव के नेतृत्व में बड़ी संख्या में मस्जिदें बनाई जा रही हैं.
इसके अलावा, दूसरी 10 प्रतिशत स्टोरी ऐसी हैं जिनमें किसी शख्स या पार्टियों को टारगेट किया गया था.
उदाहरण के लिए, चुनाव से पहले बीजेपी सांसद रवि किशन का एक वीडियो शेयर किया गया और दावा किया गया कि उन्होंने दलितों के पसीने से बदबू आने की बात की थी. हालांकि, वो कार में बैठे अपने स्टाफ के लोगों से बात कर रहे थे, न कि दलित समुदाय के बारे मे.
हमें 'वोटिंग में फर्जीवाड़े' के दावे से जुड़े पुराने वीडियो भी फिर से शेयर होते नोटिस किए.
ये हमारे डेटासेट का 5.5 प्रतिशत था, वहीं सरकार के प्रदर्शन पर राजनेताओं का दावा हमारे फैक्ट चेक का 3.6 प्रतिशत था.
वहीं 'इतिहास' की कैटेगरी में सिर्फ एक ही स्टोरी थी जो नरेंद्र मोदी की उस स्पीच पर आधारित थी जिसमें उन्होंने गोवा में पुर्तगाली कब्जे और भारत में मुगल साम्राज्य के बारे में एक कार्यक्रम में बोला था.
जहां ज्यादातर दावों को एक ही कैटेगरी में रखा जा सकता है, वहीं 24 फैक्ट चेक (22 प्रतिशत) ऐसे दावों पर आधारित थे जो एक से ज्यादा कैटेगरी में रखे जा सकते हैं.
उदाहरण के लिए, मार्च करते लोगों का एक वीडियो जिसमें खालिस्तान समर्थन में नारे लगाए गए थे, को इस दावे से शेयर किया गया कि पंजाब में AAP की सरकार आने के बाद राज्य की ये स्थिति है. अलगाववादी नारों के ऐंगल की वजह से ये दावा 'सांप्रदायिक' कैटेगरी में आता है.
ये दावा 'प्रौपगैंडा' वाली कैटेगरी में भी आता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि वीडियो मूल रूप से पंजाबी एक्टर और एक्टिविस्ट दीप सिद्धू के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए निकाली गई एक रैली का था और ये वीडियो पंजाब में AAP की जीत से पहले का है.
गलत सूचनाएं सबसे ज्यादा किसने शेयर कीं? किसे किया गया सबसे ज्यादा टारगेट?
राजनीतिक दलों और नेताओं की भी गलत सूचनाओं को फैलाने में प्रमुख भूमिका रही.
जाने-माने दलों और नेताओं में से, 68.75 प्रतिशत (BJP नेताओं की ओर से 10 और यूपी सरकार की ओर से 1) दावे BJP और उससे जुड़े नेताओं ने किए. इनमें पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा, गृहमंत्री अमित शाह, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी भी शामिल हैं.
उदाहरण के लिए, बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने समाजवादी पार्टी की आलोचना करने के लिए जहां बीजेपी के ही कार्यकाल के जर्जर अवस्था में पड़े स्कूल की तस्वीरें शेयर कीं, तो वहीं अमित शाह और सीएम योगी ने यूपी में शासन की प्रशंसा करने के लिए फैक्ट्स को दरकिनार कर दिया.
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस 11.8 प्रतिशत के साथ इस मामले पर बराबरी पर रहे.
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें यूपी के कुंडा में बूथ कैप्चरिंग का दावा किया गया. हालांकि, वीडियो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान हरियाणा के एक पोलिंग बूथ का था. बाद में ट्वीट को डिलीट कर दिया गया.
गलत सूचनाओं को फैलाने की दौड़ में, कांग्रेस पार्टी के कई अकाउंट्स से पंजाब में प्रचार के लिए बीजेपी सरकार की 'पिंक बस' योजना की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया.
इसी तरह, हमारी फैक्ट चेक स्टोरी में हमने पाया कि 15 स्टोरी ऐसी थीं, जिनमें नेताओं को सीधा टारगेट किया गया था.
इनमें से पांच दावों (33.3 फीसदी) ने समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को निशाना बनाया, जिनमें से ज्यादातर का नेचर सांप्रदायिक था.
दो स्टोरी ऐसी भी थीं, जिनमें आम आदमी पार्टी को टारगेट किया गया था. एक में पंजाब के वर्तमान सीएम भगवंत मान के साथ शराब की दुकान के सामने बैठे अरविंद केजरीवाल की एडिटेड फोटो का इस्तेमाल किया गया था.
किस तरह के मीडिया का सबसे ज्यादा हुआ इस्तेमाल? पुरानी फोटो, वीडियो?
हमने ये भी देखा कि गलत सूचना फैलाने के लिए किस तरह के मीडिया का इस्तेमाल किया गया है.
यहां, हमने पाया कि सभी स्टोरी में से करीब आधी (50.5 प्रतिशत या 55 स्टोरी) में ऐसे वीडियो थे, जिन्हें झूठे या भ्रामक दावे करने के लिए शेयर किया गया था. इसके बाद, 41.2 प्रतिशत (45 स्टोरी) ऐसी थीं, जिनमें फेक दावो के लिए फोटो का इस्तेमाल किया गया था.
राजनेताओं के बयान 'नेता फैक्ट चेक' कैटेगरी में आते हैं और पूरे सैंपल का 4 प्रतिशत हिस्सा ये कैटेगरी थी.
दो फैक्ट चेक (1.8 प्रतिशत) न्यूजपेपर कटिंग या मिश्रित (फोटो और वीडियो) मीडिया दावों की कैटेगरी में आते हैं.
हमने एक स्टोरी को टेक्स्ट क्लेम वाली कैटेगरी में डाला. ये एक वॉट्सऐप मैसेज था, जिसमें यूपी में समाजवादी पार्टी के शासन में मंदिरों में तोड़फोड़ और हिंदू हत्याओं के बारे में निराधार बातें लिखी हुई थीं.
हमने पाया कि ज्यादातर दावे पुराने वीडियो और एडिटेड फोटो का इस्तेमाल कर किए गए थे. यानी हमारे डेटा के मुताबिक, 26 स्टोरी ऐसी थीं जिनमें पुराने वीडियो हाल के बता शेयर किए गए थे. वहीं, 19 स्टोरी ऐसी थीं जिनमें एडिटेड फोटो का इस्तेमाल कर झूठे दावे किए गए थे.
सोशल मीडिया ऐसी जगह बन गई है जहां से गलत सूचनाएं बनती हैं और फैलाई जाती हैं, और इतनी बड़ी संख्या में फैले इन झूठे दावों की वजह से आम लोगों के लिए इनकी पहचान करना कठिन हो जाता है.
जब चुनावों की बात आती है, तो राजनीतिक दलों और नेताओं के बारे में झूठी और भ्रामक जानकारी से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि लोग वोट करते समय प्रभावित हो जाएं.
इसलिए, जब आप अपनी ज्यादातर जानकारी के लिए सोशल मीडिया पर भरोसा करते हैं, तो ये पक्का करना जरूरी है कि किस पर भरोसा करना है और किस पर नहीं.
(एडिटर्स नोट: इस आर्टिकल का उद्देश्य पांच राज्यों में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले देखे गए दावों में गलत और दुष्प्रचार करने वाले ट्रेंड को उजागर करना है, ताकि फर्जी खबरों की समस्या को ठीक से समझा जा सके. ये पूरी तरह से क्विंट के ऊपर बताई गई समयावधि में किए गए फैक्ट चेक पर आधारित है.)
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