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केरल में हर साल 600 हाथियों की मौत? मेनका के दावे में सच्चाई नहीं

केरल में प्रेगनेंट हथनी की मौत से सोशल मीडिया में गुस्सा

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मेनका गांधी का दावा कि ‘हर साल केरल में 600 हाथी मारे जाते हैं’ खुद उनकी पार्टी के मंत्रियों और सरकारी डेटा के सामने खोखला पड़ रहा है. न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए, बीजेपी सांसद और जानवरों के अधिकारों के लिए लड़ने वालीं मेनका गांधी ने केरल के मल्लपुरम को ‘भारत का सबसे हिंसक जिला है.’

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केरल में 27 मई को एक प्रेगनेंट हथनी की मौत की सोशल मीडिया पर काफी निंदा की गई. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, सांसद मेनका गांधी समेत अनुष्का शर्मा, आलिया भट्ट जैसे सितारों ने हथनी की मौत पर दुख जाहिर करते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की.

मेनका गांधी ने ट्विटर पर कार्रवाई की मांग करते हुए फिर वही दावा किया कि केरल में 600 हाथियों की हत्या कर दी गई है.

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केरल में हर साल मारे जाते हैं 600 हाथी?

पहले, इस दावे पर गौर करते हैं जो मेनका गांधी कर रही है. उन्हें ये आंकड़े मिले कहां से?

हमने पाया कि फरवरी 2019 में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्यमंत्री डॉ महेश शर्मा ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि 2015-2019 (31 दिसंबर 2018 तक) का डेटा दिखाता है कि पूरे भारत में कुल 373 हाथियों की मौत हुई है.

उनके डेटा के मुताबिक, इस चार साल के दौरान, 226 मौतें इलॉक्ट्रोक्यूशन से, 62 मौतें ट्रेन एक्सीडेंट से, 59 मौतें अवैध शिकार से और 26 जहर से हुई थीं.

अगर साल दर साल डेटा देखें, तो 2015-16 में 104 हाथियों की, 2016-17 में 89 हाथियों, 2017-18 में 105 हाथियों की और 2018-19 में 75 हाथियों की मौत हुई.

केरल में प्रेगनेंट हथनी की मौत से सोशल मीडिया में गुस्सा
लोकसभा में डॉ महेश शर्मा का डेटा
(ग्राफिक: क्विंट)

इसके अलावा, केंद्रीय राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो ने 10 फरवरी 2020 को राज्यसभा में दावा किया कि इलेक्ट्रोक्यूशन के कारण 269 हाथियों की मौत, ट्रेन एक्सीडेंट से 71 मौतें, अवैध शिकार के कारण 61 और जहर के कारण 26 मौतें हुई हैं. ये डेटा साल 2015-19 के लिए ही था.

अगर संयुक्त रूप से देखा जाए, तो सुप्रियो के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015-16 में 113 हाथियों की मौत हुई, 2016-17 में 94 मौतें हुईं, जबकि 2017-18 में 105 और 2018-19 में 115 मौतें हुईं.
केरल में प्रेगनेंट हथनी की मौत से सोशल मीडिया में गुस्सा
फरवरी 2020 में राज्यसभा में बाबुल सुप्रियो ने दिया डेटा
(ग्राफिक: क्विंट)

अगर सुप्रियो और डॉ शर्मा के दिए डेटा की तुलना की जाए, तो थोड़े आंकड़े बेमेल दिखते हैं, लेकिन ज्यादा नहीं.

इससे यह सवाल उठता है कि अगर केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार वर्षों में किसी भी एक साल में पूरे भारत में मौतों की कुल संख्या 150 भी पार नहीं कर पाई, तो अकेले केरल में एक साल में 600 हाथियों की मौत कैसे संभव है?

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केरल में हाथियों की मौत पर रिपोर्ट

इसके बाद, हमने केरल में हाथियों की मौत के डेटा को स्टडी किया.

राज्यसभा में सुप्रियो के राज्यों को लेकर दिए डेटा के मुकाबिक, 2015-19 के दौरान, केरल में अलग-अलग कारणों से 39 हाथियों की मौत हुई. ये कारण इलेक्ट्रोक्यूशन, अवैध शिकार, ट्रेन एक्सीडेंट आदि थे.

केरल में प्रेगनेंट हथनी की मौत से सोशल मीडिया में गुस्सा
सुप्रियो के डेटा के मुताबिक, 2015-19 के बीच केरल में 39 हाथियों की मौत
(ग्राफिक: क्विंट)

वहीं दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा जैसे राज्यों में ज्यादा हाथियों की मौत रिपोर्ट की गई.

द न्यूज मिनट की जून 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, सोसायटी ऑफ एलीफेंट वेलफेयर के मुताबिक, साल के पहले छह महीनों में 18 हाथियों की मौत हो गई थी. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में 26 और 2017 में 20 हाथियों की मौत हुई थी.

अब तक, ये साफ हो गया है कि केरल में काफी हाथियों की मौत होती है, लेकिन ये आंकड़े मेनका गांधी के दावे के जरा भी करीब नहीं हैं. तो वो किस डेटा के आधार पर ये दावा कर रही हैं?
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मलप्पुरम नहीं, पलक्कड़ की है घटना

इस घटना पर गुस्सा जताते हुए मेनका गांधी ने फैक्ट गलत पेश किए, जब उन्होंने मलप्पुरम को इस तरह की घटना होने देने के लिए दोषी ठहराया और यहां तक कि इसे देश में 'सबसे हिंसक जिला' भी कहा.

लेकिन क्विंट ने पाया कि ये घटना असल में केरल के पलक्कड़ जिले में हुई थी, न कि मलप्पुरम में.

मन्नारक्कड़ के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिस से सुनील कुमार ने क्विंट को बताया, “पलक्कड़ जिले के मन्नारक्कड़ डिवीजन में एक हाथी जंगल में मृत पाया गया. ऐसी घटनाएं पहले भी हुई हैं, लेकिन हमने उन्हें रोकने के लिए सभी कदम उठाए हैं.”

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