सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने दावा किया है कि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिदों में लाउडस्पीकर्स को बैन कर दिया है या इसे अपराध की श्रेणी में रख दिया है.
क्विंट से बात करते हुए, जर्नलिस्ट दीपक अधिकारी ने बताया कि ये मामला अभी कोर्ट में चल रहा है, और सुप्रीम कोर्ट ने 29 नवंबर 2020 को एक याचिका के जवाब में, मस्जिदों से लाउडस्पीकर्स की आवाज केवल कम करने के लिए कहा है.
सुप्रीम कोर्ट के एक प्रवक्ता ने भी अधिकारी से पुष्टि की कि यह एक अस्थायी स्टे ऑर्डर था, जिसने लाउडस्पीकरों को आपराधिक नहीं बनाया है.
दावा
एक यूजर, दीपक शर्मा (@TheDeepak2020In) ने ट्विटर पर लिखा, “नेपाल में अब नहीं लगेंगे मस्जिदों पे लाउडस्पीकर! नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी में रखा!” इस स्टोरी को लिखे जाने तक इस ट्वीट पर 9 हजार से ज्यादा लाइक्स थे, वहीं 1900 के करीब रीट्वीट्स थे.
एक और यूजर ने ऐसा ही ट्वीट किया, जिसपर करीब 3 हजार लाइक्स थे.
फेसबुक पर भी कई यूजर्स ने ये दावा किया.
हमने जांच में क्या पाया?
हमें नेपाल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेपाल में लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाने या सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इस तरह के आदेश के संबंध में कोई भी जानकारी प्राप्त करने के लिए कोई विश्वसनीय न्यूज रिपोर्ट नहीं मिली.
क्विंट से बात करते हुए, साउथ एशिया चेक के एडिटर, दीपक अधिकारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगाने की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मस्जिदों से आवाज कम करने के लिए कहा है. इस आर्टिकल को लिखे जाने तक, मस्जिदों में लाउडस्पीकरों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया था.
जस्टिस तेज बहादुर केसी की अध्यक्षता में मामला- केस नंबर 077-WO-0422 अभी भी जारी है.
इसके अलावा, अधिकारी ने फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट, AltNews की तरफ से नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता, भद्रकाली पोखरल से संपर्क किया, जिन्होंने कंफर्म किया कि लाउडस्पीकरों पर बैन नहीं लगाया गया है.
उन्होंने आगे बताया कि जज ने 29 नवंबर 2020 को एक अस्थायी स्टे ऑर्डर दिया है, जिसमें मस्जिदों में लाउडस्पीकरों की आवाज कम करने के लिए कहा गया है. इस मामले की सुनवाई 10 दिसंबर को होनी थी, लेकिन डिफेंस पक्ष के नहीं आने पर इसे रद्द कर दिया गया.
इससे साफ होता है कि सोशल मीडिया पर नेपाल के सुप्रीम कोर्ट को लेकर किया जा रहा दावा गलत है.
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