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Elon Musk ट्विटर से जिन बोट्स को हटाना चाहते हैं वो क्या और कितने खतरनाक हैं?

2017 की स्टडी बताती है कि ट्विटर पर कुल अकाउंट्स में से 15% बॉट अकाउंट हैं

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''सच जब जूते पहन रहा होता है, झूठ दुनिया का चक्कर लगा लेता है''. इस बात को आमतौर पर भले ही एक जुमले के तौर पर बोला जाता हो. लेकिन, ट्विटर (Twitter) पर फैल रहे झूठ यानी Fake News के संदर्भ में ये महज जुमला नहीं है. स्टडीज बताती हैं कि ट्विटर पर फेक न्यूज वाकई सच की तुलना में काफी तेज रफ्तार से फैलती है.

ट्विटर पर फैल रहा झूठ नया मुद्दा नहीं है. ये नया मुद्दा इसलिए बन गया है क्योंकि दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क अब ट्विटर के 'मालिक' हैं. मस्क का दावा है कि वो ट्विटर से बोट अकाउंट्स को हटाकर फेक न्यूज पर लगाम लगाएंगे.

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ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या ये कहना जितना आसान है, उतना ही इसे करना भी है? क्या वाकई एलन मस्क का मकसद समाज में फैल रही ट्रोलिंग और फेक न्यूज के जहर को रोकना है? आखिर ट्विटर बोट्स और फेक न्यूज कितनी बड़ी समस्या है?

इन सभी सवालों के जवाब जानने से पहले ये जान लेते हैं कि एलन मस्क जिस ट्विटर बोट को हराने की बात कह रहे हैं वो आखिर है क्या?

क्या होते हैं ट्विटर बोट और क्या ये खतरनाक हो सकते हैं? 

ट्विटर बोट्स (Twitter bots) एक तरह के ऑटोमेटेड ट्विटर अकाउंट होते हैं, जिन्हें बोट सॉफ्टवेयर कंट्रोल करता है. 2017 में की गई साउथ कैरोलिना यूनिवर्सिटी और इंडियाना यूनिवर्सिटी की स्टडी में सामने आया था कि ट्विटर पर 48 मिलियन अकाउंट ऐसे हैं, जिन्हें इंसान नहीं चला रहे. ये कुल ट्विटर अकाउंट्स का 15% था.

इनका उपयोग बड़े पैमाने पर कंटेंट को लाइक या रीट्वीट करने के लिए किया जाता है. वैसे तो ट्विटर बोट्स का इस्तेमाल कई बार जनहित से जुड़े कैंपेन आदि को प्रमोट करने के लिए भी होता है. लेकिन, सोशल मीडिया के दौर का सबसे बड़े अभिशाप यानी 'ट्रोलिंग' को भी ट्विटर बोट्स से कराया जा सकता है. ये भी सच है कि ट्विटर बोट्स कई बार फेक न्यूज को फैलाते पाए जाते हैं, जिसे एलन मस्क खत्म करने की बात कर रहे हैं.

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ट्विटर बोट्स के हथियार से किसी व्यक्ति, आंदोलन को बदनाम करना आसान

क्विंट की वेबकूफ टीम ऐसे कॉपी-पेस्ट कैंपेन का खुलासा भी कर चुकी है, जिनसे साबित होता है कि एक नैरेटिव को सही साबित करने के लिए कई अकाउंट्स से एक ही ट्वीट कराया जाता है. पिछले साल ही किसान आंदोलन के दौरान इसका एक उदाहरण देखने को मिला था.

एक मैसेज को ट्विटर पर बने कई अलग-अलग अकाउंट्स से कॉपी पेस्ट कराया गया. मैसेज था - कल जो मेरे साथ अश्लील हरकत हुई उसके सीधे-सीधे जिम्मेवार राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव हैं मैं दिल्ली पुलिस से मांग करती हूं इन दोनों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें मैं एक पत्रकार नहीं महिला भी हूं.

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मैसेज एक ही था, लेकिन कई अकाउंट्स से ट्वीट किया गया, छेड़छाड़ के एक-एक निजी अनुभव की तरह. क्विंट की वेबकूफ टीम ने जब मैसेज शेयर करने वाले कुछ अकाउंट्स की पड़ताल की, तो आया ये अकाउंट फर्जी थे. ये सारा कुछ हुआ किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए.

जाहिर है जब ट्विटर बोट्स से एक आंदोलन को बदनाम करने के लिए फेक नैरेटिव चलाया जा सकता है. तो फिर एक व्यक्ति को बदनाम करना और भी आसान हो जाता है.

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बोट्स को लेकर अब तक क्या करता रहा है ट्विटर?

क्या एलन मस्क ही वो शख्स हैं जो ट्विटर में बोट्स को लेकर फिक्रमंद हैं? नहीं, ऐसा नहीं है. ट्विटर पहले भी अच्छे और बुरे बोट्स के बीच का फर्क साफ करने के लिए काम करने का दावा करता रहा है. सितंबर 2021 में ट्विटर ने उन बोट्स के आगे Automated का आइकन लगाना शुरू किया, जो ट्विटर के नियमों का पालन करते हैं और ट्विटर को उनसे कोई समस्या नहीं थी. ट्विटर का दावा था कि ये वो बोट्स हैं जो लोगों को जागरुक करने का काम करते हैं और अच्छे मकसद से बनाए गए हैं. जैसे लोकल खबरें देने वाले बोट, मौसम की जानकारी देने वाले बोट, कोविड-19 वैक्सीनेशन सेंटर का पता आप तक पहुंचाने वाले बोट.

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सही खबरों के मुकाबले 70% ज्यादा है भ्रामक खबरें फैलने की संभावना

ऐसी कई स्टडीज हैं तो बताती हैं कि ट्विटर पर फेक न्यूज सच की तुलना में तेजी से फैलती है. sciencedirect.com पर मार्च 2021 में छपी एक स्टडी के मुताबिक, पूरी तरह फर्जी खबरें उन खबरों के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलती हैं, जिनमें आधा सच और आधी भ्रामक सूचना थी.

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MIT यूनिवर्सिटी की 2018 की स्टडी बताती है कि ट्विटर पर भ्रामक खबरों के रीट्वीट होने की संभावना सही खबरों की तुलना में 70% ज्यादा रहती है. फेक न्यूज के प्रभाव को समझने के लिए शोधार्थियों ने ट्विटर पर बड़े पैमाने पर शेयर हो रही खबरों के 126,000 नमूनों का अध्यन किया. इन खबरों को 2006 से 2017 के बीच 3 मिलियन लोगों ने 4.5 मिलियन से ज्यादा बार रीट्वीट किया था.

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जब दुनिया भर की 6 फैक्ट चेकिंग वेबसाइट्स की पड़ताल से इन खबरों का मिलान किया गया, तो सामने आया कि 95% मामलों में फैक्ट चेक पड़ताल के नतीजे इन खबरों से अलग थे. साफ है कि वायरल हो रही खबरों में सही खबरें आंटे में नमक के बराबर हैं.

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