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भारतीय मूल की अमिका जॉर्ज को ब्रिटेन में मिला बड़ा सम्मान

अमिका जॉर्ज को MBE (मेंबर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर) के लिए चुना गया है

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अमिका जॉर्ज को MBE (मेंबर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर) के लिए चुना गया है. जो कि शिक्षा सूची में तीसरा सबसे बड़ा पुरस्कार है. ये सम्मान अमिका को उनके #FreePeriods कैंपेन के लिए दिया गया है.

अमिका जॉर्ज को इस साल क्वीन्स बर्थडे ऑनर्स के लिए चुना गया, वो इसे पाने वाली सबसे कम उम्र की लड़की हैं. उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों में मुफ्त में पीरियड से जुड़ी चीजें लड़कियों को देने के लिए यूके सरकार से मांग की.

अमिका कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री की स्टूडेंट हैं. उनके माता-पिता भारत में केरल से हैं. अमिका कहती हैं, “ऑनर्स सिस्टम के (ब्रिटिश) साम्राज्य और हमारे औपनिवेशिक अतीत से जुड़ाव के साथ यह मेरे लिए आसान नहीं था.”

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उन्होंने आगे कहा, “मेरे लिए ये दिखाना वास्तव में महत्वपूर्ण है कि युवाओं की आवाज में शक्ति है, जितना हम महसूस करते हैं उससे कहीं अधिक.” वह कहती हैं, “राजनीतिक क्षेत्रों में अक्सर हमारी अनदेखी की जाती है, और एमबीई से पता चलता है कि हमें धीरे-धीरे वास्तविक बदलाव करने को लेकर पहचाना जा रहा है जो सरकार को प्रभावित कर सकते हैं.”

“वो बदलाव वेस्टमिंस्टर, या व्हाइट हाउस, या भारतीय संसद की दीवारों के भीतर से नहीं किया जाना है. कोई भी बदलाव की योजना बना सकता है. मैं चाहती हूं कि युवा देखें कि हमें पहचाना जा रहा है, और अगर हम ऐसी चीजों से सामना करने के लिए तैयार हैं, तो हम कुछ बेहतर बना सकते हैं. ”

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17 साल की उम्र से शुरू किया कैंपेन

जॉर्ज ने 17 साल की उम्र में अभियान शुरू किया था – वह इस बात से काफी परेशान हुई थी कि “यूके में ऐसी लड़कियां थीं जो हर महीने स्कूल से गायब थीं क्योंकि वो इतनी गरीब थीं कि वे मासिक धर्म के उत्पादों का खर्च नहीं उठा सकती थीं.”

उन्होंने एक याचिका दायर कि थी और मंत्रियों के साथ बैठक भी कि थी, उनके इन्ही सब प्रयासों के बाद यूके सरकार ने 2020 में शैक्षणिक संस्थानों को मुफ्त में पीरियड से जुड़े तमाम तरह की चीजों को लेकर फंड दिया. फ्री पीरियड्स अब एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो “मासिक धर्म के आसपास की वर्जनाओं और शर्म के खिलाफ” लड़ना जारी रखता है.

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जॉर्ज का कहना है कि, “मेरे परिवार और समुदाय की ओर से मैं ये पुरस्कार स्वीकार करती हूं, जिन्हें दशकों से चुपचाप नस्लवाद को सहन करना पड़ा है, जिन्होंने महसूस किया कि वे कभी भी इस ब्रिटिश कल्चर में फिट नहीं हुए.”

अमिका और उनके भाई का जन्म और पालन-पोषण यूके में हुआ था, उनके पिता किशोर पठानमथिट्टा से और मां निशा कोझेनचेरी से हैं.

निशा कहती हैं, ”हम वाकई खुश हैं. “हमने अमिका को पिछले चार वर्षों में शिक्षाविदों और उसके अभियान के बीच कड़ी मेहनत करते हुए देखा है. वह एक लक्ष्य हासिल करना चाहती थी, और हमें खुशी है कि उसे इस तरह से पहचाना गया है. ”

माता-पिता के रूप में, निशा कहती हैं, उन्होंने अमिका की सुरक्षा कि हमेशा चिंता की है, “क्योंकि उसने खुद कि एक आवा उठाई है, ऐसी बात के बारे में बात करना जिससे ज्यादातर लोग असहज महसूस करते हैं.”

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जॉर्ज कहती हैं: “आज मैं एक युवा ब्रिटिश भारतीय होने पर बहुत गर्वित महसूस करती हूं.”

इस साल 1,129 लोगों को ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था, जिनमें से 50 प्रतिशत महिलाएं हैं, और 15 प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक हैं.

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