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Australia election 2022:कैसे होता है ऑस्ट्रेलिया में चुनाव,कौन से मुद्दे हावी?

Australia election 2022: PM Scott Morrison फिर बाजी मारेंगे या विपक्षी नेता Anthony Albanese? किसका पलड़ा भारी?

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ऑस्ट्रेलिया का राजनीतिक गलियारा आजकल सरगर्म है, क्योंकि वहां 21 मई को राष्ट्रीय चुनाव (Australia election 2022) होने हैं. 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले इस देश में यह राष्ट्रीय चुनाव अहम है, क्योंकि अगले प्रधानमंत्री को रूस-यूक्रेन युद्ध, जलवायु संकट और सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार चीन के साथ तेजी से बिगड़ते संबंधों के बीच आसमान छूती महंगाई जैसे मुद्दों को संबोधित करना होगा.

इस आर्टिकल में हम इन सवालों का जवाब खोजने की कोशिश करेंगे

  • ऑस्ट्रेलिया का चुनावी तंत्र कैसे काम करता है?

  • ऑस्ट्रेलिया में पिछले चुनाव के नतीजों ने एग्जिट पोल को कैसे गलत बताया था?

  • ऑस्ट्रेलियाई PM स्कॉट मॉरिसन फिर बाजी मारेंगे या विपक्षी नेता एंथोनी अल्बनीज? किसका पलड़ा भारी?

  • ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध, महंगाई,असमानता…. किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा इस बार का चुनाव?

Australia election 2022:कैसे होता है ऑस्ट्रेलिया में चुनाव,कौन से मुद्दे हावी?

  1. 1. Australia election 2022 :ऑस्ट्रेलिया का चुनावी तंत्र कैसे काम करता है?

    भारत की तरह ही ऑस्ट्रेलियाई संसद में दो सदन है. निचला सदन प्रतिनिधि सभा (जैसे भारत में लोकसभा) है और ऊपरी सदन को सीनेट (राज्यसभा) कहते हैं. ऑस्ट्रेलिया के प्रतिनिधि सभा में 151 सांसद होते हैं. भारत की तरह ही लोग अपने स्थानीय प्रतिनिधि (सांसद) के लिए वोट देते हैं और अगर कोई पार्टी बहुमत के आंकड़े, 76 सीट तक पहुंच जाती है, तो वह बहुमत की सरकार बना सकती है.

    लेकिन भारत के विपरीत ऑस्ट्रेलिया की अपनी खास चुनावी प्रणाली है.

    ऑस्ट्रेलिया में सांसद को प्रतिनिधि सभा में भेजने के लिए "Preferential voting system” है. इसमें लोगों को अपनी वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों की रैंकिंग करनी होती है, जिसमें पहले नंबर पर उनका सबसे पसंदीदा उम्मीदवार होता है.

    यदि किसी एक उम्मीदवार को 50% से अधिक वोट मिलते हैं, तो वह स्वतः रूप से निर्वाचित हो जाता है. लेकिन यदि सबसे पसंदीदा उम्मीदवार को भी 50% से कम वोट मिलते हैं, तो सबसे कम वोट पाए उम्मीदवारों को हटा दिया जाता है और उसके वोट को वरीयता अनुसार दूसरों को तब तक ट्रांसफर किया जाता है, जब तक कि किसी एक को 50% से अधिक वोट नहीं मिल जाते.

    (खास बात: भले ही वोट देने का अधिकार दुनिया भर के लोगों द्वारा मांगी गई स्वतंत्रता है, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई लोगों के पास इस मामले में कोई विकल्प नहीं है क्योंकि यहां वोटिंग अनिवार्य है. ऑस्ट्रेलियाई चुनाव आयोग के अनुसार जो लोग वोट डालने में विफल रहते हैं, उन्हें उसका वैध कारण बताने के लिए एक लेटर भेजा जाएगा या उन्हें $20 का जुर्माना देना होता है.)
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  2. 2. ऑस्ट्रेलिया में 2019 के पिछले चुनाव के नतीजों ने एग्जिट पोल को कैसे गलत बताया था?

    पार्टी की अंदरूनी कलह के बावजूद, स्कॉट मॉरिसन की रूढ़िवादी पार्टी ने 2019 में आश्चर्यजनक जीत हासिल की और विश्लेषकों के तमाम एग्जिट पोल और कयासों को धता बता दिया.

    स्कॉट मॉरिसन के नेतृत्व में लिबरल नेशनल गठबंधन ने बहुमत के आंकड़े से एक अधिक सीट अपने नाम किया. विशेष रूप से माइनिंग इलाके वाले सीटों और उच्च नौकरियों वाले क्षेत्रों में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा.

    विश्लेषकों का मानना था कि 2019 के चुनाव में वर्किंग क्लास के वोटरों के लेबर पार्टी के पक्ष में वोट देने की अधिक संभावना थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इस आबादी के केवल 41% हिस्से ने पार्टी को अपना वोट दिया, जो 1987 के बाद से सबसे कम था.
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  3. 3. ऑस्ट्रेलियाई PM स्कॉट मॉरिसन फिर बाजी मारेंगे या विपक्षी नेता एंथोनी अल्बनीज? किसका पलड़ा भारी?

    ऑस्ट्रेलियाई PM स्कॉट मॉरिसन की जीत की संभावना अभी गर्त में चल रही है और कई विश्लेषक पीएम के व्यक्तित्व को उनकी पार्टी के लिए बोझ कह रहे हैं.

    साल 2020 के मध्य तक पीएम मॉरिसन के प्रति वोटरों की अप्रूवल रेटिंग उनके डिसअप्रूवल रेटिंग से 40 प्वाइंट अधिक थी. लेकिन इस सप्ताह द ऑस्ट्रेलियन अखबार द्वारा प्रकाशित एक न्यूजपोल सर्वे के अनुसार, अब यह माइनस में 14 प्वाइंट है, यानी डिसअप्रूवल रेटिंग ही ज्यादा हो गयी है.

    PM स्कॉट मॉरिसन के लिए मुश्किल यह भी है कि खुद उनके गठबंधन के नेता उनको निशाना बना रहे हैं. उप प्रधान मंत्री बरनबी जॉयस ने मॉरिसन को "एक हिपोक्रेट और झूठा" तक कहा, जिसके लिए उन्होंने बाद में माफी मांगी.

    बुधवार, 11 मई को अंतिम चुनावी डिबेट में, लेबर पार्टी के नेता एंथनी अल्बनीस ने मॉरिसन को उन्हीं मुद्दों पर घेरा जिसपर उनकी अपनी पार्टी के सदस्य उन्हें निशाना बना रहे हैं- COVID वैक्सीनों की कमी.

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  4. 4. ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध, महंगाई,असमानता…. किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा Australia election 2022?

    ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध

    पूरे ऑस्ट्रेलिया में चुनावी पोस्टरों पर उम्मीदवारों के चेहरों के साथ एक चेहरा है जो सबसे अलग है, और वह शी जिनपिंग का है. चुनाव में चीन के हस्तक्षेप के आरोपों और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर चीन को घेरा जा रहा और वह पूरी तरह से चुनावी मुद्दा बन चुका है.

    विपक्ष के सबसे बड़े नेता एंथनी अल्बनीस ने एक डिबेट के दौरान कहा कि "शी जिनपिंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रकृति को बदल दिया है ... यह अधिक आक्रामक है. और इसका मतलब है कि ऑस्ट्रेलिया को निश्चित रूप से जवाब देना चाहिए".

    चुनाव अभियान शुरू होने से पहले ही आरोप लगाए जा रहे थे कि चीन PM स्कॉट मॉरिसन की जगह लेबर पार्टी की जीत चाहता है.

    जलवायु परिवर्तन

    यह चुनाव जलवायु परिवर्तन को लेकर जंग का मैदान भी बन गया है. विकसित दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक, ऑस्ट्रेलिया माइनिंग सेक्टर में नौकरियों को खत्म किए बिना ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के कठिन मोर्चे पर जूझ रहा है. ऑस्ट्रेलिया में माइनिंग सेक्टर अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को रोजगार उपलब्ध कराता है.

    असमानता

    पूरी दुनिया के साथ ऑस्ट्रेलिया भी महंगाई की चपेटे में है लेकिन इस समस्या को विकराल बनाती है वहां के समाज में मौजूद आर्थिक स्तर पर असमानता. समाज के सबसे अमीर 20% लोगों के पास सबसे गरीब 20% लोगों की अपेक्षा लगभग 90 गुना ज्यादा संपत्ति है. चुनाव में यह एक प्रमुख मुद्दा है क्योंकि देश के अंदर सैलरी में बढ़ोतरी धीमी है और बेरोजगारी की स्थिर मौजूद है.

    महंगाई

    ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के एक नए सर्वे के अनुसार इस बार के ऑस्ट्रेलियाई आम चुनाव में 'रहने की लागत' को कम करना और बुजुर्गों के लिए सरकारी देखभाल की प्रणाली को ठीक करना वोटर्स की दो सर्वोच्च प्राथमिकताएं हैं.

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Australia election 2022 :ऑस्ट्रेलिया का चुनावी तंत्र कैसे काम करता है?

भारत की तरह ही ऑस्ट्रेलियाई संसद में दो सदन है. निचला सदन प्रतिनिधि सभा (जैसे भारत में लोकसभा) है और ऊपरी सदन को सीनेट (राज्यसभा) कहते हैं. ऑस्ट्रेलिया के प्रतिनिधि सभा में 151 सांसद होते हैं. भारत की तरह ही लोग अपने स्थानीय प्रतिनिधि (सांसद) के लिए वोट देते हैं और अगर कोई पार्टी बहुमत के आंकड़े, 76 सीट तक पहुंच जाती है, तो वह बहुमत की सरकार बना सकती है.

लेकिन भारत के विपरीत ऑस्ट्रेलिया की अपनी खास चुनावी प्रणाली है.

ऑस्ट्रेलिया में सांसद को प्रतिनिधि सभा में भेजने के लिए "Preferential voting system” है. इसमें लोगों को अपनी वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों की रैंकिंग करनी होती है, जिसमें पहले नंबर पर उनका सबसे पसंदीदा उम्मीदवार होता है.

यदि किसी एक उम्मीदवार को 50% से अधिक वोट मिलते हैं, तो वह स्वतः रूप से निर्वाचित हो जाता है. लेकिन यदि सबसे पसंदीदा उम्मीदवार को भी 50% से कम वोट मिलते हैं, तो सबसे कम वोट पाए उम्मीदवारों को हटा दिया जाता है और उसके वोट को वरीयता अनुसार दूसरों को तब तक ट्रांसफर किया जाता है, जब तक कि किसी एक को 50% से अधिक वोट नहीं मिल जाते.

(खास बात: भले ही वोट देने का अधिकार दुनिया भर के लोगों द्वारा मांगी गई स्वतंत्रता है, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई लोगों के पास इस मामले में कोई विकल्प नहीं है क्योंकि यहां वोटिंग अनिवार्य है. ऑस्ट्रेलियाई चुनाव आयोग के अनुसार जो लोग वोट डालने में विफल रहते हैं, उन्हें उसका वैध कारण बताने के लिए एक लेटर भेजा जाएगा या उन्हें $20 का जुर्माना देना होता है.)
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ऑस्ट्रेलिया में 2019 के पिछले चुनाव के नतीजों ने एग्जिट पोल को कैसे गलत बताया था?

पार्टी की अंदरूनी कलह के बावजूद, स्कॉट मॉरिसन की रूढ़िवादी पार्टी ने 2019 में आश्चर्यजनक जीत हासिल की और विश्लेषकों के तमाम एग्जिट पोल और कयासों को धता बता दिया.

स्कॉट मॉरिसन के नेतृत्व में लिबरल नेशनल गठबंधन ने बहुमत के आंकड़े से एक अधिक सीट अपने नाम किया. विशेष रूप से माइनिंग इलाके वाले सीटों और उच्च नौकरियों वाले क्षेत्रों में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा.

विश्लेषकों का मानना था कि 2019 के चुनाव में वर्किंग क्लास के वोटरों के लेबर पार्टी के पक्ष में वोट देने की अधिक संभावना थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इस आबादी के केवल 41% हिस्से ने पार्टी को अपना वोट दिया, जो 1987 के बाद से सबसे कम था.
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ऑस्ट्रेलियाई PM स्कॉट मॉरिसन फिर बाजी मारेंगे या विपक्षी नेता एंथोनी अल्बनीज? किसका पलड़ा भारी?

ऑस्ट्रेलियाई PM स्कॉट मॉरिसन की जीत की संभावना अभी गर्त में चल रही है और कई विश्लेषक पीएम के व्यक्तित्व को उनकी पार्टी के लिए बोझ कह रहे हैं.

साल 2020 के मध्य तक पीएम मॉरिसन के प्रति वोटरों की अप्रूवल रेटिंग उनके डिसअप्रूवल रेटिंग से 40 प्वाइंट अधिक थी. लेकिन इस सप्ताह द ऑस्ट्रेलियन अखबार द्वारा प्रकाशित एक न्यूजपोल सर्वे के अनुसार, अब यह माइनस में 14 प्वाइंट है, यानी डिसअप्रूवल रेटिंग ही ज्यादा हो गयी है.

PM स्कॉट मॉरिसन के लिए मुश्किल यह भी है कि खुद उनके गठबंधन के नेता उनको निशाना बना रहे हैं. उप प्रधान मंत्री बरनबी जॉयस ने मॉरिसन को "एक हिपोक्रेट और झूठा" तक कहा, जिसके लिए उन्होंने बाद में माफी मांगी.

बुधवार, 11 मई को अंतिम चुनावी डिबेट में, लेबर पार्टी के नेता एंथनी अल्बनीस ने मॉरिसन को उन्हीं मुद्दों पर घेरा जिसपर उनकी अपनी पार्टी के सदस्य उन्हें निशाना बना रहे हैं- COVID वैक्सीनों की कमी.

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ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध, महंगाई,असमानता…. किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा Australia election 2022?

ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध

पूरे ऑस्ट्रेलिया में चुनावी पोस्टरों पर उम्मीदवारों के चेहरों के साथ एक चेहरा है जो सबसे अलग है, और वह शी जिनपिंग का है. चुनाव में चीन के हस्तक्षेप के आरोपों और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर चीन को घेरा जा रहा और वह पूरी तरह से चुनावी मुद्दा बन चुका है.

विपक्ष के सबसे बड़े नेता एंथनी अल्बनीस ने एक डिबेट के दौरान कहा कि "शी जिनपिंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रकृति को बदल दिया है ... यह अधिक आक्रामक है. और इसका मतलब है कि ऑस्ट्रेलिया को निश्चित रूप से जवाब देना चाहिए".

चुनाव अभियान शुरू होने से पहले ही आरोप लगाए जा रहे थे कि चीन PM स्कॉट मॉरिसन की जगह लेबर पार्टी की जीत चाहता है.

जलवायु परिवर्तन

यह चुनाव जलवायु परिवर्तन को लेकर जंग का मैदान भी बन गया है. विकसित दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक, ऑस्ट्रेलिया माइनिंग सेक्टर में नौकरियों को खत्म किए बिना ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के कठिन मोर्चे पर जूझ रहा है. ऑस्ट्रेलिया में माइनिंग सेक्टर अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को रोजगार उपलब्ध कराता है.

असमानता

पूरी दुनिया के साथ ऑस्ट्रेलिया भी महंगाई की चपेटे में है लेकिन इस समस्या को विकराल बनाती है वहां के समाज में मौजूद आर्थिक स्तर पर असमानता. समाज के सबसे अमीर 20% लोगों के पास सबसे गरीब 20% लोगों की अपेक्षा लगभग 90 गुना ज्यादा संपत्ति है. चुनाव में यह एक प्रमुख मुद्दा है क्योंकि देश के अंदर सैलरी में बढ़ोतरी धीमी है और बेरोजगारी की स्थिर मौजूद है.

महंगाई

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के एक नए सर्वे के अनुसार इस बार के ऑस्ट्रेलियाई आम चुनाव में 'रहने की लागत' को कम करना और बुजुर्गों के लिए सरकारी देखभाल की प्रणाली को ठीक करना वोटर्स की दो सर्वोच्च प्राथमिकताएं हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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